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ऐसे पढ़ेंगे तो स्कोरिंग होगा अकाउंट्स का पेपर

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बुक कीपिंग एक स्कोरिंग सब्जेक्ट है क्योंकि इसमें छात्रों के पास फुल मार्क्स स्कोर करने का स्कोप रहता है, अगर वे सभी चैप्टर्स और एंट्रीज़ पर अच्छी पकड़ हासिल कर लें। यहां तक कि ऐवरेज स्टूडेंट्स या आखिरी मिनट पर पढ़ाई करने वाले छात्र भी इसमें ठीक-ठाक मार्क्स हासिल कर सकते हैं और सिंगल एंट्री, पोस्टिंग ऑफ फाइनल अकाउंट जैसे टॉपिक्स पढ़कर आसानी से पास हो सकते हैं।

इसलिए इस सब्जेक्ट को लेकर छात्र बिल्कुल घबराएं नहीं और परीक्षा का डट कर सामना करें। इस बारे में घाटकोपर (प.) स्थित रामनिरंजन झुनझुनवाला कॉलेज में कॉमर्स की एचओडी प्रफेसर परनीता मुद्देबिहालकर और प्रफेसर श्वेता शाह दे रहे हैं कुछ अहम सलाहें...

Q1. वैकल्पिक (ऑब्जेक्टिव्स) सवाल- (5 में से कोई 3 करें) (15 मार्क्स)।

Q1 में C, D और E अक्सर आसान होते हैं और इनमें आप फुल मार्क्स हासिल कर सकते हैं, यदि सही-सही लिखें तो। बिल ऑफ एक्सचेंज फॉर्मैट भी 5 मार्क्स स्कोर करने में सहायक रहता है।

Q2. सिंगल एंट्री सिस्टम पर प्रैक्टिकल प्रॉब्लम (8 मार्क्स) या फिर फाइनैंशल स्टेटमेंट पर थिअरी सवाल (8 मार्क्स)।

इसमें A और B दो पॉइंट रहते हैं (दोनों 4-4 मार्क्स के)

हमारा सुझाव है कि यदि छात्रों को इन सवालों में से एक करने का विकल्प मिले तो अगर उनकी सिंगल एंट्री प्राब्लम पर बेहतर पकड़ हो तो वे वही लिखें, क्योंकि इसमें वे फुल मार्क्स स्कोर कर सकते हैं। कारण कि बैलेंस शीट से वे वाकिफ होते हैं और प्रॉफिट ऐंड लॉस अकाउंट एक बार समझ आ जाए तो करना बेहद आसान होता है। जबकि दूसरी ओर, फाइनैंशल स्टेटमेंट क्योंकि थिअरी का सवाल है, इसलिए यदि छात्र इसमें एकदम सटीक पॉइंट्स न लिखें तो मार्क्स गंवा सकते हैं।

Q3. ऐडमिशन/रिटायरमेंट/डेथ ऑफ पार्टनर पर प्रॉब्लम (10 मार्क्स)।

या फिर इसी टॉपिक से जुड़ा कोई अन्य सवाल

ऐडमिशन का चैप्टर अच्छे से समझना बेहद जरूरी है क्योंकि यह टॉपिक दो अन्य टॉपिक्स पर क्लैरिटी देता है, जो कि रिटायरमेंट और डेथ से जुड़े हैं।

Q4. बिल ऑफ एक्सचेंज पर प्रैक्टिकल प्रॉब्लम (10 मार्क्स)।

बिल ऑफ एक्सचेंज में दो तरीके (मेथड) होते हैं। दोनों में से कोई भी तरीका परीक्षा में पूछा जा सकता है, इसलिए छात्रों को दोनों तरीके अच्छे से समझ लेने चाहिए। जर्नल एंट्रीज पढ़ लेना भी बेहद जरूरी है, क्योंकि बिल ऑफ एक्सचेंज में यह बेहद अहम है।

जर्नल एंट्रीज को इस तरह अलग करके दिखा सकते हैं-

बिल्स एंट्री

बिल्स ऑनर्ड

बिल्स डिसऑनर्ड

रिन्यूअल आदि, जिनसे टॉपिक को आसानी से समझाया जा सकता है

Q5. डिसल्यूशन ऑफ पार्टनरशिप फर्म पर प्रॉब्लम (10 मार्क्स)।

या फिर अकाउंटिंग ऑफ शेयर्स/डिबेंचर्स पर प्रॉब्लम (10 मार्क्स)

डिसल्यूशन प्रॉब्लम पहले के चैप्टर्स के समान ही है और आसान भी। इसमें भी छात्र फुल मार्क्स हासिल कर सकते हैं। जबकि, शेयर्स और डिबेंचर्स नए चैप्टर हैं इसलिए इन्हें उनके लिए इसे सॉल्व करना थोड़ा मुश्किल हो सकता है।

Q6. 'नॉट फॉर प्रॉफिट कन्सर्न' पर आने वाली प्रैक्टिकल प्रॉब्लम (12 मार्क्स)।

अक्सर छात्रों को यह चैप्टर बाकी की तुलना में जरा मुश्किल लगता है, क्योंकि यह नया टॉपिक है। हालांकि यदि इसका अर्थ अच्छे से समझ लिया जाए और रेवेन्यू व कैपिटल इनकम तथा रेवेन्यू व कैपिटल एक्पेंसेस के बीच में फर्क समझ लिया जाए, तो यह मुश्किल नहीं रहता।

Q7. फाइनल अकाउंट्स पर प्रॉब्लम (15 मार्क्स)।

यह छात्रों के लिए सबसे आसान विषय है, क्योंकि यह उन्होंने 11वीं में भी पढ़ा होता है। पहले पढ़ा होने की वजह से इसमें छात्र बेहतर स्कोर कर सकते हैं क्योंकि ट्रेडिंग, प्रॉफिट ऐंड लॉस अकाउंट और बैलेंस शीट में पोस्टिंग करना उनके लिए मुश्किल नहीं होना चाहिए। क्लोजिंग स्टॉक, डेप्रीसिएशन, आरडीडी, आउटस्टैंडिंग आदि की अजस्टमेंट्स ज्यादातर रिपिटिटिव होती है और कॉमन भी।

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