मुंबई
इस्तीफा देने के बाद अगर आप कंपनी के काउंटरऑफर को स्वीकार कर लेते हैं यानी अधिक सैलरी पर काम करने को मान जाते हैं तो यह आपको भारी पड़ सकता है। यह बात एक हालिया सर्वे में सामने आई है। ग्लोबल रिक्रूटमेंट फर्म एंटल इंटरनैशनल नेटवर्क की 'काउंटर ऑफर ए क्लाइंट्स प्रॉस्पेक्टिव' स्टडी से पता चला कि कंपनियां टेंपररी प्रॉब्लम से बचने के लिए काउंटरऑफर्स देती हैं। वह इस दौरान रिप्लेसमेंट एंप्लॉयी की तलाश करती हैं।
एंटल इंटरनैशनल इंडिया के मैनेजिंग डायरेक्टर जोसेफ देवासिया ने बताया, 'ज्यादातर कंपनियां टैलेंटेड प्रफेशनल्स को अपने साथ रखना चाहती हैं। इसलिए कई बार एंप्लॉयी के इस्तीफा देने पर वे ज्यादा सैलरी ऑफर करती हैं। हालांकि, इसका असर कंपनी के सालाना बजट पर पड़ता है। इसलिए वे रिप्लेसमेंट की तलाश में भी रहती हैं।' 10-20 साल से ज्यादा का एक्सपीरियंस रखने वाले 107 ह्यूमन रिसोर्सेज मैनेजर्स के बीच किए गए सर्वे में पाया गया कि 76.6 फीसदी ऑर्गनाइजेशंस काउंटरऑफर पर भरोसा रखते हैं, जबकि करीब 70.1 फीसदी पार्टिसिपेंट्स ने इसे सही रास्ता नहीं माना।यह सर्वे सिर्फ इकनॉमिक टाइम्स के साथ शेयर किया गया है। इसमें शामिल होने वाले ज्यादातर लोगों का यह भी कहना है कि काउंटरऑफर स्वीकार करने के बाद एंप्लॉयीज लंबे समय तक ऑर्गनाइजेशन में नहीं रहते। 70.1 फीसदी पार्टिसिपेंट्स के मुताबिक, ऐसे एंप्लॉयीज एक साल से कम समय में कंपनी छोड़ देते हैं।
सर्वे में शामिल 73.8 फीसदी लोगों ने कहा कि जिन एंप्लॉयीज को काउंटरऑफर दिया गया, वे उन्हें बाद में निकालने को मजबूर हुए। उनके मुताबिक, ये एंप्लॉयीज पहले की तरह कंपनी के लिए वैल्यू ऐड नहीं कर रहे थे। कई मामलों में काउंटरऑफर सिर्फ इसलिए दिया गया, ताकि रिप्लेसमेंट की तलाश की जा सके। 55.1 फीसदी पार्टिसिपेंट्स ने कहा कि काउंटरऑफर में एंप्लॉयीज अधिक सैलरी की उम्मीद करते हैं। वहीं, 27.1 फीसदी कंपनी में बड़ा रोल चाहते हैं। देवासिया के मुताबि, कई बार एंप्लॉयीज को अच्छी वेतन बढ़ोतरी या बड़ी जिम्मेदारी देने संबंधी काउंटरऑफर पूरे नहीं होते। इसलिए बाद में वह दूसरी नौकरी की तलाश करने लगता है।
मैनेजमेंट कंसल्टिंग फर्म कॉर्न फेरी हे ग्रुप के सीनियर क्लाइंट पार्टनर देबब्रत मिश्रा का कहना है, 'काउंटरऑफर से पूर्वग्रह का पता लगता है, जिसमें कोई ऑर्गनाइजेशन मानता है कि उसके पास किसी को भी बनाए रखने की पावर है। हालांकि, जो व्यक्ति नौकरी छोड़ रहा है, वह ऐसा इसलिए कर रहा है, क्योंकि वह मौजूदा कंपनी से खुश नहीं है या नए ऑफर से बहुत खुश है।' काउंटरऑफर देने से कंपनियों को कम से कम छोटी अवधि में एंप्लॉयीज रिटेंशन में मदद मिलती है, लेकिन एक्सपर्ट्स का कहना है कि यह ट्रेंड ठीक नहीं है।
इस्तीफा देने के बाद अगर आप कंपनी के काउंटरऑफर को स्वीकार कर लेते हैं यानी अधिक सैलरी पर काम करने को मान जाते हैं तो यह आपको भारी पड़ सकता है। यह बात एक हालिया सर्वे में सामने आई है। ग्लोबल रिक्रूटमेंट फर्म एंटल इंटरनैशनल नेटवर्क की 'काउंटर ऑफर ए क्लाइंट्स प्रॉस्पेक्टिव' स्टडी से पता चला कि कंपनियां टेंपररी प्रॉब्लम से बचने के लिए काउंटरऑफर्स देती हैं। वह इस दौरान रिप्लेसमेंट एंप्लॉयी की तलाश करती हैं।
एंटल इंटरनैशनल इंडिया के मैनेजिंग डायरेक्टर जोसेफ देवासिया ने बताया, 'ज्यादातर कंपनियां टैलेंटेड प्रफेशनल्स को अपने साथ रखना चाहती हैं। इसलिए कई बार एंप्लॉयी के इस्तीफा देने पर वे ज्यादा सैलरी ऑफर करती हैं। हालांकि, इसका असर कंपनी के सालाना बजट पर पड़ता है। इसलिए वे रिप्लेसमेंट की तलाश में भी रहती हैं।' 10-20 साल से ज्यादा का एक्सपीरियंस रखने वाले 107 ह्यूमन रिसोर्सेज मैनेजर्स के बीच किए गए सर्वे में पाया गया कि 76.6 फीसदी ऑर्गनाइजेशंस काउंटरऑफर पर भरोसा रखते हैं, जबकि करीब 70.1 फीसदी पार्टिसिपेंट्स ने इसे सही रास्ता नहीं माना।यह सर्वे सिर्फ इकनॉमिक टाइम्स के साथ शेयर किया गया है। इसमें शामिल होने वाले ज्यादातर लोगों का यह भी कहना है कि काउंटरऑफर स्वीकार करने के बाद एंप्लॉयीज लंबे समय तक ऑर्गनाइजेशन में नहीं रहते। 70.1 फीसदी पार्टिसिपेंट्स के मुताबिक, ऐसे एंप्लॉयीज एक साल से कम समय में कंपनी छोड़ देते हैं।
सर्वे में शामिल 73.8 फीसदी लोगों ने कहा कि जिन एंप्लॉयीज को काउंटरऑफर दिया गया, वे उन्हें बाद में निकालने को मजबूर हुए। उनके मुताबिक, ये एंप्लॉयीज पहले की तरह कंपनी के लिए वैल्यू ऐड नहीं कर रहे थे। कई मामलों में काउंटरऑफर सिर्फ इसलिए दिया गया, ताकि रिप्लेसमेंट की तलाश की जा सके। 55.1 फीसदी पार्टिसिपेंट्स ने कहा कि काउंटरऑफर में एंप्लॉयीज अधिक सैलरी की उम्मीद करते हैं। वहीं, 27.1 फीसदी कंपनी में बड़ा रोल चाहते हैं। देवासिया के मुताबि, कई बार एंप्लॉयीज को अच्छी वेतन बढ़ोतरी या बड़ी जिम्मेदारी देने संबंधी काउंटरऑफर पूरे नहीं होते। इसलिए बाद में वह दूसरी नौकरी की तलाश करने लगता है।
मैनेजमेंट कंसल्टिंग फर्म कॉर्न फेरी हे ग्रुप के सीनियर क्लाइंट पार्टनर देबब्रत मिश्रा का कहना है, 'काउंटरऑफर से पूर्वग्रह का पता लगता है, जिसमें कोई ऑर्गनाइजेशन मानता है कि उसके पास किसी को भी बनाए रखने की पावर है। हालांकि, जो व्यक्ति नौकरी छोड़ रहा है, वह ऐसा इसलिए कर रहा है, क्योंकि वह मौजूदा कंपनी से खुश नहीं है या नए ऑफर से बहुत खुश है।' काउंटरऑफर देने से कंपनियों को कम से कम छोटी अवधि में एंप्लॉयीज रिटेंशन में मदद मिलती है, लेकिन एक्सपर्ट्स का कहना है कि यह ट्रेंड ठीक नहीं है।
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