पूनम पांडे, नई दिल्ली
अमेरिका की फर्जी यूनिवर्सिटी की मार इंडियन स्टूडेंट्स पर भी पड़ रही है। वहां कुछ यूनिवर्सिटीज को ब्लैकलिस्टेड बताते हुए इंडियन स्टूडेंट्स को यहां डिपोर्ट करने का मामला सामने आने के बाद स्टूडेंट्स को ज्यादा सतर्क होने की जरूरत है। एजुकेशन कंसल्टेंट्स के मुताबिक स्टूडेंट्स को खुद सारी चीजें चेक करने के बाद ही किसी भी फॉरेन यूनिवर्सिटी में जाने का फैसला करना चाहिए।
जरूरी नहीं यूनिवर्सिटी गलत हो : स्टडी अब्रॉड कंसल्टेंट 'द चोपड़ाज' की मैनेजिंग डायरेक्टर नताशा चोपड़ा कहती हैं कि अमेरिका की जिन यूनिवर्सिटीज को लेकर सवाल उठ रहे हैं वह दावा कर रही हैं कि वह ब्लैकलिस्टेड नहीं हैं और वह अक्रीडेटेड हैं। ऐसे में हम बिना पूरी पड़ताल किए इस नतीजे पर नहीं पहुंच सकते कि यूनिवर्सिटी की ही गलती है। जबकि कई मामलों में हम देखते हैं कि स्टूडेंट्स बस किसी भी तरह फॉरेन यूनिवर्सिटी में पढ़ने के चक्कर में गलत एजेंटों के चंगुल में पड़ जाते हैं जो उन्हें फर्जी सर्टिफिकेट देकर बाहर भिजवाते हैं। स्टूडेंट्स को ऐसे लोगों के चंगुल से बचना चाहिए और फर्जी सर्टिफिकेट और फर्जी डॉक्युमेंट्स का सहारा लेने वालों से दूर रहना चाहिए।
कोर्स का अक्रीडेशन भी देखें : नताशा कहती हैं कि जिस यूनिवर्सिटी में स्टूडेंट्स पढ़ने जा रहे हैं, उसका अक्रीडेशन चेक करने के साथ ही उस कोर्स का अक्रीडेशन भी जरूर जांच लें जिस कोर्स में वह ऐडमिशन लेना चाहते हैं। कई बार यूनिवर्सिटी तो अक्रीडेटेट होती है लेकिन उसके नाम से कई ऐसे कोर्स भी चल रहे होते हैं जो अक्रीडेटेड नहीं होते। सस्ते में किसी भी कोर्स की फॉरेन डिग्री हासिल करने की ललक के चक्कर में स्टूडेंट्स ऐसे धोखे में फंस जाते हैं। कोर्स अक्रीडेशन न होने पर कोर्स पूरा भी कर लें तो जॉब मिलने में दिक्कत होगी।
यह भी जानें : अमेरिका में यूनिवर्सिटीज को कई कैटिगरी व रैंकों में बांटा जाता है। जो सबसे निचले रैंक पर होती हैं वे इमिग्रेशन रैकेट चला रही होती हैं। उनकी वेबसाइट पर अकैडमिक कोर्स दिख रहा होता है मगर लाइसेंसिंग से जुड़े मुद्दे उठ सकते हैं। हर स्टेट या सिटी में यूएस ऐंबेसी की एक एजेंसी होती है जो स्टूडेंट्स को बेस्ट यूनिवर्सिटी चुनने और फर्जी से बचने की सलाह देती है। जिन यूनिवर्सिटीज के छात्रों को डिपोर्ट किया गया है, मुमकिन है कि उनके खिलाफ जांच पेंडिंग हो।
अमेरिका की फर्जी यूनिवर्सिटी की मार इंडियन स्टूडेंट्स पर भी पड़ रही है। वहां कुछ यूनिवर्सिटीज को ब्लैकलिस्टेड बताते हुए इंडियन स्टूडेंट्स को यहां डिपोर्ट करने का मामला सामने आने के बाद स्टूडेंट्स को ज्यादा सतर्क होने की जरूरत है। एजुकेशन कंसल्टेंट्स के मुताबिक स्टूडेंट्स को खुद सारी चीजें चेक करने के बाद ही किसी भी फॉरेन यूनिवर्सिटी में जाने का फैसला करना चाहिए।
जरूरी नहीं यूनिवर्सिटी गलत हो : स्टडी अब्रॉड कंसल्टेंट 'द चोपड़ाज' की मैनेजिंग डायरेक्टर नताशा चोपड़ा कहती हैं कि अमेरिका की जिन यूनिवर्सिटीज को लेकर सवाल उठ रहे हैं वह दावा कर रही हैं कि वह ब्लैकलिस्टेड नहीं हैं और वह अक्रीडेटेड हैं। ऐसे में हम बिना पूरी पड़ताल किए इस नतीजे पर नहीं पहुंच सकते कि यूनिवर्सिटी की ही गलती है। जबकि कई मामलों में हम देखते हैं कि स्टूडेंट्स बस किसी भी तरह फॉरेन यूनिवर्सिटी में पढ़ने के चक्कर में गलत एजेंटों के चंगुल में पड़ जाते हैं जो उन्हें फर्जी सर्टिफिकेट देकर बाहर भिजवाते हैं। स्टूडेंट्स को ऐसे लोगों के चंगुल से बचना चाहिए और फर्जी सर्टिफिकेट और फर्जी डॉक्युमेंट्स का सहारा लेने वालों से दूर रहना चाहिए।
कोर्स का अक्रीडेशन भी देखें : नताशा कहती हैं कि जिस यूनिवर्सिटी में स्टूडेंट्स पढ़ने जा रहे हैं, उसका अक्रीडेशन चेक करने के साथ ही उस कोर्स का अक्रीडेशन भी जरूर जांच लें जिस कोर्स में वह ऐडमिशन लेना चाहते हैं। कई बार यूनिवर्सिटी तो अक्रीडेटेट होती है लेकिन उसके नाम से कई ऐसे कोर्स भी चल रहे होते हैं जो अक्रीडेटेड नहीं होते। सस्ते में किसी भी कोर्स की फॉरेन डिग्री हासिल करने की ललक के चक्कर में स्टूडेंट्स ऐसे धोखे में फंस जाते हैं। कोर्स अक्रीडेशन न होने पर कोर्स पूरा भी कर लें तो जॉब मिलने में दिक्कत होगी।
यह भी जानें : अमेरिका में यूनिवर्सिटीज को कई कैटिगरी व रैंकों में बांटा जाता है। जो सबसे निचले रैंक पर होती हैं वे इमिग्रेशन रैकेट चला रही होती हैं। उनकी वेबसाइट पर अकैडमिक कोर्स दिख रहा होता है मगर लाइसेंसिंग से जुड़े मुद्दे उठ सकते हैं। हर स्टेट या सिटी में यूएस ऐंबेसी की एक एजेंसी होती है जो स्टूडेंट्स को बेस्ट यूनिवर्सिटी चुनने और फर्जी से बचने की सलाह देती है। जिन यूनिवर्सिटीज के छात्रों को डिपोर्ट किया गया है, मुमकिन है कि उनके खिलाफ जांच पेंडिंग हो।
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