Career After Graduation In IIT: कोरोना में हुए लॉकडाउन के बाद आईआईटी कंपनियों में जॉब्स की बहार आई हुई है। देशी-विदेशी दर्जनों कंपनियां इस समय हजारों वैकंसी निकाल रही हैं। देश की सिर्फ 5 टॉप आईटी कंपनियां टीसीएस, इन्फोसिस, विप्रो, एचसीएल टेक्नोलॉजीज और टेक महिंद्रा ही इस वित्तीय वर्ष के लिए कैम्पस से 91,000 को नौकरी देने की योजना बनाई है। इसके अलावा कई अन्य देशी-विदेशी कंपनियां हैं, जो लाखों लोगों को नौकरी देंगी, भर्तीयों में इसलिए बढ़ोतरी हुई है क्योंकि लॉकडाउन कम होने के बाद मांग में तेजी आई है।
आईआईटी कैंपस से पढ़ाई के बाद विकल्प
आईआईटी कैंपस में पढ़ाई खत्म होने से पहले ही प्लेसमेंट की खबरें फैलने लगती हैं। बड़ी-बड़ी मल्टीनैशनल कंपनियां अपने ऑफर के साथ कैंपस में एंट्री करती हैं। हालांकि अब देखा जा रहा है कि आईआईटी में प्लेसमेंट का पैटर्न बदल रहा है। छात्र अब पढ़ाई पूरी करने के बाद अपना खुद का र्स्टाटअप शुरू करने पर फोकस कर रहे हैं। यही कारण है कि अब ऐसे छात्रों की मदद करने के लिए भारतीय स्टार्टअप आगे आए हैं। इसमें महत्वपूर्ण भूमिका मोदी सरकार के 2016 में शुरू किए गए र्स्टाटअप इंडिया योजना की भी है।
स्टार्टअप कैंपस प्लेसमेंट में ले रहे भाग
बता दें कि अब कई स्टार्टअप कंपनियां भी लगातार कैंपस प्लेसमेंट में भाग ले रही हैं। कई स्टार्टअप छात्रों को नौकरी के कई अच्छे अवसर दे रहे हैं और छात्र भी इनसे खुलकर जुड़ रहे हैं। छात्रों का मानना है कि नामी औी बड़ी कंपनियों की जगह वह इन कंपनियों से जुड़कर बेहतर कर सकते हैं।
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स्टार्टअप छोटे शहरों के लिए ज्यादा फायदेमंद
फोर्ब्स इंडिया के अनुसार, स्टार्टअप इंडिया अभियान के तहत भारत में नए बिजनेस तेजी से अपनी जगह बना रहे हैं और जोरदार प्रतिस्पर्धा दिख रहा है। देश के बड़े शहरों की तुलना में छोटे शहर र्स्टाटअप इंडिया मुहिम को तेजी से अपना रहे हैं। इंदौर, जयपुर, रायपुर तथा चंडीगढ़ जैसे शहरों में यह अभियान ज्यादा कामयाबी हासिल कर रहा है।
छोटे शहरों में स्टार्टअप को लेकर बढ़े रुझान के पीछे कई अहम कारण हैं। बड़े शहर ट्रैफिक समस्या, सड़कों पर भारी भीड़ और महंगाई की मार झेलते हैं। मुंबई, दिल्ली और बेंगलुरू जैसे बड़े शहरों को आए दिन भारी ट्रैफिक के कारण कई कामकाजी घंटों का नुकसान उठाना पड़ता है। जबकि छोटे शहरों में देखा जाए तो यहां पर ट्रैफिक जाम की कोई बड़ी समस्या नहीं होती। जाम नहीं होने के कारण लोगों का समय बर्बाद नहीं होता, मजदूरी सस्ती होती है और लागत भी ज्यादा नहीं होती।
दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा स्टार्टअप हब
नॉस्कॉम के अनुसार भारत इस समय दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा स्टार्टअप हब बन गया है। हालांकि अभी भी शीर्ष पर कायम 2 देशों की तुलना में भारत काफी पीछे है। सबसे सफल कंपनियों यानी यूनिकॉर्न के नंबरों के आधार पर देखा जाए तो अमेरिका और चीन में सबसे ज्यादा क्रमशः 126 और 77 यूनिकॉर्न हैं जबकि भारत में इसकी संख्या 18 तक पहुंच गई। इंग्लैंड में 15 और जर्मनी में 6 यूनिकॉर्न हैं।
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अवसर हैं बड़े
पिछले कुछ वर्षों में युवाओं में एंटरप्रेन्योरशिप के प्रति बढ़ते रुझान के कारण देश में स्टार्टअप इकोसिस्टम में अच्छी प्रगति देखी गई है। नवाचार और जोखिम से जूझने के उनके सकारात्मक जज्बे के कारण यह विश्वास निरंतर मजबूत हो रहा है। टेक्नोलाजी का सपोर्ट भी देश में स्टार्टअप की वृद्धि को गति प्रदान कर रहा है। इंटरनेट की सुलभता, इसका उपयोग करने वालों की संख्या में तेज वृद्धि और इंटरनेट शुल्क में कमी ने स्टार्टअप इकोसिस्टम के विस्तार में एक अहम भूमिका निभाई है।
वर्तमान में पचास करोड़ से ज्यादा भारतीय संपूर्ण देश में इंटरनेट सेवाओं का उपयोग कर रहे हैं। कोरोना महामारी के इस दौर में भारत के ज्ञान-विज्ञान और टेक्नोलाजी ने न केवल खुद को साबित किया है बल्कि खुद को आगे भी बढ़ाया है। ऐसे में स्टार्टअप को ऐसे इंस्टीट्यूशंस का निर्माण करना चाहिए जो ऐसे विश्वस्तरीय उत्पाद तैयार कर सकें, जो उत्कृष्टता के मामले में एक बेहतर मानक स्थापित कर सकें।
आईआईटी कैंपस से पढ़ाई के बाद विकल्प
आईआईटी कैंपस में पढ़ाई खत्म होने से पहले ही प्लेसमेंट की खबरें फैलने लगती हैं। बड़ी-बड़ी मल्टीनैशनल कंपनियां अपने ऑफर के साथ कैंपस में एंट्री करती हैं। हालांकि अब देखा जा रहा है कि आईआईटी में प्लेसमेंट का पैटर्न बदल रहा है। छात्र अब पढ़ाई पूरी करने के बाद अपना खुद का र्स्टाटअप शुरू करने पर फोकस कर रहे हैं। यही कारण है कि अब ऐसे छात्रों की मदद करने के लिए भारतीय स्टार्टअप आगे आए हैं। इसमें महत्वपूर्ण भूमिका मोदी सरकार के 2016 में शुरू किए गए र्स्टाटअप इंडिया योजना की भी है।
स्टार्टअप कैंपस प्लेसमेंट में ले रहे भाग
बता दें कि अब कई स्टार्टअप कंपनियां भी लगातार कैंपस प्लेसमेंट में भाग ले रही हैं। कई स्टार्टअप छात्रों को नौकरी के कई अच्छे अवसर दे रहे हैं और छात्र भी इनसे खुलकर जुड़ रहे हैं। छात्रों का मानना है कि नामी औी बड़ी कंपनियों की जगह वह इन कंपनियों से जुड़कर बेहतर कर सकते हैं।
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स्टार्टअप छोटे शहरों के लिए ज्यादा फायदेमंद
फोर्ब्स इंडिया के अनुसार, स्टार्टअप इंडिया अभियान के तहत भारत में नए बिजनेस तेजी से अपनी जगह बना रहे हैं और जोरदार प्रतिस्पर्धा दिख रहा है। देश के बड़े शहरों की तुलना में छोटे शहर र्स्टाटअप इंडिया मुहिम को तेजी से अपना रहे हैं। इंदौर, जयपुर, रायपुर तथा चंडीगढ़ जैसे शहरों में यह अभियान ज्यादा कामयाबी हासिल कर रहा है।
छोटे शहरों में स्टार्टअप को लेकर बढ़े रुझान के पीछे कई अहम कारण हैं। बड़े शहर ट्रैफिक समस्या, सड़कों पर भारी भीड़ और महंगाई की मार झेलते हैं। मुंबई, दिल्ली और बेंगलुरू जैसे बड़े शहरों को आए दिन भारी ट्रैफिक के कारण कई कामकाजी घंटों का नुकसान उठाना पड़ता है। जबकि छोटे शहरों में देखा जाए तो यहां पर ट्रैफिक जाम की कोई बड़ी समस्या नहीं होती। जाम नहीं होने के कारण लोगों का समय बर्बाद नहीं होता, मजदूरी सस्ती होती है और लागत भी ज्यादा नहीं होती।
दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा स्टार्टअप हब
नॉस्कॉम के अनुसार भारत इस समय दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा स्टार्टअप हब बन गया है। हालांकि अभी भी शीर्ष पर कायम 2 देशों की तुलना में भारत काफी पीछे है। सबसे सफल कंपनियों यानी यूनिकॉर्न के नंबरों के आधार पर देखा जाए तो अमेरिका और चीन में सबसे ज्यादा क्रमशः 126 और 77 यूनिकॉर्न हैं जबकि भारत में इसकी संख्या 18 तक पहुंच गई। इंग्लैंड में 15 और जर्मनी में 6 यूनिकॉर्न हैं।
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अवसर हैं बड़े
पिछले कुछ वर्षों में युवाओं में एंटरप्रेन्योरशिप के प्रति बढ़ते रुझान के कारण देश में स्टार्टअप इकोसिस्टम में अच्छी प्रगति देखी गई है। नवाचार और जोखिम से जूझने के उनके सकारात्मक जज्बे के कारण यह विश्वास निरंतर मजबूत हो रहा है। टेक्नोलाजी का सपोर्ट भी देश में स्टार्टअप की वृद्धि को गति प्रदान कर रहा है। इंटरनेट की सुलभता, इसका उपयोग करने वालों की संख्या में तेज वृद्धि और इंटरनेट शुल्क में कमी ने स्टार्टअप इकोसिस्टम के विस्तार में एक अहम भूमिका निभाई है।
वर्तमान में पचास करोड़ से ज्यादा भारतीय संपूर्ण देश में इंटरनेट सेवाओं का उपयोग कर रहे हैं। कोरोना महामारी के इस दौर में भारत के ज्ञान-विज्ञान और टेक्नोलाजी ने न केवल खुद को साबित किया है बल्कि खुद को आगे भी बढ़ाया है। ऐसे में स्टार्टअप को ऐसे इंस्टीट्यूशंस का निर्माण करना चाहिए जो ऐसे विश्वस्तरीय उत्पाद तैयार कर सकें, जो उत्कृष्टता के मामले में एक बेहतर मानक स्थापित कर सकें।
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