आज शालिनी दिल्ली के एक बड़े हॉस्पिटल में परचेजिंग ऑफिसर के रूप में काम कर रही है। सैलरी अच्छी है और पसंद का काम भी। उसे चार साल पहले किसी जानकार ने मटीरियल मैनेजमेंट कोर्स के बारे में बताया था। शालिनी को कोर्स का कॉन्टेन्ट अच्छा लगा। उसने कोर्स फाइनल किया और उसे तुरंत ही जॉब मिल गई। आज वह जॉब के साथ ओपन लर्निंग से एमबीए भी कर रही है। एमबीए कंप्लीट करने के बाद उसकी आमदनी लगभग दोगुनी हो जाएगी।
सरकार ने रिटेल में एफडीआई को मंजूरी दी है। वहीं पिछले दो दशकों से लगातार भारत में विदेशी कंपनियों की मौजूदगी बढ़ी है। इन कंपनियों में हर दिन कच्चे माल की खरीद और रेडीमेड सामानों को बेचने के लिए मार्केट में भेजा जाता है। ऐसे में कच्चे माल और तैयार माल की स्टॉकिंग, अकाउंटिंग और इश्यू करने का काम कंपनी की रुटीन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। इसके लिए कंपनियों को मटीरियल मैनेजमेंट के जानकारों की जरूरत पड़ती है।
जबर्दस्त है मांग प्राइवेट कंपनियों में ही नहीं बल्कि गवर्नमेंट हाउसेस में भी हर साल करोड़ों रुपये की खरीदारी होती है। इन सामानों की खरीद-फरोख्त की प्रक्रिया को बारीकी से जानने, माल को संभालकर स्टोर में रखने और फिर उसे दूसरे विभागों में इस्तेमाल के लिए भेजने के काम में स्टोर कीपर, स्टोर मैनेजर और परचेजिंग ऑफिसर की जरूरत पड़ती है।
आपका काम
किसी कंपनी, इंडस्ट्री या गवर्नमेंट डिपार्टमेंट में जिस माल की सप्लाई हुई है, उसके स्टैंडर्ड को देखना। इसकी परख करना मटीरियल मैनेजमेंट का अहम हिस्सा है। ऐसा नहीं करने पर उद्योगों के कामकाज में जो समान इस्तेमाल किए जाते हैं, उसमें गड़बड़ी की आशंका बनी रहती है। घटिया माल का इस्तेमाल कई बार उत्पादन को बुरी तरह से प्रभावित करता है। ऐसा होने पर तय समय में उत्पादन का जो लक्ष्य हासिल करना होता है, वह नहीं हो पाता। इसलिए मुख्य तौर पर इस काम से जुड़े लोगों की जिम्मेदारी होती है कि वह सामान की जांच करे। संस्थानों ने इसके लिए अलग से पोस्ट तैयार किया है।
पढ़ाई
वोकेशनल कोर्स के रूप में मटीरियल मैनेजमेंट के विविध रूपों से रूबरू कराया जाता है। कोर्स की बात करें तो कॉलेज ऑफ वोकेशनल स्टडीज में पहले साल में छात्रों को किसी भी कंपनी में परचेजिंग व स्टोर मैनेजमेंट क्या है और किस तरह से होता है, इसका फंडा समझाया जाता है। उसके इंटर डिसिप्लनरी कोर्स के तहत कॉमर्स का एक पेपर मटीरियल की बेहतर समझ के लिए उससे जुड़े एक-एक इंटर डिसिप्लनरी पेपर को पढ़ाया जाता है। इसके बाद मटीरियल मैनेजमेंट और कंट्रोल के बारे में बताया जाता है। साथ ही फाउंडेशन कोर्स के तहत कंप्यूटर फंडामेंटल, सॉफ्टवेयर पैकेजेज, कंप्यूटराइज्ड अकाउंटिंग और बिजनस कम्यूनिकेशन कैसे की जाती है, इसकी जानकारी दी जाती है। आर्गेनाइज्ड ऐंड मैनेजमेंट ऑफ बिजनस की समझ पैदा की जाती है। आखिरी साल में मटीरियल मैनेजमेंट के विभिन्न पहलुओं और मटीरियल बजटिंग के बारे में बताया जाता है। इसके साथ ही छात्रों को प्रोडक्शन की प्रक्रिया और सप्लाई चेन मैनेजमेंट के बारे में समझाया जाता है। इंटर डिसिप्लनरी कोर्स के तहत छात्र बिजनस लॉ से भी अवगत होते हैं।
कुछ खास बातें
रिटेल में एफडीआई की मंजूरी के बाद इस कोर्स के जानकारों की मांग में बढ़ोतरी।
सरकारी और प्राइवेट हर जगह जरूरत है इनके जानकारों की।
सैलरी शुरुआत में कम से कम चार से पांच लाख रुपये हर वर्ष।
अगर एमबीए भी कर लिया तो सोने पर सुहागा।
आप स्टोर ऑफिसर, स्टोर अकाउंटेंट, परचेजिंग ऑफिसर, लॉजिस्टिक ऑफिसर आदि के रूप में काम करेंगे। जितना अनुभव होगा सैलरी भी उतनी ही बढ़ेगी।
सरकार ने रिटेल में एफडीआई को मंजूरी दी है। वहीं पिछले दो दशकों से लगातार भारत में विदेशी कंपनियों की मौजूदगी बढ़ी है। इन कंपनियों में हर दिन कच्चे माल की खरीद और रेडीमेड सामानों को बेचने के लिए मार्केट में भेजा जाता है। ऐसे में कच्चे माल और तैयार माल की स्टॉकिंग, अकाउंटिंग और इश्यू करने का काम कंपनी की रुटीन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। इसके लिए कंपनियों को मटीरियल मैनेजमेंट के जानकारों की जरूरत पड़ती है।
जबर्दस्त है मांग प्राइवेट कंपनियों में ही नहीं बल्कि गवर्नमेंट हाउसेस में भी हर साल करोड़ों रुपये की खरीदारी होती है। इन सामानों की खरीद-फरोख्त की प्रक्रिया को बारीकी से जानने, माल को संभालकर स्टोर में रखने और फिर उसे दूसरे विभागों में इस्तेमाल के लिए भेजने के काम में स्टोर कीपर, स्टोर मैनेजर और परचेजिंग ऑफिसर की जरूरत पड़ती है।
आपका काम
किसी कंपनी, इंडस्ट्री या गवर्नमेंट डिपार्टमेंट में जिस माल की सप्लाई हुई है, उसके स्टैंडर्ड को देखना। इसकी परख करना मटीरियल मैनेजमेंट का अहम हिस्सा है। ऐसा नहीं करने पर उद्योगों के कामकाज में जो समान इस्तेमाल किए जाते हैं, उसमें गड़बड़ी की आशंका बनी रहती है। घटिया माल का इस्तेमाल कई बार उत्पादन को बुरी तरह से प्रभावित करता है। ऐसा होने पर तय समय में उत्पादन का जो लक्ष्य हासिल करना होता है, वह नहीं हो पाता। इसलिए मुख्य तौर पर इस काम से जुड़े लोगों की जिम्मेदारी होती है कि वह सामान की जांच करे। संस्थानों ने इसके लिए अलग से पोस्ट तैयार किया है।
पढ़ाई
वोकेशनल कोर्स के रूप में मटीरियल मैनेजमेंट के विविध रूपों से रूबरू कराया जाता है। कोर्स की बात करें तो कॉलेज ऑफ वोकेशनल स्टडीज में पहले साल में छात्रों को किसी भी कंपनी में परचेजिंग व स्टोर मैनेजमेंट क्या है और किस तरह से होता है, इसका फंडा समझाया जाता है। उसके इंटर डिसिप्लनरी कोर्स के तहत कॉमर्स का एक पेपर मटीरियल की बेहतर समझ के लिए उससे जुड़े एक-एक इंटर डिसिप्लनरी पेपर को पढ़ाया जाता है। इसके बाद मटीरियल मैनेजमेंट और कंट्रोल के बारे में बताया जाता है। साथ ही फाउंडेशन कोर्स के तहत कंप्यूटर फंडामेंटल, सॉफ्टवेयर पैकेजेज, कंप्यूटराइज्ड अकाउंटिंग और बिजनस कम्यूनिकेशन कैसे की जाती है, इसकी जानकारी दी जाती है। आर्गेनाइज्ड ऐंड मैनेजमेंट ऑफ बिजनस की समझ पैदा की जाती है। आखिरी साल में मटीरियल मैनेजमेंट के विभिन्न पहलुओं और मटीरियल बजटिंग के बारे में बताया जाता है। इसके साथ ही छात्रों को प्रोडक्शन की प्रक्रिया और सप्लाई चेन मैनेजमेंट के बारे में समझाया जाता है। इंटर डिसिप्लनरी कोर्स के तहत छात्र बिजनस लॉ से भी अवगत होते हैं।
कुछ खास बातें
रिटेल में एफडीआई की मंजूरी के बाद इस कोर्स के जानकारों की मांग में बढ़ोतरी।
सरकारी और प्राइवेट हर जगह जरूरत है इनके जानकारों की।
सैलरी शुरुआत में कम से कम चार से पांच लाख रुपये हर वर्ष।
अगर एमबीए भी कर लिया तो सोने पर सुहागा।
आप स्टोर ऑफिसर, स्टोर अकाउंटेंट, परचेजिंग ऑफिसर, लॉजिस्टिक ऑफिसर आदि के रूप में काम करेंगे। जितना अनुभव होगा सैलरी भी उतनी ही बढ़ेगी।
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