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सफल होना है तो भूल कर भी न करें ये गलतियां

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जब चीजें मनमाफिक न हों तो घबराएं नहीं, उसे पाने की कोशिश ज्यादा मेहनत से करें। क्योंकि धैर्य की जरूरत मंजिल के करीब ही सबसे ज्यादा होती है। बता रहे हैं लोकेश के. भारती...

अमित ने आईटी फील्ड की एक वर्षीय डिग्री हासिल की है। डिग्री हासिल किए उसे 4 महीने हो चुके हैं। ऐडमिशन से पहले इंस्टिट्यूट ने वादा किया था कि उसका कैंपस प्लेसमेंट हो जाएगा, लेकिन विकास के कुछ फ्रेंड्स का तो प्लेसमेंट हो गया, पर उस जैसे कई स्टूडेंट का नहीं हुआ। इसके बाद से वह चार बार इंटरव्यू भी दे चुका है। लेकिन उसके हाथ अब भी खाली हैं। वह कुछ फ्रस्टेट होता जा रहा है, लेकिन उसके दिमाग में यह बात पूरी तरह साफ है कि जॉब मेहनत करने से ही मिलेगी। वह अपने दिए हुए इंटरव्यू के बारे में विस्तार से सोचता है कि आखिर गलती कहां हुई है। इसके बारे में वह अपने सीनियर से पूछता है। फिर विस्तार से बात करने पर पता चलता है कि अमित अपने टैलंट और अच्छाइयों के बारे में इंटरव्यूर के सामने सही ढंग से एक्सप्रेस नहीं कर पाता है।

अगली बार जब अमित इंटरव्यू देने जाता है, तो वह अपनी बातों को सही ढंग से रख पाता है। साथ ही वह इस बात पर भी जोर देते हुए कहता है कि उसे चुनकर कंपनी कभी पछताएगी नहीं, क्योंकि उसे केवल मेहनत पर ही यकीन है। ऐसे जवाबों से इंटरव्यूर इंप्रेस हो जाता है और उसे पहली जॉब मिल जाती है। इस कहानी से कई बातें साफ हो जाती हैं। पहली बात तो यह कि हार कभी न मानें। दूसरी, असफलता के कारणों की सूक्ष्मता से जांच करें और उसके बाद उसमें सुधार करें।

इंतजार करना भी जरूरी
यह जरूरी नहीं कि सफलता पहली या दूसरी बार में ही मिले। ऐसे तमाम उदाहरण मिल जाएंगे जब एक कोशिश में सफलता नहीं मिलती है। कई बार इंतजार भी करना पड़ता है। इंतजार का मतलब यह नहीं है कि इंतजार में उम्र ही गुजार दें। इंतजार से सीधा तात्पर्य है कि धैर्य बनाकर रखना। धैर्य वही बनाकर रख सकता है जो इंतजार करने के लिए भी तैयार है। क्योंकि यह भी सच है कि इंतजार का फल मीठा होता है, इसमें दो राय नहीं है।

बेहतर है पछताने से
ऐसे कई लोग आपको मिल जाएंगे जो यह कहते रहते हैं कि काश! मैंने कुछ समय और धैर्य से काम लिया होता और तैयारी जारी रखता तो सफलता मिल जाती। संजय कुमार, स्टेट सिविल सर्विसेस की तैयारी दो साल से कर रहा था। उसने पिछले दोनों बार पीटी की परीक्षा पास की थी, लेकिन मुख्य परीक्षा में सफलता हासिल नहीं कर पा रहा था। तीसरी बार में वह पीटी और मुख्य परीक्षा दोनों पास कर गया, लेकिन साक्षात्कार में सफल नहीं हो सका। इस समय तक वह परेशान हो चुका था। उसने आनन-फानन में एक प्राइवेट फर्म में काफी कम सैलरी वाली जॉब जॉइन कर ली। वहीं उसके ऐसे कुछ दोस्त थे जो अब तक एक बार भी पीटी एग्जाम में भी सफल नहीं हो पाए थे, उन लोगों ने तैयारी जारी रखी और अंतत: वे स्टेट सिविल सर्विस में क्वॉलिफाई कर गए और उनकी पोस्टिंग भी हो गई। जबकि उससे बेहतर तैयारी करने वाला संजय आज भी पछता रहा है और दूसरों को सुनाता है कि काश! उसने कुछ और समय तैयारी की होती। इसलिए यह अहम है कि हम अमूमन धैर्य उस समय खोते हैं जब सफलता हमारे काफी करीब होती है।

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