Flipped Classroom Benefits: डिजिटल क्रांति से जिस तरह काम की प्रकृति बदल रही है, वैसे ही इस फील्ड में डिजिटल की जानकारी रखने वाले लोगों की मांग भी बढ़ती जा रही है। इसलिए शिक्षण और सीखने की तकनीक लगातार विकसित हो रही है, इसमें सबसे बड़ा योगदान कोरोना महामारी ने दिया है, इसके आने के बाद से एजुकेशन फील्ड में टेक्नोलॉजी को अपनाने में तेजी लाई है।
क्या है फ्लिप्ड क्लासरूम और कैसे करता है काम
यह पारंपरिक टीचिंग से एकदम अलग है। इसके तहत टीचर्स अपने लेक्चर्स रिकॉर्ड करते हैं और उन वीडियो को ऑनलाइन पोस्ट कर देते हैं, जिन्हें स्टूडेंट्स एक्सेस कर सकते हैं। छात्र इन वीडियोज को देखकर घर पर पढ़ते हैं। अगले दिन टीचर्स पोस्टेड लेक्चर से जुड़ी एक्टिविटीज करवाते हैं और स्टूडेंट्स इनमें हिस्सा लेते हैं। अगर टॉपिक से जुड़ा कोई भी कॉन्सेप्ट क्लियर न हो तो वे ऑनलाईन सवाल भी पूछ सकते हैं। इससे टीचर्स हरेक स्टूडेंट की समस्या पर ध्यान दे पाते हैं। साथ ही स्टूडेंट्स से इंटरेक्शन के लिए भी उन्हें अधिक समय मिलता है। छात्र अपनी हर तरह की समस्याएं टीचर से ऑनलाइन चैट के जरिए भी सुलझा सकते हैं।
आज के समय में क्यों है इसकी जरूरत
ऐसा नहीं है कि फ्लिप्ड क्लासरूम कोरोना आने के बाद शुरू हुआ। यह कई वर्ष पहले से है, लेकिन भारत में यह सभी छात्रों तक कोरोना के कारण पहुंचा। इसके अपनाए जाने की मुख्य वजह बेमेल शिक्षक-छात्र अनुपात के चलते खराब रिजल्ट है। यानी छात्र ज्यादा और टीचर्स कम जिसका असर सीधे रिजल्ट पर होता है। दूसरी वजह यह भी है कि क्लास में पूरा वक्त लेक्चर में दिए जाने की वजह से छात्र और शिक्षक इंटरेक्शन काफी कम हो जाता है। वहीं कोरोना में छात्र जब अपने घरों में कैद थे और स्कूल-कॉलेज बंद पड़े थे तो फ्लिप्ड क्लासरूम ने ही छात्रों की पढ़ाई में सबसे ज्यादा मदद की।
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यह कैसे करता है छात्रों की मददगार
फ्लिप्ड क्लासरूम में लेक्चर्स समयबद्ध नहीं होते, इसलिए उन्हें छात्र कितनी भी बार देखे सकते हैं। एक लेक्टर को बार-बार देखने से छात्रों की लर्निंग स्किल बढ़ती है, साथ ही उनके सभी प्रश्नों के उत्तर भी मिल जाते हैं, अगर कोई छात्र कुछ भूल रहा है तो वह दोबारा से लेक्चर देख सकता है। इससे स्टूडेंट्स जो कुछ भी पढ़ते हैं, उसे अगले दिन वे प्रैक्टिस में लाने की कोशिश करते हैं। फ्लिप्ड क्लासरूम पारंपरिक टीचिंग शैली को पूरी तरह से नए और इनोवेटिव कॉन्सेप्ट में बदलता है जो शिक्षकों को बेहतर ढंग से सिखाने और स्टूडेंट्स को आसानी से सीखने में मदद करता है। यह एक्टिव लर्निंग का एक प्रकार है जहां स्टूडेंट्स को व्यस्त रखने के लिए अलग-अलग स्ट्रैटेजी होती है। कोरोना से पहले देश के बी स्कूल्स फ्लिप्ड क्लासरूम का उपयोग कर रहे थे, लेकिन अब यह सभी कॉलेज से लेकर स्कूल तक फैल चुका है।
फ्लिप्ड क्लासरूम के फायदे
पारंपरिक क्लास रूम और फ्लिप्ड क्लासरूम में अंतर
पारंपरिक क्लासरूम
फ्लिप्ड क्लासरूम
क्या है फ्लिप्ड क्लासरूम और कैसे करता है काम
यह पारंपरिक टीचिंग से एकदम अलग है। इसके तहत टीचर्स अपने लेक्चर्स रिकॉर्ड करते हैं और उन वीडियो को ऑनलाइन पोस्ट कर देते हैं, जिन्हें स्टूडेंट्स एक्सेस कर सकते हैं। छात्र इन वीडियोज को देखकर घर पर पढ़ते हैं। अगले दिन टीचर्स पोस्टेड लेक्चर से जुड़ी एक्टिविटीज करवाते हैं और स्टूडेंट्स इनमें हिस्सा लेते हैं। अगर टॉपिक से जुड़ा कोई भी कॉन्सेप्ट क्लियर न हो तो वे ऑनलाईन सवाल भी पूछ सकते हैं। इससे टीचर्स हरेक स्टूडेंट की समस्या पर ध्यान दे पाते हैं। साथ ही स्टूडेंट्स से इंटरेक्शन के लिए भी उन्हें अधिक समय मिलता है। छात्र अपनी हर तरह की समस्याएं टीचर से ऑनलाइन चैट के जरिए भी सुलझा सकते हैं।
आज के समय में क्यों है इसकी जरूरत
ऐसा नहीं है कि फ्लिप्ड क्लासरूम कोरोना आने के बाद शुरू हुआ। यह कई वर्ष पहले से है, लेकिन भारत में यह सभी छात्रों तक कोरोना के कारण पहुंचा। इसके अपनाए जाने की मुख्य वजह बेमेल शिक्षक-छात्र अनुपात के चलते खराब रिजल्ट है। यानी छात्र ज्यादा और टीचर्स कम जिसका असर सीधे रिजल्ट पर होता है। दूसरी वजह यह भी है कि क्लास में पूरा वक्त लेक्चर में दिए जाने की वजह से छात्र और शिक्षक इंटरेक्शन काफी कम हो जाता है। वहीं कोरोना में छात्र जब अपने घरों में कैद थे और स्कूल-कॉलेज बंद पड़े थे तो फ्लिप्ड क्लासरूम ने ही छात्रों की पढ़ाई में सबसे ज्यादा मदद की।
इसे भी पढ़ें: Career In Optometrist: ऑप्टोमेट्रिस्ट में करियर बनाना हुआ आसान, मिलेगी अच्छी जॉब
यह कैसे करता है छात्रों की मददगार
फ्लिप्ड क्लासरूम में लेक्चर्स समयबद्ध नहीं होते, इसलिए उन्हें छात्र कितनी भी बार देखे सकते हैं। एक लेक्टर को बार-बार देखने से छात्रों की लर्निंग स्किल बढ़ती है, साथ ही उनके सभी प्रश्नों के उत्तर भी मिल जाते हैं, अगर कोई छात्र कुछ भूल रहा है तो वह दोबारा से लेक्चर देख सकता है। इससे स्टूडेंट्स जो कुछ भी पढ़ते हैं, उसे अगले दिन वे प्रैक्टिस में लाने की कोशिश करते हैं। फ्लिप्ड क्लासरूम पारंपरिक टीचिंग शैली को पूरी तरह से नए और इनोवेटिव कॉन्सेप्ट में बदलता है जो शिक्षकों को बेहतर ढंग से सिखाने और स्टूडेंट्स को आसानी से सीखने में मदद करता है। यह एक्टिव लर्निंग का एक प्रकार है जहां स्टूडेंट्स को व्यस्त रखने के लिए अलग-अलग स्ट्रैटेजी होती है। कोरोना से पहले देश के बी स्कूल्स फ्लिप्ड क्लासरूम का उपयोग कर रहे थे, लेकिन अब यह सभी कॉलेज से लेकर स्कूल तक फैल चुका है।
फ्लिप्ड क्लासरूम के फायदे
- फ्लिप्ड क्लासरूम में छात्र समूह में पढ़ाई कर सकते हैं और अपने आइडियाज एक दूसरे से शेयर कर सकते हैं।
- सभी स्टूडेंट पर ध्यान देने के लिए टीचर्स अधिक समय निकाल पाते हैं और उनके सवालों का जवाब भी दे पाते हैं।
- स्टूडेंट्स को इससे लेक्चर को रिवाइज करने का मौका मिलता है।
- खुद की जिम्मेदारी पर पढ़ाई के चलते स्टूडेंट्स ज्यादा आत्मनिर्भर होते हैं।
- किसी वजह से अनुपस्थित चल रहे छात्र भी इसका फायदा ले सकते हैं।
- ऑडियो और विजुअल चीजें ज्यादा जल्दी और बेहतर ढंग से दिमाग में कैद होती हैं, इसलिए इन्हें याद रख पाना सरल होता है।
पारंपरिक क्लास रूम और फ्लिप्ड क्लासरूम में अंतर
पारंपरिक क्लासरूम
- पहले से तैयार नोट्स के द्वारा टीचर क्लास में पढ़ाते हैं।
- क्लासरूम में आने से पहले स्टूडेंट्स किसी तरह की तैयारी नहीं करते।
- स्टूडेंट्स के पास पहले से कोई सूचना नहीं होती कि क्या पढ़ाया जाएगा।
- क्लासरूम में छात्रों के पास सवाल पूछने का समय नहीं होता।
- क्लासरूम में स्टूडेंट्स लेक्चर को समझने की कोशिश करते रहते हैं।
- क्लासरूम में टीचर स्टूडेंट्स को ग्रेड देते हैं।
फ्लिप्ड क्लासरूम
- टीचर अपने लेक्चर रिकॉर्ड करके ऑनलाइन पोस्ट करते हैं।
- इसमें छात्र टॉपिक के अपलोड वीडियो देखकर, अपने सभी प्रश्नों का समाधान करते हैं।
- छात्रों को टॉपिक के बारे में पहले से पता होता है, इसलिए वे लेक्चर के लिए पूरी तरह तैयार होते हैं।
- स्टूडेंट्स द्वारा तैयार टॉपिक पर भी एक्टिविटीज करवाई जाती हैं।
- सवालों के स्पष्टीकरण के लिए छात्रों को काफी समय होता है।
- इसमें जो कुछ पढ़ा है उसे आजमाना सिखाया जाता है।
- टीचर संबंधित टॉपिक से जुड़ी अतिरिक्त जानकारी पोस्ट करते रहते हैं।
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