नई दिल्ली
मेरे एक दोस्त कुछ दिन पहले एक सवाल से परेशान थे। उन्होंने बातों-बातों में मुझसे पूछा कि कॉलेज लायक हो चुके बच्चों को कितनी और कैसी वित्तीय आजादी दी जानी चाहिए।
पहली बात तो यह है कि रुपये-पैसों को लेकर बच्चों की सोच वैसी ही बनती है, जैसा घर का माहौल होता है। अगर आप हर वित्तीय फैसले सोच-समझकर उसके गुण-दोष के हिसाब से करते हैं तो आपके बच्चे भी वैसा ही करेंगे। खुद तो मौज में आकर खरीदारी के लिए फटाक से कार्ड निकाल लेते हैं लेकिन सोचते हैं कि बच्चे समझदारी से काम लेंगे तो कॉलेज जाने वाले बच्चों से ऐसी उम्मीद बेमानी होगी।
दूसरी बात, कहीं बच्चे नाराज न हो जाएं इसलिए उनको अनलिमिटेड एटीएम कैश विदड्रॉल की छूट देना और बिना सवाल-जवाब अकाउंट में पैसे डलवाना, उनका हित नहीं, अहित करना है। बच्चों को तो यह समझाना चाहिए कि पैसे पेड़ पर नहीं उगते, अगर हैं तो उनका सही जगह पर इस्तेमाल होना चाहिए। मासिक जेबखर्च तय करें और यह पक्का करें कि उससे किताबों, मेंबरशिप, ट्रैवल और दूसरे वाजिब खर्च पूरे हो जाएं।
तीसरी बात, बजट बनाते वक्त बच्चों को पास बैठाएं। वे भी तो देखें कि कितना बाहर खाने और कितना फोन बिल पर खर्च होगा। बच्चा कुछ लग्जरी एंजॉय करना चाहता है तो उसको पार्टटाइम काम के लिए प्रोत्साहित करें, जैसे-वेटर। इस काम से वह जानेगा कि वक्त की पाबंदी क्या होती है, उम्मीद पर खरा कैसे उतरा जाता है, बेहतर परफॉर्मेंस कैसे दिया जा सकता है। पैसे थोड़े भी हों, उनकी कीमत का पता चलेगा।
चौथी बात, अलग अलग मद में खर्च का हिसाब रखने वाले ऑनलाइन सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल सिखाएं। सिक्यॉर ई-ट्रांजैक्शन और ई-वॉलेट का यूज कैसे करें, कैश के मिनिमम यूज से हिसाब-किताब में कैसे आसानी होती है, इन सबके बारे में भी बताएं। उससे अकाउंट डिटेल शेयर करने के लिए कहें ताकि वह आपकी नजर में हो। हर खर्च पर सवाल उठाने की जरूरत नहीं, लेकिन हिसाब-किताब तो उनको देना ही होगा।
पांचवीं बात, उनको बताते रहें कि उनके खर्च पर दोस्तों की भी नजर होती है। उनकी अच्छी आदतों से ग्रुप की भी आदत अच्छी होगी। कई बार बच्चे जॉइंट फूड बिल, ट्रिप एक्सपेंस की शेयरिंग के सवाल पर शर्माते हैं लेकिन कोई भी बच्चा कमा नहीं रहा होता है तो उनको चाहिए कि खर्च वाजिब हिसाब से शेयर करें। दोस्तों को उधार देने की आदत से बचना चाहिए। इसमें रिकवरी नहीं होने पर दोस्त और पैसा दोनों चले जाते हैं।
छठी बात, कोशिश करें कि बच्चे को जेबखर्च के लिए याद न दिलाना पड़े। तय तारीख पर उसके पास जेब खर्च का पैसा होना चाहिए। इससे उनको चीजें बेहतर तरीके से मैनेज करने में आसानी होगी।
उमा शशिकांत
(सेंटर फॉर इनवेस्ट में एजुकेशन एंड लर्निंग की चेयरपर्सन)
मेरे एक दोस्त कुछ दिन पहले एक सवाल से परेशान थे। उन्होंने बातों-बातों में मुझसे पूछा कि कॉलेज लायक हो चुके बच्चों को कितनी और कैसी वित्तीय आजादी दी जानी चाहिए।
पहली बात तो यह है कि रुपये-पैसों को लेकर बच्चों की सोच वैसी ही बनती है, जैसा घर का माहौल होता है। अगर आप हर वित्तीय फैसले सोच-समझकर उसके गुण-दोष के हिसाब से करते हैं तो आपके बच्चे भी वैसा ही करेंगे। खुद तो मौज में आकर खरीदारी के लिए फटाक से कार्ड निकाल लेते हैं लेकिन सोचते हैं कि बच्चे समझदारी से काम लेंगे तो कॉलेज जाने वाले बच्चों से ऐसी उम्मीद बेमानी होगी।
दूसरी बात, कहीं बच्चे नाराज न हो जाएं इसलिए उनको अनलिमिटेड एटीएम कैश विदड्रॉल की छूट देना और बिना सवाल-जवाब अकाउंट में पैसे डलवाना, उनका हित नहीं, अहित करना है। बच्चों को तो यह समझाना चाहिए कि पैसे पेड़ पर नहीं उगते, अगर हैं तो उनका सही जगह पर इस्तेमाल होना चाहिए। मासिक जेबखर्च तय करें और यह पक्का करें कि उससे किताबों, मेंबरशिप, ट्रैवल और दूसरे वाजिब खर्च पूरे हो जाएं।
तीसरी बात, बजट बनाते वक्त बच्चों को पास बैठाएं। वे भी तो देखें कि कितना बाहर खाने और कितना फोन बिल पर खर्च होगा। बच्चा कुछ लग्जरी एंजॉय करना चाहता है तो उसको पार्टटाइम काम के लिए प्रोत्साहित करें, जैसे-वेटर। इस काम से वह जानेगा कि वक्त की पाबंदी क्या होती है, उम्मीद पर खरा कैसे उतरा जाता है, बेहतर परफॉर्मेंस कैसे दिया जा सकता है। पैसे थोड़े भी हों, उनकी कीमत का पता चलेगा।
चौथी बात, अलग अलग मद में खर्च का हिसाब रखने वाले ऑनलाइन सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल सिखाएं। सिक्यॉर ई-ट्रांजैक्शन और ई-वॉलेट का यूज कैसे करें, कैश के मिनिमम यूज से हिसाब-किताब में कैसे आसानी होती है, इन सबके बारे में भी बताएं। उससे अकाउंट डिटेल शेयर करने के लिए कहें ताकि वह आपकी नजर में हो। हर खर्च पर सवाल उठाने की जरूरत नहीं, लेकिन हिसाब-किताब तो उनको देना ही होगा।
पांचवीं बात, उनको बताते रहें कि उनके खर्च पर दोस्तों की भी नजर होती है। उनकी अच्छी आदतों से ग्रुप की भी आदत अच्छी होगी। कई बार बच्चे जॉइंट फूड बिल, ट्रिप एक्सपेंस की शेयरिंग के सवाल पर शर्माते हैं लेकिन कोई भी बच्चा कमा नहीं रहा होता है तो उनको चाहिए कि खर्च वाजिब हिसाब से शेयर करें। दोस्तों को उधार देने की आदत से बचना चाहिए। इसमें रिकवरी नहीं होने पर दोस्त और पैसा दोनों चले जाते हैं।
छठी बात, कोशिश करें कि बच्चे को जेबखर्च के लिए याद न दिलाना पड़े। तय तारीख पर उसके पास जेब खर्च का पैसा होना चाहिए। इससे उनको चीजें बेहतर तरीके से मैनेज करने में आसानी होगी।
उमा शशिकांत
(सेंटर फॉर इनवेस्ट में एजुकेशन एंड लर्निंग की चेयरपर्सन)
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