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CBSE 12th Maths Paper 2019: गणित का पेपर कल, अच्छे स्कोर के लिए पढ़ें लास्ट मिनट टिप्स

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CBSE 12th Maths Paper 2019 18 मार्च 2019 को होने जा रहा है। 12th गणित का पेपर साइंस और कॉमर्स दोनो स्ट्रीम के छात्रों के लिए अहम होता है। इसी पेपर को लेकर दोनों ही स्ट्रीम के छात्र सबसे ज्यादा नर्वस भी होते हैं लेकिन यह एक ऐसा पेपर भी है जिसकी अगर सही तरीके से तैयारी की जाए तो अच्छा स्कोर आसानी से किया जा सकता है। अन्य सबजेक्ट्स की तरह इसमें नंबर कटने के चांस कम होते हैं।

यहां हम आपको गणित के पेपर में अच्छे अंक लाने के आसान टिप्स के बारे में बता रहे हैं।

CBSE 12 Maths Paper 2019 Weightage 2019

यूनिट

अंक

Relations & Functions

10

Algebra

13

Calculus

44

Vector & 3-Dimensional Geometry

17

Linear Programming

6

Probability

10


-टेबल में आप देख सकते हैं सबसे ज्यादा वेटेज Calculus को दी गई है इसलिए यह सबसे अहम पार्ट है इसमें Limit of Sum, Maxima और Minima application problems आदि शामिल होते हैं। अगर आप इन टॉपिक्स पर सबसे ज्यादा मेहनत करेंगे तो अच्छे अंक आने की उम्मीद सबसे ज्यादा होगी। इसमें कई बार ग्राफ की मदद से किसी क्षेत्र का क्षेत्रफल पूछा जाता है।

-गणित की तैयारी में सबसे जरूरी है कि आपको सभी फॉर्मूले याद होने चाहिए। अब सबसे ज्यादा पूछे जाने वाले सवाल भी याद कर सकते हैं। परीक्षा के दौरान यह काफी काम आ कते हैं

-सबसे पहले NCERT की किताबों में पूछे गए सवालों को हल करने की कोशिश करें इसके बाद सेंपल पेपर में पूछे गए सवालों को हल करें। आपको NCERT की किताबों की पूरी जानकारी होनी चाहिए इसके इसके बाद ही अन्य किताबों के सवालों को हल करें।

-तैयारी का एक सबसे अहम तरीका है कि आप पिछले साल के सेंपल पेपर को हल करें और कोशिश करें कि 3 घंटे के भीतर आप पेपर को पूरा हल कर लें ऐसा करने से आपके अंदर कॉन्फिडेंस पैदा होगा।

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CBSE 12 Economics Paper 2019: इकोनॉमिक्स का पेपर कल, पढ़ें लास्ट मिनट टिप्स

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Central Board Of Secodary Education (CBSE) 27 मार्च 2019 को अर्थशास्त्र यानी इकोनॉमिक्स के पेपर का आयोजन कर रहा है। यह पेपर सुबह 10.30 बजे शुरू हो जाएगा जो दोपहर 1.30 बजे तक चलेगा। छात्रों को सुबह 10 बजे एग्जाम सेंटर पहुंचना होगा और 10.15 बजे उन्हे क्वेश्चन पेपर दे दिया जाएगा। आर्ट्स और कॉमर्स स्ट्रीम के छात्रों के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण पेपर है।

इस परीक्षा में कई कठिन सवाल भी पूछे जाते हैं जो कई बार छात्रों को कन्फ्यूज कर जाते हैं। अगर आप ठीक से तैयारी करके जाएं तो इस पेपर में अच्छे अंक भी प्राप्त कर सकते हैं। पेपर के समय कुछ ऐसी चीजों का ध्यान रखें जो आपको अंक दिलवाने में सहायक हो सकती है।

-इकोनॉमिक्स के पेपर में ग्राफ का काफी महत्व है लेकिन केवल ग्राफ बनाने से ही आपको अच्छे अंक नहीं मिल जाएंगे। इस ग्राफ की पूरी जानकारी भी लिखें। ग्राफ और इसकी डीटेल आपको अच्छें अंक दिलवा सकती है।

-इस पेपर में कुछ टॉपिक ऐसे हैं जिनमें सबसे ज्यादा अंकों के सवाल पूछे जाते हैं इसलिए इन टॉपिक पर ज्यादा ध्यान दें जैसे Consumer’s Equilibrium and Demand, Producer Behaviour and Supply, Determination of Income and Employment आदि।

-पेपर से पहले कुछ समय बचा है ऐसे में केवल CBSE Class 12 Economics Syllabus 2019 पर ही फोकस करें। केवल उसी टॉपिक पर फोकस करें जो सीबीएसई ने बताएं हैं।

-ग्राफ और डायग्राम बनाकर प्रैक्टिस करें इससे आपके अंदर पेपर के दौरान डायग्राम और ग्राफ बनाने का कॉन्फिडेंस पैदा होगा। कागज और पेन से बनाकर देखें। ऐसा करने से यह आपको लंबे समय तक याद रहेगा।

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करियर: जानें, 10वीं-12वीं के बाद क्या करें

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बोर्ड परीक्षाओं का दौर खत्म होने वाला है और इसी के साथ करियर को सही दिशा देने का वक्त भी शुरू हो चुका है। स्टूडेंट्स और उनके पैरंट्स की जिंदगी में 10वीं और 12वीं दो अहम पड़ाव होते हैं। इन दो पड़ावों के पार करियर को लेकर तमाम तरह के भ्रम और सवाल उनके दिमाग में होते हैं। इन्हीं के जवाब एक्सपर्ट्स से बात कर दे रहे हैं लोकेश के. भारती...

केस:1
नारायण को 12वीं में 98 फीसदी अंक आए थे। बचपन से ही वह पढ़ने में तेज थे। पापा आईएएस ऑफिसर हैं। इसलिए पैसे की भी कोई समस्या नहीं। पैरंट्स का कोई दबाव नहीं था कि क्या बनना है, लेकिन यह चाहत जरूर थी कि बेटा इंजिनियर या फिर विदेश में किसी बड़े कॉलेज से अच्छी डिग्री ले। 12वीं में शानदार परफॉर्मेंस के बाद नारायण का ऐडमिशन भी दुनिया के टॉप स्कूलों में से एक 'ब्रिटिश कोलंबिया' के साइंस विंग में हो गया, लेकिन नारायण को मजा नहीं आ रहा था। पापा से बात करने पर यह निर्णय लिया गया कि एक अच्छे करियर काउंसलर से मिला जाए। अपॉइंटमेंट मिलने के बाद काउंसलिंग हुई तो नतीजा कुछ और निकला। दरअसल, नारायण को फुटबॉल खेलने में मजा आता था। 10वीं तक उसने स्कूल की तरफ से स्टेट लेवल का मैच खेला था, लेकिन 11वीं से पैरंट्स, टीचर्स और खुद नारायण को लगा कि पढ़ाई में भी परफॉर्मेंस बेहतर है तो पढ़ाई-लिखाई ही की जाए। ऐसे में फुटबॉल में आगे बढ़ने की सोच को रिवर्स किक लग गई। काउंसलर ने जब नारायण के इस पसंद के बारे में पैरंट्स को बताया तो वह चौंक गए, लेकिन फौरन मान भी गए। नारायण को बेहतर ट्रेनिंग के लिए फुटबॉल के एक इलिट क्लब में ऐडमिशन कराया गया। अभी नारायण वालेंसिया (स्पेन) की तरफ से मैच खेलते हैं। कमाई अभी बहुत ज्यादा नहीं, फिर भी साल के 3 से 4 करोड़ रुपये तो हैं ही।

केस:2
दिसंबर 2018 में श्रेयस को उसके पैरंट्स एक करियर काउंसलर के पास ले गए। वजह यह थी कि डांस में रुचि रखने वाले श्रेयस को साइंस और मैथ्स में दिलचस्पी बिलकुल नहीं थी, इसके बावजूद उसके पैरंट्स उससे आईआईटी क्रैक करवाना चाहते थे। हालत यह थी कि श्रेयस 9वीं और 10वीं में साइंस और मैथ्स पेपर के फाइनल टेस्ट में 40 फीसदी से भी कम अंक पाए थे। इतने कम अंक आने के बाद आगे साइंस रखने के बारे में सोचा भी नहीं जा सकता, लेकिन पैरंट्स के लिए यह नाक की लड़ाई बन गई थी और इस लड़ाई में बच्चा पिस रहा था। खैर, जब वे करियर काउंसलर के पास गए तो उन्होंने साफ कहा कि बच्चे का आईआईटी क्रैक करना बहुत मुश्किल है। एक तो इसका साइंस और मैथ्स कमजोर है, फिर इन्हें पढ़ने में इसकी दिलचस्पी भी नहीं है। काउंसलर ने सलाह दी कि श्रेयस को डांसिंग में ही करियर बनाने दें। लेकिन उसके पैरंट्स अड़े रहे तो काउंसलर ने उन्हें सलाह दी कि बच्चे की काउंसलिंग के साथ आपको भी काउंसलिंग लेनी चाहिए। काफी समझाने-बुझाने के बाद आखिरकार श्रेयस के पैरंट्स मान गए। अब यह फाइनल हो चुका है कि 11वीं-12वीं में वह साइंस या मैथ्स नहीं रखेगा।

वैसे, देखा जाए तो ऐसी गलतियां करने वाले श्रेयस के पैरंट्स अकेले नहीं हैं। ऐसे पैरंट्स की संख्या बहुत ज्यादा है। बच्चों के लिए करियर के चुनाव के वक्त अक्सर पैरंट्स ऐसी ही गलतियां करते हैं।

कुछ गलतियां जो करियर के चुनाव के वक्त पैरंट्स और बच्चे अक्सर करते हैं:

गलती नं. 1
10वीं में साइंस में 90 फीसदी से ज्यादा नंबर मिले हैं तो आगे साइंस ही पढ़नी चाहिए।

सही क्या: ऐसा बिलकुल भी नहीं है। किसी विषय में शानदार अंक पाना और उस विषय में करियर बनाना, दोनों अलग-अलग बातें हैं। करियर बनाने का सीधा-सा मतलब है कि स्टूडेंट को उस खास विषय में 12वीं, ग्रैजुएशन या पोस्ट ग्रैजुएशन भी करना है। चूंकि 12वीं से सिलेबस अचानक बहुत बड़ा हो जाता है। इसलिए 10वीं में नंबर लाना और इसके बाद भी अच्छा परफॉर्मेंस करना दोनों में काफी अंतर होता है। ऐसा देखा गया है कि 100 में 20 से 30 बच्चे जिनके 10वीं में 90 फीसदी से भी ज्यादा अंक आए थे, 12वीं में वे 50 से 60 फीसदी के लिए भी तरसते हैं।

गलती नं. 2
मेरे दोस्त यही पढ़ रहे हैं इसलिए मैं भी यही पढूंगा।
सही क्या: अगर 100 बच्चों की बात करें तो इस तरह की गलती करने वाले कम से कम 15 से 20 बच्चे जरूर मिलेंगे। दोस्तों को देखकर या दोस्ती न टूटे इसलिए या फिर अगर कोई बच्चा तेज है तो उससे नोट्स या दूसरी मदद मिलती रहेगी, इन चक्करों में बच्चे गलत चुनाव कर लेते हैं। अब स्थिति ऐसी बनती है कि बच्चे की दिलचस्पी है ह्यूमेनिटीज में, लेकिन दोस्त की वजह से वह चुन लेता है साइंस या कॉमर्स। अब पढ़ाई में मन लगेगा कहां से! ऐसे में हायर स्टडीज में जाते ही सब्जेक्ट बदलने की नौबत बन जाती है। ऐसे में जिस बच्चे के 10वीं बोर्ड में 80 फीसदी अंक आए थे, वह 12वीं में 60 फीसदी के लिए तरसता है। तो बेहतर रहेगा कि जिसमें दिल लगे उसे ही चुनें।

गलती नं. 3
मेरा बच्चा, मेरा सपना

यह गलती काफी पैरंट्स करते हैं। वे अपनी सोच, चाहत और नाकामियों की पूर्ति बच्चों से करवाना चाहते हैं। इस तरह की सोच बिलकुल गलत है। हर बच्चे की अपनी काबिलियत और चाहत होती है। हर कोई डॉक्टर या इंजिनियर नहीं बन सकता। आज तो 3000 से भी ज्यादा करियर ऑप्शंस हैं।

गलती नं. 4
बच्चों को जो अच्छा लगे, वही करे

यह अप्रोच सही है, लेकिन सौ फीसदी नहीं। अमूमन 10वीं के बच्चे करियर को लेकर पूरी तरह से मच्योर नहीं होते। कुछ बच्चे तो अपनी बातों और इच्छाओं को पूरी तरह व्यक्त कर पाते हैं, जबकि कई या तो कर नहीं पाते या चीजों को ठीक तरह से समझ नहीं पाते। ऐसे में पैरंट्स को चाहिए कि वह बच्चों से बात करें और जरूरत पड़े तो करियर काउंसलर की मदद लें।

गलती नं. 5
लोग क्या कहेंगे

ऐसे मामले भी खूब होते हैं। बच्चे और पैरंट्स सोचते हैं कि साइंस पढ़ना ब्रिलियंट होने की निशानी है। ऐसे में अगर आर्ट्स लेंगे तो लोग क्या कहेंगे? समाज में नाक तो नहीं कट जाएगी? लेकिन ऐसा सोचते हुए वे यह नहीं सोचते कि जब साइंस या कॉमर्स में बहुत कम अंक आएंगे तब बेइज्जती ज्यादा होगी। बेशक अगर सब्जेक्ट्स को पढ़ने का दिल ही नहीं करेगा तो बच्चा मजबूरी में पढ़ेगा और ऐसे में अच्छे अंक कहां से आएंगे?

गलती नं. 6
जो जॉब दिलाए वह चुनो

प्लानिंग वर्तमान के आधार पर जरूर हो, लेकिन लक्ष्य भविष्य को देखते हुए करनी चाहिए। यानी कि भविष्य उस सेक्टर में जॉब की डिमांड कैसी रहेगी। मसलन, आज आर्टिफिशल इंटेलिजेंस (AI) की डिमांड बढ़ी है। अगले 5 साल या उसके बाद के बरसों में इस क्षेत्र में जॉब देने वाली कंपनियों की संख्या उसी अनुपात में बढ़ेंगी जैसा इंडिया के आईटी हब बनने के दौरान हुआ था। इसलिए भविष्य को देखकर ही निर्णय लेना चाहिए।

गलती नं. 7
आर्थिक स्थिति कोई मुद्दा नहीं है

अक्सर बच्चे या पैरंट्स दूसरों की देखादेखी विदेश में पढ़ाई का फैसला लेते हैं। करियर के बारे में सोचते हुए अपनी फैमिली की आर्थिक स्थिति को भी ध्यान में रखना जरूरी है। पढ़ाई में पैसा बेहद अहम रोल अदा करता है। जब आप स्कूल में पढ़ते हैं तो कई तरह के स्टूडेंट्स से आपकी दोस्ती होती है। इनमें से किसी की आर्थिक स्थिति अच्छी होती है तो किसी की उतनी बेहतर नहीं होती। ऐसे में किसी दूसरे को देखकर अपने करियर की प्लानिंग न करें। अगर घर की आर्थिक सेहत अच्छी नहीं है तो आप महंगे कोर्स के बारे में सोच नहीं सकते। हां, स्कॉलरशिप या लोन के बल पर इनके बारे में आप सोच सकते हैं, लेकिन सौ फीसदी आश्वस्त नहीं हो सकते कि कर ही लेंगे। विदेश में पढ़ने की दो वजह होनी चाहिए। पहला यह कि वहीं बसना है, दूसरा यह कि जो कोर्स आप विदेश जाकर करना चाहते हैं वह देश में उपलब्ध नहीं है।

गलती नं. 8
मैं तो आईएएस के लिए ही बना हूं।

राकेश अक्सर अपने दोस्तों और रिश्तेदार से कह देते थे कि मैं तो सिर्फ आईएएस के लिए बना हूं। दरअसल, उसका एक जानने वाला आईएएस अफसर था। पैरंट्स 10वीं की रिजल्ट के बाद उसे एक करियर काउंसलर के पास ले गए। 10वीं में राकेश को 70 फीसदी अंक आए थे। जब काउंसलर ने राकेश से पूछा कि तुम क्यों आईएएस बनना चाहते हो तो उसने बताया कि आईएएस को मिलने वाली लाल बत्ती से प्रभावित हूं। काउसंलर ने कहा सिर्फ लाल बत्ती को देखकर आईएएस नहीं बना जा सकता। आईएएस की बहुत जिम्मेदारी होती है। जब राकेश से पूछा गया कि तुम्हें पता है कि आईएएस बनने के लिए धैर्य, विश्लेष्णात्मक क्षमता की बहुत ज्यादा जरूरत होती है। क्या तुम्हारी दिलचस्पी राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय घटनाओं में है। साथ ही हर साल यूपीएससी और स्टेट सिविल एग्जाम्स में 10 लाख से ज्यादा स्टूडेंट बैठते हैं। पूरी तैयारी में 3 से 4 साल या फिर इससे भी ज्यादा वक्त लग सकता है। यह सब सुनने के बाद राकेश ने पहले 12वीं को फोकस करने का मन बनाया।


बच्चे का रुझान और काबिलियत जाननी है तो कराएं सायकोमीट्रिक टेस्ट
इस टेस्ट से बच्चे के रुझान और काबिलियत की जानकारी मिलती है। इसमें ऐप्टिट्यूड टेस्ट और करियर इंटरेस्ट जैसे कई टेस्ट होते हैं। ऐप्टिट्यूड टेस्ट जहां स्टूडेंट की पूरी पर्सनैलिटी के लिए होता है वहीं करियर इंटरेस्ट टेस्ट सब्जेक्ट या करियर चुनने में मददगार होता है। ये टेस्ट किसी काम को करने की स्टूडेंट की काबिलियत के बारे में आइडिया देते हैं। मसलन अगर कोई बच्चा इंजिनियर बनना चाहता है तो क्या वह इस लायक है? यही नहीं, इंजिनियरिंग में किस ट्रेड में वह बेहतर परफॉर्म कर सकता है, इसकी भी जानकारी टेस्ट से मिल जाती है। इस टेस्ट के जरिए कोई एक करियर नहीं बल्कि कई करियर ऑप्शंस की सलाह दी जाती है। इस टेस्ट में 300-400 सवाल होते हैं जिनके जवाब 'हां' या 'ना' में देने होते हैं। हालांकि ध्यान रखें कि ये टेस्ट किसी अच्छे साइकॉलजिस्ट या करियर काउंसलर से ही कराएं। साथ ही, यह जानना भी जरूरी है कि वही टेस्ट भरोसेमंद हैं जिन्हें इंडियन स्टूडेंट्स के मुताबिक तैयार किया गया हो। आमतौर पर ये टेस्ट महंगे नहीं होते।

कितना भरोसेमंद है साइकोमीट्रिक टेस्ट
करियर काउंसलर की मदद लेने पर अमूमन यह टेस्ट जरूर कराया जाता है। इससे स्टूडेंट की पसंद, IQ और उसकी नॉलेज का पता चल जाता है, लेकिन इससे भी सौ फीसदी संतुष्ट आप नहीं हो सकते। इस टेस्ट के अलावा भी कई बातें होती हैं जिनका ध्यान रखना जरूरी है। इसमें फैमिली की आर्थिक स्थिति सबसे खास है। मसलन, कोई बच्चा विदेश जाकर कोर्स करना चाहता है, लेकिन उसकी फैमिली की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है तो वह बच्चा हमेशा ही दबाव में रहेगा। हो सकता है इस दबाव की वजह से उसकी परफॉर्मेंस पर असर पड़े।

करियर या सब्जेक्ट चुनने से पहले खुद से पूछें इनका जवाब
अगर आप किसी वजह से अपने बच्चे को करियर काउंसलर या साइकॉलजिस्ट के पास नहीं ले जाना चाहते तो भी खुद मोटा-मोटा अनुमान लगा सकते हैं। इसके लिए आपको बच्चे से कुछ सवाल पूछने होंगे...

1. कौन-सा सब्जेक्ट पढ़ने में मजा आता है?

2. किस सब्जेक्ट में सबसे ज्यादा नंबर आते हैं?

3. जिंदगी में क्या बनना चाहता है और क्यों?

4. जिस करियर को चुनना चाहता है, उसे 20-25 साल तक करने को तैयार हो या नहीं?

5. बाहर जाकर काम करना पसंद है या फिर ऑफिस के अंदर बैठ कर?

6. लोगों से मिलना पसंद है या फिर ज्यादा-से-ज्यादा किताबी नॉलेज हासिल करना?

7. बिजनेस से जुड़ी बुक्स पढ़ना अच्छा लगता है या आर्ट्स के बारे में पढ़ना?

8. खूब बातें करना पसंद है या चुपचाप रहना?

9. ज्यादा मेहनत वाला काम करना चाहते हैं या कम मेहनत वाला?

10. ट्रैवल करना पसंद है या एक ही जगह पर रहना?

इन सवालों के जवाब के बाद इतना तो पता चल ही जाता है कि बच्चे की पसंद क्या है और किसी तरह का काम करना उसके लिए सही रहेगा।

(क्या यहां हम इससे जुड़ा अनैलिसिस ले सकते हैं?)

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ध्यान भी और सावधान भी
- एक गलत फैसला लेने से अच्छा है फैसला लेने में देरी करना। 10वीं के बाद आपकी स्ट्रीम क्या होगी इसे लेकर आप तो सोच ही रहे होंगे, आपके पैरंट्स भी चिंतित होंगे। इसलिए आखिरी फैसले पर पहुंचने से पहले एक बार नहीं, सौ बार सोचें। किसी जानकार या करियर काउंसलर की मदद भी लें।

- करियर काउंसलर के पास जाने का फैसला भी तभी सही हो सकता है जब वह अच्छा काउंसलर हो। इन दिनों कई ऐसे करियर काउंसलर भी हैं जो किसी न किसी एजुकेशन इंस्टिट्यूट से कमिशन लेते हैं। आप जब उनसे सलाह लेने जाते हैं तो वे एक इंस्टिट्यूट के एजेंट के रूप में आपको सलाह देने लगते हैं, न कि काउंसलर के रूप में।

काउंसलर में क्या हो?

-कम से कम 5 साल का अनुभव हो।

-हर तरह की जानकारी हो।

-मॉर्डन और ऑफबीट करियर के बारे में भी पूरी जानकारी हो।

-बच्चों की साइकॉलजी पढ़ने की क्षमता हो, ताकि बच्चों से कनेक्ट कर सके।

-किसी खास इंस्टिट्यूट में जाने पर जोर नहीं देता हो।

-रिव्यू अच्छा हो।

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पैरंट्स दें इन 3 खास इक्कों पर ध्यान

1. बच्चा क्या चाहता है?

इस बात को सबसे ज्यादा अहमियत दें। सच तो यह है कि आज के बच्चों को इंटरनेट, टीचर्स और दोस्तों के माध्यम से करियर के बारे में कई ऐसी बातें पता होती हैं जिन्हें उनके पैरंट्स भी नहीं जानते।

2. स्कूल टीचर की क्या है राय?

अमूमन एक बच्चा 8 से 10 साल तक किसी स्कूल में पढ़ता है। ऐसे में वहां के टीचर्स को उस बच्चे के बारे में काफी कुछ पता होता है। बच्चे की कमियां, मजबूती, पसंद और नापसंद के बारे में वे खूब जानते हैं। ऐसे में टीचर्स की राय बहुत अहम होती है।

3. 10वीं के मार्क्स ही सब कुछ नहीं

अगर 10वीं के अंकों को आधार बनाकर ही सब्जेक्ट का चुनाव करना चाहते हैं तो यह देखना जरूरी होगा कि इन सब्जेक्ट्स में क्या पहले (क्लास 7, 8, 9 में) अच्छे अंक आए हैं। अगर नहीं आए हैं तो सिर्फ 10वीं के अंकों को आधार बनाकर सब्जेक्ट का चुनाव करना सही नहीं है।

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कुछ काम के सवाल और उनके जवाब

1. मेरी इच्छा है कि मैं ऐडवोकेट बनूं जबकि मेरी दिलचस्पी फिजिक्स और मैथ्स में है? मुझे मेरे सीनियर ने कहा है कि मैं आर्ट्स से पढ़ाई करूं। मैं क्या करूं?

10वीं के बाद 11वीं से अपने देश में लॉ की पढ़ाई नहीं होती है। आपको इसके लिए कम से कम 12वीं करनी होगी इसके बाद ही आप लॉ कर सकते हैं। वहीं आपने कहा है कि आपकी दिलचस्पी फिजिक्स में है लेकिन आप ऐडवोकेट बनना चाहते हैं। ऐसे में आपके लिए यह बेहतर है कि आप सायेंस का चुनाव ही आगे की पढ़ाई के लिए करें। दरअसल, सायेंस में दिलचस्पी से यह तो पता चल जाता है कि आपकी विश्लेषणात्मक क्षमता अच्छी है। ऐसे में लॉ में करियर बनाने के लिए यह आपके लिए फायदेमंद हो सकता है। ऐसा नहीं है कि आप आर्ट्स से पढ़ाई कर ऐडवोकेट नहीं बन सकते। पर सही विकल्प सायेंस ही है।

2. 10वीं में साइंस में 91 फीसदी अंक हैं। क्या मुझे आगे साइंस ही लेना चाहिए। मेरे पैरंट्स मुझे IIT की तैयारी करने के लिए कह रहे हैं। हालांकि मेरी दिलचस्पी अकाउंट्स में है?

किसी भी एग्जाम में 91 फीसदी अंक एक अच्छा प्रतिशत माना जा सकता है। वहीं 10वीं के लिए तो यह एक बेहतर प्रतिशत है ही। पर केवल इसी आधार पर आगे की पढ़ाई में साइंस सब्जेक्ट का चयन करना सही विकल्प नहीं है जबकि आपकी दिलचस्पी अकाउंट्स में है। दरअसल, अगर 10वीं और 11वीं के सिलेबस को ध्यान से देखेंगे तो दोनों में काफी फर्क है और दोनों का स्तर भी काफी अलग है। 10वीं का सिलेबस जहां आसान है, वहीं 11वीं का सिलेबस काफी बड़ा है। दूसरी बात यह है कि आपकी दिलचस्पी भी अकाउंट्स में ही है। ऐसे में आपको अपनी दिलचस्पी को ही तरजीह देनी चाहिए।

3. मेरा नाम स्वप्निल है। मेरे टीचर कहते हैं कि मुझे इंजिनियरिंग की तैयारी नहीं करनी चाहिए क्योंकि मुझमें IIT क्रैक करने वाला स्पार्क नहीं है। मेरे मैथ्स में 8वीं और 9वीं में अच्छे ग्रेड नहीं रहे हैं, पर मुझे मैथ्स और पेंटिंग्स पसंद है। मैं क्या करूं?

आपने बताया है कि आपको अच्छा ग्रेड नहीं मिला है। लेकिन आपको मैथ्स पसंद है। वहीं आपके टीचर ने भी आपको कहा है कि आपके लिए आईआईटी क्रैक करना मुश्किल होगा तो इस पर गंभीरता से विचार करने की जरूरत है। दरअसल, कई बार ऐसा होता है कि आप अपनी पसंद को समझ नहीं पाते हैं। ऐसे में आप किसी अच्छे जानकार या बेहतर करियर काउंसलर की मदद ले सकते हैं। यह सच है कि आईआईटी क्रैक करने के लिए शानदार तैयारी और क्षमता होनी ही चाहिए। हां, दूसरे इंजिनियरिंग एग्जाम्स को क्वालिफाई करना आईआईटी की तुलना में आसान है। वैसे दिल्ली-एनसीआर में कई ऐसे प्राइवेट इंजीनियरिंग कॉलेज चल रहे हैं जहां से कोर्स करने के बाद भी आपको बेहतर जॉब मिलना मुश्किल होता है। ऐसे में आपके लिए पेंटिंग के क्षेत्र में आगे बढ़ना भी बेहतर हो सकता है। आपका मैथ्स, फिजिक्स और कैमिस्ट्री कितना मजबूत है यह आप दूसरे टीचर या अपने सीनियर्स से भी पूछ सकते हैं। उनसे राय ले सकते हैं। हालांकि एक तरीका यह भी है कि कहीं डिप्लोमा से इंजिनियरिंग की शुरुआत की जाए और अगर उसमें मन रम गया तो डिप्लोमा के बाद सीधा बीटेक सेकंड ईयर में एडमिशन हों।

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10वीं के बाद क्या हैं ऑप्शन

1. 11-12वीं

साइंस: PCM (फिजिक्स, केमिस्ट्री, मैथ्स), PCB(फिजिक्स, केमिस्ट्री, बयॉलजी), LIBRARY SCIENCE

कॉमर्स: CEC

आर्ट्स: MEC, HEC

(फुल फॉर्म लिखें)

2. पॉलिटेक्निक

3. आईटीआई

4. पैरामेडिकल

5. शॉर्ट टर्म कोर्सेस: DTP, TALLY etc.

6. अन्य: ब्यूटी एंड कॉस्मेटॉलजी, जूलरी डिजाइनिंग आदि।

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12वीं के बाद बदल लें सब्जेक्ट

11वीं में कुछ ही समय बिताने के बाद पता चलने लगता है कि सब्जेक्ट्स का चयन सही रहा या नहीं और यह भी कि इससे जुड़ा करियर कैसा रहेगा। अगर चुनाव सही हुआ है तो नंबर भी अच्छे आएंगे और मन भी लगेगा। अगर चुनाव गलत रहा तो किताब देखने के बाद यही लगेगा कि आखिर यह विषय चुना ही क्यों! खैर, जब मन परेशान हो जाए तो ऐसा बिलकुल न सोचें कि ऑप्शन खत्म हो गए। आप 12वीं के बाद भी सब्जेक्ट बदल सकते हैं। गलती जब पता चल जाए, तभी सही कर लें।

खुद को जांचें

मान लें कि आपने 12वीं के लिए साइंस ली, लेकिन अब पढ़ाई में मुश्किल आ रही है। अब आपका मन कह रहा है कि जर्नलिजम या लॉ पढ़ लेते तो अच्छा रहता। बेहतर होगा कि एक बार किसी अच्छे पत्रकार या वकील और पत्रकारिता या लॉ की पढ़ाई कर रहे किसी सीनियर से मिल लें। उनसे चैलेंजेज के बारे में पूछें। साथ ही यह भी देखें कि इन फील्ड्स में अच्छा करने के लिए क्या खासियत होनी चाहिए। पत्रकार या वकील को एक-एक बात का काफी गहराई से अध्ययन करना होता है। अगर आप इनमें से कुछ बनना चाहते हैं तो देखें कि क्या आप में लगातार पढ़ने का धैर्य है? दरअसल, बाहर से देखने पर सब अच्छा लगता है, लेकिन जब काम में मन नहीं लगेगा तो सफल हो पाना मुश्किल होगा।

12वीं के बाद क्या हैं विकल्प

1. इंजिनियरिंग (BE/BTECH)

योग्यता: PCM

इंजिनियरिंग में करियर बनाने के लिए तमाम एंट्रेंस टेस्ट पास करना होता है। एडमिशन मिलने के बाद पढ़ाई अमूमन 4 बरसों की होती है।

ब्रांचेज: आईटी, ईसीई, सिविल इंजिनियरिंग, मकैनिकल, केमिकल, ऐग्रिकल्चर, बॉयोमेडिकल।

नोट: एयरोनॉटिकल, सेरामिक, एन्वॉयरनमेंटल, मरीन, माइनिंग, सिल्क एंड टेक्सटाइल में भीड़ अब भी कम है, लेकिन इनकी डिमांड ज्यादा है। (अलग अलग टेस्ट की जानकारी दे सकते हैं)

जरूरी लिंक:

JEE Main- www.jeemain.nic.in

JEE Advanced- www.jeeadv.iitd.ac.in

BITSAT- www.bitsadmission.com

VITEEE- www.vit.ac.in

2. मेडिकल: इसमें कई फील्ड हैं जैसे मेडिसिन, अलाइड हेल्थ साइंस, पैरामेडिकल।

योग्यता: BIPC/PCB (फिजिक्स, केमिस्ट्री, बायॉलजी)

मेडिसिन में करियर बनाने के लिए एंट्रेंस टेस्ट (EAMCET, NEET) पास करना होता है। इसकी पढ़ाई अमूमन 5 वर्षों की होती है।

ब्रांचेज:

MBBS: एलोपैथिक

BAMS: आयुर्वेदिक

BUMS: यूनानी

BHMS: होम्योपैथी

BNYS: नेचुरोपैथी

BDS: डेंटल

Ag. BSc: एग्रिकल्चर

BVsc.: वेटरनरी

BPT: फिजियोथेरपी

नोट: एलोपैथ में एमबीबीएस करना मुश्किल है, लेकिन बाकी फील्ड में भीड़ कम है। फिर इनमें मौके ज्यादा और पढ़ाई के खर्चे कम हैं।

3. अलाइड हेल्थ साइंस : अमूमन ये कोर्स 2 से 3 साल के होते हैं।

बी फार्मा, बीएससी नर्सिंग, बैचलर इन ऑक्युपेशनल थेरपी, बीएससी रेडियो थेरपी, बीएससी इन ऑपरेशन थियेटर टेक्नॉलजी आदि।

जरूरी लिंक:

www.aipmt.nic.in

www.aiimsexams.org

4. टीचिंग:

UPDED (पेट टीचर्स)

D. Ed. (प्राइमरी स्कूल टीचर)

ECCED (अर्ली चाइल्डहुड केयर एजुकेशन)

5. सेना

NDA (आर्मी, नेवी, एयरफोर्स)

6. डिग्री कोर्स (3 साल)

BA: लिंग्विस्टिक, एचटीवपी, एचईपी, इकनॉमिक्स, फाइन आटर्स, लाइब्रेरी साइंस

B.Sc.: PCM, PCB, हॉर्टिकल्चर, होम साइंस आदि।

B.Com: रेग्युलर कोर्स, कंप्यूटर्स, बैंक मैनेजमेंट आदि।

अन्य: LLB, BBA, BCA, BAF, BBM, BFM, BMS

7. डुअल डिग्री कोर्स (4 साल)

BA+BED

B.Sc.+B.Ed

BA+LLB

B.Com+LLB

BBM+LLB

BBA+LLB

8. कुछ प्रफेशनल डिग्री कोर्स

ICWA, CS, CA

9. कुछ डिप्लोमा कोर्स

फाइनैंस मैनेजमेंट, होटल मैनेजमेंट, फॉरन लैंग्वेजेज, फायर सेफ्टी, जर्नलिजम, होटल मैनेजमेंट, जूलरी डिजाइनिंग, फिल्म डायरेक्शन, स्क्रीन राइटिंग, सिनेमटोग्राफी, फिल्म एडिटिंग, फिल्म ऐक्शन।

इन डिप्लोमा कोर्सेस में भीड़ कम है और डिमांड ज्यादा: इवेंट मैनेजमेंट, रूरल मैनेजमेंट, होम साइंस, टूरिजम, फैशन डिजाइनिंग, इंटीरियर डिजाइनिंग, साउंड डिजाइनिंग।

10. यह ऑप्शन सभी के पास होता है। 'खेल' एक ऐसा ही विकल्प है जो देश ही नहीं पूरी दुनिया में हमेशा से मौजूद रहा है, लेकिन लोगों की दिलचस्पी पिछले 15 से 20 बरसों में ज्यादा बढ़ी है।

sportsauthorityofindia.nic.in पर लॉगइन कर इसके बारे में ज्यादा जानकारी हासिल कर सकते हैं।

11. ऑफबीट कोर्स

इस तरह के कोर्स में क्रिएटिविटी का अहम रोल होता है।

-डांस थेरेपेस्टि: इस फील्ड के एक्सपर्ट लोग कम ही मिलते हैं। दरअसल, इसमें डांस के द्वारा थिरेपी की जाती है और शरीर को तनावमुक्त किया जाता है।

-वाइल्‍डलाइफ कंजर्वेशन: इन्हें विलुप्त होने वाले जीवों के संरक्षण के बारे में सिखाया जाता है।

-पेट ग्रूमर्स: आजकल इनकी डिमांड काफी बढ़ी है। ये लोग घरों में पाले जाने वाले पेट्स का केयर करते हैं।

-फ्लेवर केमिस्ट्री: फूड में नए फ्लेवर डिवेलप करने वाले।

-केट्रोग्राफी: मैप बनाने वाले।

-टी टेस्टिंग: अलग-अलग किस्म की चाय का टेस्ट बताने वाले।

-फोटोनिक्स: फाइबर ऑप्टिक्स फील्ड में फोटोन के ट्रांसफर के बारे में रिसर्च करना।

-जेरांटॉलजी: उम्र के साथ शरीर में होने वाले बदलाव के बारे में।

यहां से करा सकते हैं एप्टिट्यूड टेस्ट

फ्री

funeducation.com

yourfreecareertest.com

whatcareerisrightforme.com

एक्सपर्ट्स के मुताबिक ये साइट्स एप्टिट्यूड का पूरा आंकलन नहीं करतीं। बेहतर है कि किसी एक्सपर्ट से ही ये टेस्ट कराएं। वैसे, सीबीएसई भी अपने स्कूलों में 10वीं के बच्चों का फ्री में ऐप्टिट्यूड टेस्ट कराती है।

एक्सपर्ट्स पैनल

मोहन तिवारी, करियर काउंसलर

परवीन मल्होत्रा, करियर काउंसलर

अरुणा ब्रूटा, सीनियर साइकॉलजिस्ट

अनुराग त्रिपाठी, सेक्रेटरी, सीबीएसई

अशोक सिंह, करियर काउंसलर

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चंडीगढ़ के हेड कॉन्सेटबल की बेटी ने निकाली UPSC परीक्षा, जानें सफलता का मंत्र

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चंडीगढ़ में विजिलेंस डिपार्टमेंट के हेड कॉन्सटेबल की बेटी प्रीति यादव ने UPSC (संघ लोक सेवा आयोग) परीक्षा पास कर ली है। परीक्षा में प्रीति की ऑल इंडिया 466 रैंक है। प्रीति का बचपन से ही IAS बनने का सपना था।

प्रीति बताती हैं, 'जब हम छोटे थे तो मेरे पिता IGP के घर पर पोस्टेड थे। हम वहीं बड़े हुए। IGP बदलते गए लेकिन पोस्ट मेरा सपना बन गई।'

प्रीति के लिए उनके माता-पिता ही उनकी प्रेरणा हैं। उनका भाई IIT रुड़की की पढ़ाई कर रहा है। उनकी मां गृहणी हैं। वह ग्रैजुएश के समय से आईएएस की तैयारी कर रही थीं।

प्रीति बचपन से ही टॉपर रही हैं। उन्होंने 2013 में ट्राईसिटी में ह्यमैनिटीज से टॉप किया था।

सक्सेस मंत्र: कड़ी मेहनत, डेडिकेशन और धैर्य।

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40 लाख की नौकरी छोड़ कानपुर के शिवांश बने IAS

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UPSC Civil Services (संघ लोक सेवा आयोग) के नतीजे शुक्रवार को घोषित हो चुके हैं। इसके बाद टॉपर्स से लेकर परीक्षा पास करने वाले कैंडिडेट्स की सफलता के इंस्पिरेशनल किस्से सामने आ रहे हैं। ऐसी ही प्रेरणा देने वाली कहानी है ऑल इंडिया 77वीं रैंक हासिल करने वाले शिवांश अवस्थी की। कानपुर के रहने वाले शिवांश ने IIT Kanpur से ऐरोस्पेस इंजिनियरिंग की पढ़ाई की इसके बाद जापान की मित्शुबीशी कंपनी में 40 लाख रुपये सालाना के पैकेज पर नौकरी का ऑफर मिला।

उन्होंने जॉइन करने का फैसला लिया लेकिन पासपोर्ट बनवाने के दौरान उन्हें काफी दिक्कतें आईं, चक्कर काटने पड़े और एक बार उनका पासपोर्ट रोक दिया गया। शिवांश के पिता शैलेश अवस्थी पत्रकार रहे हैं, जिसके चलते उनका काम तो बन गया लेकिन यह घटना उनके दिमाग में बैठ गई। शिवांश को अहसास हुआ कि कैसे आम इंसान को इन छोटे-छोटे कामों के लिए भी एड़ी-चोटी का जोर लगाना पड़ता है। इसके बाद ही उन्होंने प्रशासनिक सेवा में आकर सिस्टम में बदलाव लाने की ठानी।

शिवांश जापान में नौकरी के लिए तो चले गए लेकिन भारत में रहकर देश सेवा का सपना भी साथ लेकर गए। जापान में 2 साल 8 महीने के बाद शिवांश नौकरी छोड़कर वापस भारत आ गए। इसके बाद अपना सपना पूरा करने के लिए तैयारी शुरू की। दिल्ली में रहकर उन्होंने सिविल सर्विसेज के लिए पढ़ाई की और पहले ही प्रयास में सफल हो गए।

शिवांश अपनी सफलता का श्रेय अपने माता-पिता को देते हैं। उन्होंने बताया कि जब वह पढ़ाई करते थे तो उनकी मां अपर्णा अवस्थी पूरी रात ठीक से सोती नहीं थी कि कहीं उन्हें किसी चीज की जरूरत न पड़ जाए। वहीं, शिवांश के पिता ने बताया कि शिवांश को देर रात खुद खाने का मन होता था तो वह चुपचाप किचन में जाकर लेने लगते थे कि मां न जाग जाएं लेकिन मां आहट लेकर उनको वह चीज बनाकर दे देती थीं।


मजेदार बात यह है कि शिवांश साइंस बैकग्राउंड से हैं फिर भी उन्होंने ऑप्शनल सब्जेक्ट के रूप में जिऑग्रफी को चुना। उनकी स्कूली शिक्षा कानपुर से हुई। हाई स्कूल में उन्हें 95 और इंटरमीडिएट में 92 फीसदी नंबर मिले थे।

सिविल सर्विसेज के इंटरव्यू के दौरान शिवांश से ज्यादातर सवाल उनके बैकग्राउंड (इसरो, एचएएल, ऐरोस्पेस और जापान) के बारे में किए गए। उनसे पूछा गया कि जापान के अनुभव को भारत में काम करते हुए कैसे लागू करेंगे।

जापान के वर्क कल्चर के बारे में शिवांश बताते हैं कि वहां टीमवर्क पर फोकस रहता है और प्रेशर में काम नहीं करवाया जाता है। वह इस चीज से काफी प्रभावित हुए और ऐसे ही काम करना और करवाना चाहेंगे। उन्होंने यह भी बताया कि ऑफिस पहुंचने के बाद सभी लोग कुछ देर योगा, वर्कआउट और वॉर्मअप के बाद काम शुरू करते थे।

एंटरटेनमेंट के लिए शिवांश मूवी, मोटिवेशनल विडियो और टीवी देखते हैं। उन्होंने बताया कि वह रोजाना न्यूज पेपर जरूर पढ़ते हैं इससे काफी हेल्प मिली। शिवांश स्टूडेंट्स को कोई खास टिप्स नहीं देना चाहते, उनके हिसाब से टाइम टेबल बनाकर पढ़ना और उसे स्ट्रिक्टली फॉलो करना जरूरी है। इंटरव्यू के दौरान वह ईमानदारी से और शांति के साथ सवालों के जवाब देने की सलाह देते हैं। उन्होंने बताया कि आप कैसे जवाब देते हैं से ज्यादा मायने रखता है कि क्या जवाब देते हैं।

शिवांश ने बताया कि पढ़ाई के दौरान उन्हें कभी स्ट्रेस नहीं हुआ क्योंकि अगर पढ़ाई में बिजी रहते हैं तो अच्छा और पॉजिटिव फील करते हैं।

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पेट्रोल पंप पर काम करते हैं पिता, बेटे ने पहली बार में पास की सिविल परीक्षा

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UPSC (संघ लोक सेवा आयोग) परीक्षा में 93 रैंक लाने वाले बिहार के प्रदीप सिंह शुक्रवार को रिजल्ट पता चलने के बाद से सोए नहीं हैं। वह बताते हैं, 'ऐसा लग रहा है जैसे सपना देख रहा हूं। सोया नहीं हूं कि कहीं ये सपना न टूट जाए।

22 साल की उम्र में, पहले ही प्रयास में सफलता हासिल करने वाले प्रदीप के पिता मनोज सिंह मध्य प्रदेश में पेट्रोल पंप पर काम करते हैं। रिजल्ट के बाद से प्रदीप के पिता को लगातार बधाइयां मिल रही हैं। प्रदीप ने बताया कि वह पिता की आंखों की यही खुशी देखने का सपना लेकर तैयारी करते थे।

अपने फैमिली बैकग्राउंड के बारे में वह बताते हैं कि उनका परिवार बिहार से है और पिता सन 1992 में नौकरी की तलाश में मध्य प्रदेश आए और यहां पेट्रोल पंप पर नौकरी करने लगे। प्रदीप की पढ़ाई इंदौर में हुई लेकिन गांव से भी हमेशा जुड़ाव रहा। प्रदीप के भाई संदीप प्राइवेट जॉब करते हैं। वह बताते हैं, 'भइया ने ही सिविल सर्विसेज के लिए गाइड किया।' बताया कि उनके माता-पिता ने भी बच्चों को पढ़ाने के लिए बहुत संघर्ष किया।

प्रदीप ने 10वीं और 12वीं दोनों की परीक्षा CBSE बोर्ड से 81 फीसदी नंबरों के साथ पास की। उन्होंने सिविल परीक्षा की तैयारी के लिए बीकॉम ऑनर्स के साथ अंडरग्रैड प्रोग्राम जॉइन किया था, इसके बाद एक साल तैयारी की और पहले प्रयास में परीक्षा पास कर ली।सिविल परीक्षा के लिए उन्होंने ऑप्शनल सब्जेक्ट के तौर पर सोशियॉलजी चुना था।

सिस्टम में क्या गड़बड़ियां दिखती हैं और इन्हें कैसे सुधारेंगे इस सवाल पर प्रदीप कहते हैं, 'मुझे 3-4 चीजों पर बहुत ज्यादा काम करने की जरूरत दिखाई देती है। हेल्थ, एजुकेशन, लॉ ऐंड ऑर्डर और विमिन एम्पावरमेंट। ये चार चीजें सोसायटी का पिलर हैं। अगर ये सुधर गईं तो बहुत बड़ा बदलाव दिखाई देगा।'

महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए क्या करेंगे इस पर प्रदीप बताते हैं, 'विमिन एम्पारवेंट के लिए लोगों में बिहेवियरल चेंज लाने की कोशिश करूंगा। मैं छोटे से अंश में भी अगर कॉन्ट्रिब्यूशन दे पाऊंगा तो भी बदलाव आएगा।'

वह बताते हैं, लोग महिलाओं को कमजोर समझते हैं, इसमें बदलाव लाना होगा। कोशिश करूंगा कि लड़कियां सड़कों पर खुद को सुरक्षित समझें, निडर होकर घूम सकें, जीवन में अपने फैसले ले सकें।

प्रदीप को अफसोस है कि उनकी कोई बहन नहीं है लेकिन इस बात की खुशी भी है कि देश की कई बहनों के लिए काम कर सकेंगे।


बताया कि उन्हें यह बात भी कचोटती है कि देश में औरतों को देवी बताते हैं लेकिन कहीं-कहीं दासी की तरह ट्रीट किया जाता है। वह इसको भी बदलना चाहते हैं। उन्होंने कहा कि यह काम मुश्किल तो है लेकिन बदलाव लाया जा सकता है। वह इंदौर का उदाहरण देते हुए बताते हैं कि यह शहर स्वच्छता की रैंकिंग में 154 रैंक पर था अब तीन साल से पहली रैंक पर आ रहा है। कहा, मेरी पूरी कोशिश रहेगी कि जितना भी बदलाव ला सकूं, समाज के लिए उतना योगदान मैं दूं।

इंटरव्यू के सवालों पर प्रदीप ने बताया कि पैनलिस्ट ने उनके बैकग्राउंड से जुड़े ही सवाल किया जैसे उज्जैन क्यों फेमस है, उनकी एजुकेशन और पॉलिटिक्स से जुड़े जनरल नॉलेज के सवाल।

उन्होंने बताया कि कुछ ऐसे सवाल भी थे, जो उन्होंने एक-दो दिन पहले ही न्यूजपेपर में पढ़े थे। वह इकॉनॉमिक्स टाइम्स, टाइम्स ऑफ इंडिया जैसे अखबार रेग्युलर पढ़ते हैं और करंट अफेयर्स के नोट्स बनाते थे।

आखिर में वह अपनी सफलता का क्रेडिट मां-बाप को देते हुए कहते हैं, मां-बाप के सपॉर्ट के बिना मैं कुछ नहीं हूं। मेरी उम्र 22 साल है, इससे कहीं ज्यादा उनको जीवन का अनुभव है। उनके लिए ही यह सफलता हासिल की है।

गुरुमंत्र: जब भी जीवन में संघर्ष और मुश्किलें आएंगी उस वक्त ही आपको अपनी असली और छिपी ताकत का अहसास होगा। अपनेआप को कभी किसी से कम न समझें। आप कुछ भी पा सकते हैं बस अपनी छिपी ताकत को पहचानें।


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ऑफिस में न करें ये 7 गलतियां, होगा बहुत नुकसान

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जॉब प्लेस पर आपकी इमेज पर आपकी आदतों को बहुत असर पड़ता है। आपकी आदतों के हिसाब से लोगों का परसेप्शन तय होता है। ऐसे में सही इमेज बनाने के लिए खराब आदतों को छोड़ना जरूरी है। यहां आपको कुछ ऐसी आदतों के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसे आप नहीं छोड़ते हैं तो जॉब प्लेस पर हर कोई आपसे नफरत करेगा...

लेट-लतीफ न बनें
समय का पाबंद होना बहुत जरूरी है। हर काम को समय पर करें और आपसे जो अपेक्षा है, उसे करने के लिए तैयार रहें। अगर आप काम में देरी करेंगे तो इससे आपकी छवि गलत बनेगी और हर कोई नफरत करेगा।

मीटिंग के बीच कहीं और खो जाना
मीटिंग का मतलब मीटिंग होता है यानी मीटिंग के दौरान वहां हो रही गतिविधियों पर ध्यान दें। मोबाइल या लैपटॉप खोलकर कुछ और न करने लग जाएं या किसी और सोच में न डूब जाएं। इससे आसपास बैठे लोगों और बॉस की नजर में आपकी बेपरवाह वाली छवि बन जाएगी।

किसी काम को लेकर सवाल पर सवाल खड़ा करना
अगर आपको कोई असाइनमेंट सौंपा जाता है और आप उसको लेकर तरह-तरह के सवाल उठाते हैं तो यह समझा जाएगा कि आप काम करना नहीं चाहते हैं। उचित सवाल उठाने में कोई दिक्कत नहीं है लेकिन अतार्किक सवाल आपके लिए परेशानी पैदा कर सकते हैं।

हर समय नेगेटिव न रहें
वैसे तो हर किसी को बॉस, सहकर्मी या किसी काम को लेकर शिकायत रहती है। लेकिन अगर आप मुखर होकर इसके खिलाफ बोलते हैं तो यह आपके खिलाफ जाता है। हमेशा बॉस की या सहकर्मियों के खिलाफ कुछ भी नेगेटिव बोलने से परहेज करें।

ऑफिस मीटिंग में लेट पहुंचने की आदत छोड़ें
मीटिंग में अगर आप हमेशा देर से पहुंचते हैं तो इसका मतलब है कि न तो आप अपने सहकर्मियों का सम्मान करते हैं औ न ही मीटिंग के आयोजकों का। इस आदत को त्यागना ही आपके लिए फायदेमंद होगा।

बीमार होने का बहाना न बनाएं
अगर आप हर हफ्ते बीमार होने का बहाना बनाकर छुट्टी ले लेते हैं तो इससे आपकी बॉस के नजर में गलत छवि बनेगी और प्रमोशन में इसका नुकसान उठाना पड़ेगा।

डेस्क पर मेकअप न करें
अपनी डेस्क पर बैठे-बैठे मेकअप करने से बचें। अगर आपको संवरना ही जरूरी है तो बाथरूम चली जाएं और वहां जाकर मेकअप कर लें।

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पढ़ने को लेकर कही गई हैं ये गलत बातें, जानें क्या है सच

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पढ़ना एक तरह की कला है, जिसमें शब्दों को देखकर ज्ञान हासिल किया जाता है। दुनिया के सर्वाधिक सफल लोग सिर्फ वही नहीं पढ़ते हैं, जो किसी पेज पर लिखा होता है बल्कि उसके निहित अर्थ को भी समझते हैं। कुछ लोगों का मानना है कि धीरे-धीरे और एक-एक शब्द पर ध्यान केंद्रित करके पढ़ने से ही असल निहितार्थ को समझा जा सकता है लेकिन यह सही नहीं है। पढ़ने का सबसे अहम पहलु दी गई अवधारणा को समझने की योग्यता और उसे याद रखने की क्षमता है। आज आपको पढ़ने से संबंधित ऐसे ही 5 मिथक और उनकी हकीकत बताने जा रहे हैं...

मिथक: सही से ध्यान केंद्रित होता है
कई अभिभावकों और शिक्षकों का मानना है कि धीरे-धीरे पढ़ने से ध्यान केंद्रित करने में मदद मिलती है। भले ही धीरे पढ़ने से स्थिति या किसी थिअरी को समझने में मदद मिलती है, लेकिन ज्यादा समय तक एक ही टेक्स्ट को पढ़ने से दिमाग भटकने लगता है। वहीं अगर तेजी से पढ़ा जाए तो दिमाग कहीं और नहीं भटकता है। आज के समय में बहुत सारी सूचनाएं लिखित या विजुअल्स के रूप में होती हैं, जिनके लिए धीरे-धीरे पढ़ना जरूरी नहीं होता है।

मिथक: समझ बढ़ना
तेजी से पढ़ने का यह मतलब नहीं है कि क्या बात कही गई है, उसे बेहतर तरीके से नहीं समझा जा सकता है। इसको टेक्स्टबुक और उपन्यास पढ़ने के तरीके से समझ सकते हैं। एक स्टूडेंट जब टेक्स्टबुक पढ़ता है तो एक-एक शब्दों को गौर से पढ़ता है, ताकि पढ़ी हुई चीजें याद रहे, वहीं जब उपन्यास की बारी आती है तो इसको भारी-भरकम होने के कारण तेज-तेज पढ़ना ही बेहतर माना जाता है। लेकिन उपन्यास को तेज पढ़ने के बाद भी उसकी कहानी समझ में आ जाती है। ध्यान देने योग्य बात है कि एक पैराग्राफ में बहुत से ऐसे शब्द भी होते हैं, जिसकी जरूरत नहीं होती है।

मिथक: धीरे पढ़ने से याददाश्त बढ़ती है
धीरे पढ़ने और याददाश्त का कोई संबंध नहीं है। धीरे पढ़ने से दिमाग ज्यादा भटकता है, जिससे ध्यान केंद्रित करने में कठिनाई होती है। इंसान का दिमाग बहुत तेजी से ज्ञान और सूचना को ग्रहण करता है और जब हम एक-एक शब्द करके पढ़ते हैं तो दिमाग के पास बहुत समय बचता है, जिससे यह भटकने लगता है।

मिथक: पढ़ने की रफ्तार बढ़ाई नहीं जा सकती
ऐसा मानना है कि अलग-अलग इंसान की पढ़ने की एक निर्धारित रफ्तार होती है और इसे बढ़ाया नहीं जा सकता। भले ही पढ़ने का कौशल हर इंसान का अलग-अलग होता है लेकिन ऐसी कोई चीज नहीं है कि इसे बेहतर नहीं किया जा सकता है। प्रैक्टिस करके पढ़ने की रफ्तार बढ़ाई जा सकती है।

मिथक: 1000 शब्द प्रति मिनट पढ़ना असंभव है
एक औसत व्यक्ति करीब 200-400 शब्द प्रति मिनट पढ़ता है और लगातार अभ्यास की मदद से इस सीमा को बढ़ाया जा सकता है। तेज पढ़ने वाले लोग 3500 शब्द प्रति मिनट पढ़ते हैं और कुछ उससे भी ज्यादा। आज एक वर्ल्ड स्पीड रीडिंग चैंपियन एक मिनट में 4500 शब्द पढ़ता है और क्या लिखा हुआ है, उसे भी बेहतर ढंग से समझता है।

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इंटर्नशिप के मौके को यूं जॉब में बदलें

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इंटर्नशिप में इन बातों पर दें ध्यान, मिलेगी अच्छी जॉब सफल इंटर्नशिप में बेहतर जॉब का फंडा छिपा है। यह जरूरी है कि इंटर्नशिप को गंभीरता से लें। इस दौरान कई तरह के रास्तों और सोच से गुजरना पड़ सकता है। इंटर्नशिप में सीखने को काफी कुछ मिलता है। आप पहली बार प्रफेशनल्स के बीच में काम कर रहे होते हैं। यह जान पाते हैं कि एक व्यवस्था के तहत कैसे तालमेल बैठाकर बेस्ट परफॉर्मेंस दिया जाता है। इंटर्नशिप में बेहतर प्रभाव छोड़ते हैं, तो हो सकता है कि उसी फर्म में जॉब ऑफर मिल जाए। इसका मतलब है कि कम समय में एक सधी शुरुआत। ध्यान रहे, इंटर्नशिप करियर की पहली सीढ़ी है।

वर्किंग कल्चर को समझें
ऑफिस के अपने विजन और नियम होते हैं। उन्हें समझें। आप देखें कि दूसरे कैसा बर्ताव कर रहे हैं। अपने मेंटोर से बोलें कि वे आपको ऑफिस कल्चर और महौल के बारे में बताएं। आपकी इंटर्नशिप तीन महीने से कम की है, तो छुट्टी की डिमांड न करें। वर्कप्लेस पर होने वाली मीटिंग्स पर नजर रखें। लेकिन वहां की पॉलटिक्स और गॉशिप से दूर रखें।

बेस्ट आउटपुट दें
वर्किंग कल्चर में उसी का सिक्का चलता है, जो काम में बेहतर हो। कंपनी भी इसी नियम को आधार बनाकर चलती है। इसलिए बेस्ट आउटपुट के जरिए वर्कप्लेस पर पहचान बनाएं। श्रेष्ठ कामों का रेकॉर्ड मेंटेंन करें। काम के दौरान आने वाली परेशानियों का ब्योरा तैयार करें। यहां मिलने वाली चुनौतियों, रिसोर्सेज, टाइम लाइन, प्लानिंग ऐंड एफर्ट से लेकर आउटकम तक के हर स्टेप के बारे में जानकारी रखें। काम बढ़ने के साथ हो सकता है कि आप एक आद जरूरी बातें आप भूल जाएं, इसलिए रेकॉर्ड मेंटेंन करें।

लक्ष्य से न भटकें
जॉइनिंग से दो सप्ताह पहले मैनेजर के पास जाएं और ऑर्गनाइजेशन के बारे विस्तार से जानकारी ले लें। एक टारगेट के साथ इंटर्नशिप को जॉइन करें। इसलिए जरूरी है कि जॉइनिंग से पहले ही वहां जाकर खुद का परिचय कराएं। इससे आप सार्थक प्रभाव छोड़ सकेंगे। इस दौरान सवाल पूछने में न हिचकिचाएं। इंटर्नशिप में अधिक से अधिक काम से जुड़ी हुई चीजों जानने की कोशिश करें। इसलिए कहीं भी काम दिखे, वहां जाएं। सीखने की कोशिश करें।

मोर वर्क मोर गेन
इंटर्नशिप का एक ही नियम होता है, ज्यादा काम करें, तो ही ज्यादा सीख सकेंगे। इसलिए यह जरूरी है कि हर वक्त आपके पास काम हो। ऐसा नहीं है, तो आप काम की डिमांड करें। यह कठिन जरूर है, लेकिन इससे आगे बढ़ने और सीखने को भी मिलेगा। इंटर्नशिप के दौरान आप समय से पहले ऑफिस पहुंचें और देर तक वहां वक्त बिताएं। तभी आप ज्यादा लोगों के संपर्क में रह सकेंगे। उनसे आप काम देने को कहें। लोग इसे जरूर नोटिस करेंगे।

बेहतर कंपनी पर हो नजर
इंटर्नशिप का चुनाव करने के समय मनी माइंडेड न रहें। कंपनियां कम पैसे या फिर बिना सैलरी के इंटर्नशिप देती हैं, तो अफसोस न करें। इस अवसर का लाभ उठाने की कोशिश करें। यह ध्यान रहे कि इस प्रक्रिया का सबसे बड़ा फायदा यह होता है कि आपके विकल्प भी खुल रहे होते हैं।

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ट्राई करें ये टिप्स, बोझिल नहीं लगेगा ऑफिस का काम

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ऑफिस में काम का दबाव और तनाव शरीर और दिमाग दोनों को थका देता है। इस थकान के कारण ऑफिस में आपका काम प्रभावित होता है। ऐसे टिप्स के बारे में जानें, जिन्हें आजमाकर आप ताजगी से भर जाएंगे और काम बोझिल नहीं लगेगा...

सुबह की वॉक जरूरी: आप रोजाना सुबह उठकर उगते हुए सूरज को देखें, इससे आपका मूड अच्छा रहेगा। सुबह 10-15 मिनट वॉक जरूर करें। वैसे, धूप विटमिन डी का बहुत ही अच्छा स्रोत है और यह आपको ऐक्टिव रखता है। दरअसल, धूप में सेरॉटिन होता है जो आपका मूड अच्छा रखता है।

कॉफी या टी ब्रेक तो बनता है: अगर आप ऑफिस में एलिवेटर या लिफ्ट पर बहुत ज्यादा डिपेंड रहते हैं तो इस आदत को बदलें और अधिकतर सीढ़ियों का ही प्रयोग करें। यह एक्सर्साइज खूब फायदा देगी और आपको एनर्जेटिक रखेगी। साथ ही थकान महसूस होने पर कॉफी या टी ब्रेक लें। ये गर्म ड्रिंक्स एकदम से आपका एनर्जी लेवल बढ़ा देंगे। हर्बल-टी भी इस मामले में अच्छी है।

पजल्स बढ़ाएंगे एनर्जी: एनर्जी को बूस्ट करने के लिए पांच मिनट का ब्रेक लेकर क्रॉसवर्ड या पजल सॉल्व करें। इसके लिए आप अपने पास क्रॉसवर्ड पजल्स का कलेक्शन रख सकते हैं। जब भी काम में मन न लगे, आप कोई भी चैलेंजिंग टास्क उठाकर खुद को रिफ्रेश कर सकते हैं।

पढ़ाई-लिखाई भी है जरूरी: काम से ब्रेक में कुछ मिनटों के लिए कोई कविता, प्रेरणा देने वाली बुक्स या फिर कॉमिक्स पढ़ें। अपनी फेवरिट बुक को अपने ऑफिस ड्रॉअर में रखें और जब भी आपका दिमाग फ्रेश होना चाहे, इसके कुछ पेज पढ़ लें।

फनी विडियोज करेंगे स्ट्रेस दूर: अगली बार जब आप ब्रेक लें, तो कंप्यूटर पर कुछ फनी विडियोज देखें, जो आपको हंसने पर मजबूर कर दें। हंसने के लिए आप कुछ जोक्स या अपनी फेवरिट कॉमिक स्ट्रिप भी पढ़ सकते हैं।

ये भी ट्राई करें
-ठंडा पानी आपको तुरंत एनर्जी देगा है और इससे आपकी त्वचा व चेहरा एकदम से खिल उठेगा। ताजगी से भरे व अलर्ट दिखने के लिए ठंडे पानी से चेहरा धो लें।
-ऑफिस में खुश मूड में रहने के लिए आप आप अरोमाथेरपी ट्राई कर सकते हैं और इसके आपको बहुत फायदे मिलेंगे। पिपरमिंट, लाइम व ग्रेपफ्रूट से एनर्जी बूस्ट होती है।
-लेवेंडर ऑइल से सुकून मिलता है और इससे नर्व्स रिलैक्स हो जाती हैं। जब भी आप लो फील करें, तो इस खुशबू को सूंघ लें या फिर इसे डेस्क के पास स्प्रे कर लें।

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लेने जा रहे हैं कॉलेज में ऐडमिशन, जान लें ये जरूरी बातें

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मार्च के बाद से ही यूनिवर्सिटीज और कॉलेज कैंपस गुलजार होने लगते हैं, लेकिन ऐडमिशन कोई आसान काम नहीं है। बेहतर कॉलेज और यूनिवर्सिटी की सीटें 98 फीसदी मार्क्स वाले लूट ले जाते हैं। ऐसे में बाकी स्टूडेंट्स के लिए दुविधा की स्थिति बन जाती है कि वे आखिर जाएं तो जाएं कहां! ऐसे में मजबूरी में कई बच्चे घटिया या जाली इंस्टिट्यूट के जाल में भी फंस जाते हैं। तो ऐडमिशन से पहले आखिर क्या देखें? एक्सपर्ट्स से बातकर जानकारी दे रही हैं दर्शनी प्रिय

देश में बेहतर सरकारी कॉलेजों और विश्वविद्यालयों की संख्या सीमित है। ऐसे में भारी संख्या में ग्रैजुएट और अंडरग्रैजुएट छात्रों को खपाने के लिए निजी संस्थानों और कॉलेजों की जरूरत लगातार बढ़ रही है। इसी वजह से देश में प्राइवेट और फर्जी संस्थानों की बाढ़-सी आ गई है। यहां एक बात यह भी बताना जरूरी है कि न तो सभी प्राइवेट संस्थान बेकार हैं और न ही सभी प्राइवेट यूनिवर्सिटीज में खोट है। दिक्कत यह है कि क्वॉलिटी एजुकेशन के मामले में इनमें से ज्यादातर की स्थिति बहुत अच्छी नहीं है। ये संस्थान छात्रों के करियर की समस्या को सुलझाने के बजाय उलझा देते हैं। मोटी फीस वसूलने और टॉप क्लास की सुविधा देने का वादा करने वाले इन संस्थानों की क्वॉलिटी पर सवाल उठते रहते हैं, बावजूद इसके बच्चे इनके जाल में फंस जाते हैं।

डिग्री, डिप्लोमा और सर्टिफिकेट के फर्क को समझेंः
सर्टिफिकेट-
अमूमन सर्टिफिकेट प्रोग्राम किसी खास प्रफेशनल फील्ड में स्किल बढ़ाने के लिए लिया जाता है। कुछ यूनिवर्सिटी ग्रैजुएट सर्टिफिकेट भी स्टूडेंट्स को ऑफर करती हैं।
अवधि: कुछ महीनों से लेकर 1 साल तक
कौन देता है: वोकेशनल और टेक्निकल स्कूल, कॉलेज आदि

डिप्लोमा-
यह काफी हद तक सर्टिफिकेट प्रोग्राम की तरह ही होता है। इसे किसी खास क्षेत्र में कोर्स पूरा होने पर दिया जाता है।
अवधि: 1 से 2 साल तक
कौन देता है: वोकेशनल और टेक्निकल स्कूल, कॉलेज और हॉस्पिटल

डिग्री-
डिग्री कई तरह की होती है। बैचरल डिग्री (3-6 साल) मास्टर्स डिग्री (2-4 साल) पीएचडी की डिग्री (4-5 साल) अकादमिक डिग्री कई साल की होती हैं। इसमें एसोसिएट (2 वर्ष), बैचलर (4 वर्ष), मास्टर(2 वर्ष), डॉक्टरल (4-5 वर्ष) की डिग्री होती हैं।
कौन देता है: मान्यता प्राप्त यूनिवर्सिटी या उससे जुड़ा कॉलेज।

हायर एजुकेशन के संस्थान
सेंट्रल यूनिवर्सिटी: इन यूनिवर्सिटीज़ की स्थापना केंद्र सरकार के मानव संसाधन मंत्रालय द्वारा संसद में पारित ऐक्ट के आधार पर की जाती है।
डीम्ड यूनिवर्सिटी: डीम्ड यूनिवर्सिटी का स्टेटस उच्च शिक्षा देने वाले ऐसे संस्थानों को दिया जाता है जो किसी खास क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य कर रहे हों। यह मान्यता केंद्र सरकार के मानव संसाधन विकास मंत्रालय के उच्च शिक्षा विभाग द्वारा यूजीसी ऐक्ट 1956 के सेक्शन 3 के तहत दी जाती है। इसके अंतर्गत ऐसे संस्थानों को यूनिवर्सिटी जैसे अधिकार मिल जाते हैं और ये डिग्री दे सकते हैं।
एफिलिएटेड इंस्टिट्यूट: ये किसी मान्यताप्राप्त यूनिवर्सिटी से सम्बद्ध संस्थान/कॉलेज होते हैं और उस यूनिवर्सिटी के विभिन्न कोर्स संचालित करने का इनको अधिकार होता है। ये खुद न तो एग्जाम करा सकते हैं और न ही कोई डिग्री प्रदान कर सकते हैं।
रेकग्नाइज्ड यूनिवर्सिटी: भारत में किसी भी यूनिवर्सिटी को डिग्री प्रदान करने की अनुमति केंद्र सरकार द्वारा स्थापित यूनिवर्सिटी ग्रांट्स कमिशन (UGC) देता है। यूजीसी जिसे यह अनुमति देती है उसे रेकग्नाइज्ड यूनिवर्सिटी कहा जाता है।
रजिस्टर्ड संस्थान: सोसायटी ऐक्ट/एनजीओ ऐक्ट आदि के तहत पंजीकृत संस्थाओं को रजिस्टर्ड संस्थानों की श्रेणी में रखा जाता है। जरूरी नहीं कि इनके द्वारा संचालित कोर्स भी मान्यता प्राप्त होंगे ही।
प्राइवेट यूनिवर्सिटी: प्राइवेट यूनिवर्सिटी की शुरुआत राज्य विधानसभा द्वारा ऐक्ट पारित करने और यूजीसी द्वारा उसे गजट में शामिल करने के आधार पर हो सकती है। इनको यूजीसी द्वारा Establishment and Maintenance of standards in Private Universities Regulations 2003 द्वारा रेग्युलेट किया जाता है।

8 बातें एडमिशन से पहले पता करेंः
एक्रीडिटेशन

1. किसी भी संस्थान के एक्रीडिटेशन की जांच जरूर करें। सच तो यह है कि जॉब मार्केट में उसी डिग्री को मान्यता दी जाती है जो किसी मान्यताप्राप्त यूनिवर्सिटी या कॉलेज से हासिल की गई हो।

2. ग्रैजुएशन रेट
किसी भी यूनिवर्सिटी से ग्रैजुएट होने वाले छात्रों की संख्या का सही अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है। इससे दाखिला संबंधी संभावना की जानकारी आपको मिल सकेगी।

3. रिटेंशन रेट
अगर किसी यूनिवर्सिटी की ऊंची रिटेंशन रेट है तो इसका सीधा-सा मतलब है कि वहां के बच्चे पढ़ाई से संतुष्ट हैं। यही वजह है कि नए क्लास में जाने पर यूनिवर्सिटी या कॉलेज नहीं बदल रहे हैं।

4. करियर पर ध्यान
यह इस बात को बताता है कि यूनिवर्सिटी में बच्चों के करियर को लेकर कितनी संजीदगी है। अगर काउंसलिंग की सुविधाएं, इंटरव्यू की तैयारी, रेज्यूमे रिव्यू और जॉब हंटिंग जैसी बातों पर भरपूर ध्यान दिया जाता है तो इसका मतलब है कि माहौल बेहतर है।

5. प्लेसमेंट
यह काफी अहम है। किसी यूनिवर्सिटी या कॉलेज का प्लेसमेंट रेकॉर्ड कैसा है, यहां वहां के पूर्व छात्रों या यूनिवर्सिटी की वेबसाइट के जरिए पता कर सकते हैं। इसके अलावा, पिछले 5 बरसों का प्लेसमेंट रेकॉर्ड और इंटर्नशिप देने वाली कंपनियों की लिस्ट की जानकारी भी हासिल करें।

6. सोशल मीडिया
यूनिवर्सिटी या कॉलेज की वेबसाइट के अलावा सोशल मीडिया मौजूदगी पर भी ध्यान देना जरूरी है। यहां से आपको पता चलेगा कि कितने छात्र खुश हैं और कितने नाखुश। इसमें पूर्व छात्रों के टेस्टिमोनियल और इंटरनेट पर मौजूद फोरम बेहद मददगार होते हैं।

7. फैकल्टी
एडमिशन से पहले यह जरूर पता करें कि जिस सब्जेक्ट में आप एडमिशन ले रहे हैं, उसकी फैकल्टी कैसी है। अगर पढ़ाने वाले ढंग के नहीं मिले तो एडमिशन लेने का कोई मतलब नहीं है।

8. एजुकेशन लोन
किसी कॉलेज में एडमिशन लेने से पहले एजुकेशन लोन के बारे में पूछताछ करें। अमूमन एजुकेशन लोन सिर्फ उन्हीं कॉलेजों को दिया जाता है जो मान्यता प्राप्त होते हैं।

कैसे फंसते हैं स्टूडेंट्स
कई प्राइवेट संस्थान बाहरी चमक-दमक पर ज्यादा फोकस करते हैं जिसे देखकर स्टूडेंट्स फंस जाते हैं। यह वैसे ही है जैसे आप कोई फ्लैट खरीदने जाते हैं और डिवेलपर आपको एक मॉडल फ्लैट दिखाकर कहता है कि आपको जो फ्लैट आज से 3 साल बाद मिलेगा, वह इसी तरह का होगा और आप उस पर विश्वास कर लेते हैं। दरअसल, मॉडल फ्लैट को तैयार ही ऐसे किया जाता है कि लोगों की आंखें चौंधिया जाएं, लेकिन असलियत का पता तब चलती है जब 3 या 4 साल बाद आपको फ्लैट दिया जाता है। इसी तरह जब कोई कोर्स खत्म कर बाहर निकलता है तब पता चलता है कि वहां एडमिशन का फैसला सही रहा या गलत। अमूमन बाहरी चमक-दमक में फंस जाने वाले स्टूडेंट्स का भविष्य खतरे में ही रहता है।

बचना है जरूरी
एडमिशन लेने से पहले कुछ बातों का ध्यान रखना बेहद जरूरी है:
1. ब्रोशर देखकर और वादे पर भरोसा कर कभी भी एडमिशन का फैसला न करें। हमेशा फैक्ट चेक करें, प्लेसमेंट का पता लगाएं, सरकारी वेबसाइट्स का सहारा लें और उन पर ही यकीन करें।
2. सिर्फ कॉलेजों की टॉप रेटिंग या टॉप चार्ट देखकर ही तसल्ली न करें बल्कि बारीकी से इनकी जांच करे और हर कसौटी पर कसने के बाद ही एडमिशन के बारे में सोचें। इन संस्थानों की विश्वसनीयता की जांच के लिए अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद और यूजीसी जैसी मान्य सरकारी निकायों ने कई पैरामीटर्स तय किए हैं। आपको भी इन पैरामीटर्स को देखना चाहिए और तभी एडमिशन के बारे में सोचना चाहिए।
3. कोई भी संस्थान मान्यता प्राप्त है या नहीं, यह सबसे बड़ा मुद्दा है। संभव है कि ऐसे संस्थान/ यूनिवर्सिटी/ कॉलेज जिनकी बिल्डिंग अच्छी हो और जो सौ फीसदी प्लेसमेंट का दावा करता हो, जहां के हॉस्टल्स भी शानदार हों, उन्हें सरकारी मान्यता ही नहीं मिली हो। बिना मान्यता प्राप्त संस्थान की सारी खासियतें बेकार हैं क्योंकि जब आप उस यूनिवर्सिटी या कॉलेज से डिग्री लेकर बाहर निकलेंगे तो उसकी कोई वैल्यू नहीं होगी। ऐसा भी मुमकिन है कि कॉलेज अपना दावा मजबूत करने के लिए कैंपस प्लेसमेंट भी करा दे, लेकिन तब भी वह डिग्री किसी काम का नहीं क्योंकि ऐसा देखा गया है कि गैरमान्यता प्राप्त कॉलेज या यूनिवर्सिटी में मिली हुई कैंपस प्लेसमेंट की लाइफ ज्यादा लंबी नहीं होती। अमूमन 4 से 6 महीनों में यहां के स्टूडेंट्स को यह कहकर निकाल दिया जाता है कि वे योग्य नहीं हैं। इसके बाद दूसरी कंपनियों में जॉब ढूंढना उनके लिए मुश्किल हो जाता है।
4. वहीं डीम्ड यूनिवर्सिटी सबसे ज्यादा गड़बड़ी दूसरी जगहों पर स्टडी सेंटर खोलने में करती है। संसद और विधानसभाओं के एक्ट द्वारा बनाई गई यूनिवर्सिटी ही दूसरे कॉलेज और इंस्टिट्यूट को कोर्स चलाने के लिए खुद से संबंद्ध कर मान्यता दे सकती है। डीम्ड यूनिवर्सिटी को अपने मेन कैंपस के अलावा दूसरे किसी कैंपस या संस्थान में कोर्स चलाने की इजाजत नहीं है।

डीम्ड यूनिवर्सिटी के लिए जरूरी बातें
- जिसे NAAC यानी National Assessment and Accreditation Council या NBA यानी National Board of Accreditation द्वारा लगातार दो साल के लिए उच्चतम ग्रेड दिया गया हो।
- जिसके पास रिसर्च और आधुनिक सूचना-संसाधनों वाला इंफ्रास्ट्रक्चर मौजूद हो।
- रिसर्च प्रोग्राम के साथ अंडर ग्रैजुएट और कम से कम 5 पोस्ट ग्रैजुएट डिपार्टमेंट का अस्तित्व हो।
- जिसके पास यूजीसी के मानकों के अनुसार पढ़ाई और रिसर्च के लिए क्वॉलिफाइड फैकल्टी हो।
- यूनिवर्सिटी का कोई डिस्टेंस एजुकेशन प्रोग्राम न हो।
- जिसके पास हॉस्टल, लाइब्रेरी आदि भी हो।
- यूजीसी नियमों के मुताबिक कैंपस के लिए पर्याप्त जगह हो।
- हर विभाग में सामान्य पाठ्यक्रमों के लिए कम से कम एक प्रफेसर, दो एसोसिएट प्रफेसर और 4 असिस्टेंट प्रफेसर स्थायी रूप से हों।
- यूनिवर्सिटी मानी गई संस्था के रूप में कम से कम 5 सालों से अस्तित्व में रही हो।

कुछ डीम्ड यूनिवर्सिटी हैं:
- जामिया हमदर्द, हमदर्द नगर, दिल्ली
- इंडियन एग्रिकल्चरल रिसर्च इंस्टिट्यूट, दिल्ली
- इंडियन लॉ इंस्टिट्यूट, दिल्ली
- इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ फॉरन ट्रेड, दिल्ली
- जेपी इंस्टिट्यूट ऑफ इंफॉर्मेशन टेक्नॉलजी, नोएडा, यूपी
नोट: अगर कोई संस्थान डीम्ड यूनिवर्सिटी होने की बात करता है तो उसकी सचाई जांचने के लिए यूजीसी की वेबसाइट www.ugc.ac.in देख सकते हैं।

खुद ऐसे करें चेकिंग
अगर आप किसी कॉलेज या यूनिवर्सिटी में एडमिशन लेने जा रहे हैं और संस्थान या उसके चलाए जाने वाले कोर्स के बारे में क्रॉस चेक करना चाहते हैं तो इन पर निगरानी और कंट्रोल रखने वाले कुछ संस्थानों के नाम और वेबसाइट हम यहां दे रहे हैं। अगर संदेह फिर भी न मिटे तो इन वेबसाइट्स पर जरूरी कॉन्टैक्ट भी उपलब्ध होते हैं, जहां फोन कर आप पूरी जानकारी ले सकते हैं।

1. www.ugc.ac.in
बारहवीं के बाद की पढ़ाई के मामले में यूजीसी (यूनिवर्सिटी ग्रांट कमिशन) ही वह संस्था है और इसकी वेबसाइट वह जगह है, जहां आप पूरी जानकारी ले सकते हैं। जिस भी यूनिवर्सिटी या कॉलेज की बारे में जानकारी चाहिए, उसके बारे में पूरी जानकारी यहां मिल जाएगी। कोई भी संस्थान अगर डिग्री कोर्स करा रहा है और अगर वह असली है तो उसकी जानकारी इस वेबसाइट पर सर्च में नाम करने पर मिल जाएगी।

2. www.aicte-india.org
यह टेक्निकल एजुकेशन की मान्यता के लिए एक राष्ट्रीय स्तर की परिषद है जो मानव संसाधन मंत्रालय के तहत काम करती है। कोई भी संस्थान जो इंजिनियरिंग, मैनेजमेंट आदि जैसे तकनीकी क्षेत्रों में डिग्री या डिप्लोमा देता हो, उसे एआईसीटीई से मान्यता लेना जरूरी होता है। यह अपने पैरामीटर्स के अनुसार भारतीय शिक्षा संस्थानों में पोस्ट ग्रैजुएशन और ग्रैजुएशन स्तर के कार्यक्रमों को मान्यता देती है। इसकी वेबसाइट www.aicte-india.org है। इस संस्था के तहत निम्न तरह की तकनीकी पढ़ाई आती है:
- इंजिनियरिंग
- टेक्नॉलजी
- मैनेजमेंट स्टडीज
- वोकेशनल एजुकेशन
- फार्मेसी
- आर्किटेक्चर
- होटेल मैनेजमेंट एंड कैटरिंग टेक्नॉलजी
- इन्फॉर्मेशन टेक्नॉलजी
- टाउन एंड कंट्री प्लानिंग
- अप्लाइड आर्ट्स एंड क्राफ्ट्स
ऊपर वाले कोर्सों में से किसी में अगर कोई संस्थान डिग्री या डिप्लोमा करा रहा है तो इस वेबसाइट पर जाकर सर्च में उसका नाम टाइप करने पर अगर उसके बारे में और उस कोर्स के बारे में जानकारी आती है तो वह असली है।

किसी संस्थान की कोई स्पेशलाइज्ड कोर्स मान्यता प्राप्त है या नहीं, नीचे दी गई उससे जुड़ी वेबसाइट पर जाकर सर्च में संस्थान का नाम डालें:
- टीचर्स एजुकेशन www.ncte-india.org
- लॉ www.barcouncilofindia.org
- डेंटल कोर्स www.dciindia.gov.in
- फार्मेसी www.pci.nic.in
- होम्योपैथी डिग्री www.cchindia.com
- यूनानी : www.ccimindia.org
- एग्रिकल्चर www.icar.org.in

डिस्टेंस लर्निंग/ पत्राचार से पढ़ाई के लिए क्या रखें ध्यान
पिछले चार दशकों में घर बैठे पढ़ाई का हमारे देश में खासा प्रसार हुआ है। इसकी शुरुआत सन 1982 में डॉ. भीमराव आम्बेडकर ओपन यूनिवर्सिटी की स्थापना के साथ हुई थी। बाद में इंदिरा गांधी नैशनल ओपन यूनिवर्सिटी यानी इग्नू की शुरुआत से इसे ज्यादा बढ़ावा मिला। कोई भी ओपन यूनिवर्सिटी सामान्य, बिजनेस और टेक्निकल एजुकेशन आधारित डिग्री बांटने की पात्रता रखती हैं।

क्या है SOL: दिल्ली यूनिवर्सिटी का स्कूल ऑफ ओपन लर्निंग दूरस्थ शिक्षा पद्धति से एजुकेशन देता है। यह कुछ विषयों में ही डिग्री जारी करता है, जिसमें बीए, बीकॉम, एमए, एमकॉम आदि शामिल है।

SOL और IGNOU में फर्क: एसओएल के माध्यम से आप बीए या बीकॉम की डिग्री हासिल कर सकते हैं जबकि इग्नू में कई तरह के कोर्स होते हैं। इग्नू साल में दो बार परीक्षा पास करने का मौका देता है, लेकिन एसओएल में साल में एक ही बार परीक्षा होती है।

कुछ प्रमुख मान्यता प्राप्त डिस्टेंस एजुकेशन इंस्टिट्यूट
1. नालंदा ओपन यूनिवर्सिटी, पटना
2. वर्धमान महावीर ओपन यूनिवर्सिटी, कोटा
3. यशवंतराव चह्वाण महाराष्ट्र ओपन यूनिवर्सिटी, नासिक
4. डॉ. बी. आर. आम्बेडकर ओपन यूनिवर्सिटी, हैदराबाद
5. इंदिरा गांधी नैशनल ओपन यूनिवर्सिटी, दिल्ली
6 स्कूल ऑफ ओपन लर्निंग, दिल्ली

www.ugc.ac.in/deb पर जाकर खुद जांचें कि जिस डिस्टेंस एजुकेशन इंस्टिट्यूट में आप दाखिला ले रहे हैं, वह और उसका कोर्स मान्यता प्राप्त है कि नहीं।

www.knowyourcollege-gov.in- देशभर में फर्जी यूनिवर्सिटी का एक बड़ा जाल फैला हुआ है। वे कुछ इस तरह छात्रों को फर्जीवाड़े में फंसा रही हैं कि छात्रों को आसानी से उनकी जालसाजी का पता ही नहीं चलता। छात्रों की इस जाल से बचाने के लिए हाल ही में इस वेबपोर्टल को लॉन्च किया गया है। इस पर मान्यता प्राप्त कॉलेजों की जानकारी आसानी से प्राप्त की जा सकती है।

31 मार्च 2019 तक देश में यूनिवर्सिटीज की कुल संख्या: 907
स्टेट यूनिवर्सिटीज: 399
डीम्ड यूनिवर्सिटीज: 126
सेंट्रल यूनिवर्सिटीज: 48
प्राइवेट यूनिवर्सिटीज: 334

लीगल एंगल
स्टूडेंट उपभोक्ता की श्रेणी में आते हैं, क्योंकि वे एजुकेशनल इंस्टिट्यूट को पैसे देकर उसकी सेवाएं लेते हैं। कोई भी छात्र शिक्षा संबंधी मुद्दों जैसे- टीचर का काफी दिनों तक अपॉइंट न होना, फैकल्टी की लगातार अनुपस्थिति, कॉलेज का रिलोकेशन आदि के लिए कंज्यूमर कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकता है। सुप्रीम कोर्ट के एक निर्णय के मुताबिक कोई भी शिक्षा संस्थान पूरे कोर्स की फीस एक साथ नहीं ले सकता। लेकिन अगर कोर्स एक सत्र या एक साल से ज्यादा का है तो ऐसे में संस्थान एक सत्र या एक साल की फीस एक साथ ले सकता है। अगर स्टूडेंट बीच में ही संस्थान छोड़ता है तो वाजिब कारण पर संस्थान अनुपातिक फीस काटकर बाकी की फीस स्टूडेंट को लौटाएगा। इस दौरान संस्थान स्टूडेंट के मूल सर्टिफिकेट नहीं रोक सकता। स्टूडेंट इन बातों के लिए कंस्यूमर कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकता है:
- पढ़ाई की व्यवस्था सही न होना
- टीचरों की कमी होना
- सुविधाओं की कमी होना
- सिलेबस का समय पर शुरू न होना
- स्टडी मटैरियल न देना
- मूल प्रमाणपत्र देने से इनकार करना
- संस्थान के बारे में गलत तथा भ्रामक सूचना देना
- नौकरी का वादा करके उसे पूरा न करना
- कॉलेज छोड़ने पर फीस न लौटाना
- सभी सत्रों की फीस एक साथ मांगना

स्टूडेंट्स के साथ धोखाधड़ी के मामले में यूजीसी हस्तक्षेप करती है। वहीं डीम्ड यूनिवर्सिटी सबसे ज्यादा गड़बड़ी दूसरी जगहों पर अपने कैंपस या स्टडी सेंटर खोलने में करती है। इसके अलावा बिना मान्यता या इजाजत के डिपार्टमेंट भी खोले जाते हैं। स्टूडेंट को चाहिए कि किसी इंस्टिट्यूट की मान्यता या कोर्स के बारे में पता लगाने के लिए वे यूजीसी या एआईसीटीई और डीईबी की वेबसाइट पर जाकर जांच करें। सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले के मुताबिक अगर स्टूडेंट ने कोई भी कक्षा नहीं ली है तो ऐसी स्थिति में संबंधित संस्थान को सारे पैसे वापस करने होंगे। ऐसा न करने स्टूडेंट कंस्यूमर कोर्ट जा सकता है। कैसे जाएं और कहां जाएं- इसकी जानकारी के लिए 1800-11-400 पर फोन करें। nationalconsumerhelpline.in वेबसाइट पर भी जा सकते हैं।

पढ़ाई भारत में डिग्री विदेशी यूनिवर्सिटी की
देश में ऐसे कई प्राइवेट शिक्षा संस्थान हैं जो भारत में पढ़ाई कराने के बाद डिग्री किसी दूसरे देश की यूनिवर्सिटी की देते हैं। लेकिन बहुत बार इस डिग्री को भारत में मान्यता नहीं मिली होती। ऐसे में इस डिग्री के आधार पर देश में जॉब भी नहीं मिल पाती। दो साल की फास्ट ट्रैक की विदेशी डिग्री को यहां मान्यता नहीं हैं। किसे हैं, किसे नहीं है- यह जानने के लिए असोसिएशन ऑफ यूनिवर्सिटीज की वेबसाइट www.aiu.ac.in पर जाएं और वहां के इंफर्मेशन ब्रोशर फ्री में डाउनलोड करके पढ़ें।

विदेश में पढ़ाई
पिछले दिनों बड़ी संख्या में भारतीय छात्रों को यूएस में हिरासत में ले लिया गया था। उन पर आरोप लगाया गया कि यूएस आने के लिए उन्होंने फर्जी यूनिवर्सिटी में दाखिला लिया। दूसरी ओर, स्टूडेंट्स का कहना था कि वे फर्जी यूनिवर्सिटी के जाल में फंस गए थे। ऐसे में जरूरी है कि अगर आप विदेश के किसी यूनिवर्सिटी में एडमिशन लेना चाहते हैं तो सतर्क रहें। बेहतर होगा कि स्टूडेंट्स खुद इंटरनेट और एक्सपर्ट्स की मदद से सही विश्वविद्यालयों चुनें।

इन बातों का ध्यान रखें
- पता करें कि उस यूनिवर्सिटी के पास ऑपरेशनल कैंपस है या नहीं। ऐसा न हो कि वह किसी के घर से चल रही हो।
- फर्जी यूनिवर्सिटी की वेबसाइट पर अक्सर फैकल्टी की लिस्ट नहीं होती। एडमिशन से पहले यूनिवर्सिटी की वेबसाइट पर फैकल्टी की लिस्ट चेक करें।
- अगर किसी यूनिवर्सिटी के पास तय करिकुलम नहीं है तो आप एडमिशन कतई न लें।
- वीजा रैकेट में न फंसें। पे टु स्टे वीजा के लिए कभी भी हां न करें।
- याद रखें, स्टूडेंट एंड एक्सचेंज विजिटर प्रोग्राम किसी यूनिवर्सिटी के जेनुइन होने की गारंटी नहीं है।
- यह पहले ही पता कर ले कि जिस देश में पढ़ने आप जा रहे हैं वहां पढ़ाई के साथ कमाने की इजाजत है या नहीं। काम करने संबंधी वीजा के नियम, रिसर्च की संभावनाएं, इंटरनेशनल स्टूडेंट्स सैटिस्फेक्शन इंडेक्स, रहने का खर्च आदि पहले पता कर लें।

ऐसे जांच करें
- आपने जो कॉलेज या इंस्टिट्यूट चुना है, वह फर्जी तो नहीं, यह चेक करने के लिए whed.net/home.php पर जाएं। यह वर्ल्ड हायर एजुकेशन डेटाबेस है। यहां दुनिया भर के तमाम प्रामाणिक कॉलेजों की लिस्ट है।
- अमेरिकी सरकार की वेबसाइट usa.gov/study-in-us पर जाएं। वहां से अमेरिका जाकर पढ़ाई करने के बारे में बेसिक और प्रामाणिक जानकारी मिल जाएगी।
- फिर आप जिस सब्जेक्ट की पढ़ाई करना चाहते हैं, वह कौन-कौन से कॉलेज और यूनिवर्सिटी में है, यह पता लगाएं। वह कॉलेज कैसा है, यह जानने की कोशिश करें। कॉलेज की वेबसाइट के अलावा उससे जुड़ी तमाम वेबसाइट्स पर जाएं। वहां के स्टूडेंट्स कहां-कहां काम कर रहे हैं, यह जानकारी हासिल करें। सभी कॉलेजों की एल्मनै (एल्युमिनाइज) असोसिएशन भी हैं, जो सोशल मीडिया (फेसबुक आदि) पर एक्टिव होती हैं। कॉलेज के बारे में उनके रिव्यू पढ़ें। कुछ निगेटिव कमेंट्स हैं तो उन पर खास ध्यान दें।
- यूएस में हर कॉलेज की रैंकिंग ऑनलाइन उपलब्ध है। usnews.com/best-colleges पर जाकर रैंकिंग चेक कर सकते हैं।

दाखिले से पहले परखें एक्सपर्ट्स पैनल
-देवेंद्र कुमार चौबे, प्रफेसर, इंडियन लैंग्वेज सेंटर, JNU
-प्रफेसर दरवेश गोपाल, राजनीति शास्त्र, IGNOU
-प्रफेसर गोपाल प्रधान, बी. आर. आम्बेडकर यूनिवर्सिटी, नई दिल्ली
-प्रेमलता, कंस्यूमर मामलों की जानकार
-रावी बीरबल, वकील, सुप्रीम कोर्ट
-आरती भल्ला, वकील, सुप्रीम कोर्ट

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रीजनिंग में चाहिए अच्छा स्कोर तो आजमाएं ये ट्रिक्स

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आज हर कॉम्पिटिटिव एग्जाम में रीजनिंग से जुड़े सवाल जरूर पूछे जाते हैं। यह ऐसा सेक्शन है जिसमें थोड़ी सी तैयारी के साथ एग्जाम में बेहतर नंबर लाए जा सकते हैं। वैसे तो रीजनिंग के सवाल ज्यादा जटिल लगते हैं, लेकिन आप इसकी नियमित ढंग से तैयारी करें तो यह सेक्शन ज्यादा मुश्किल नहीं लगेगा। रीजनिंग में स्कोर करने के लिए ट्रिक्स अहम रोल निभाती हैं। ट्रिक्स से कम समय में ज्यादा सवाल हल किए जा सकते हैं।

कई चैप्टर होते हैं
रीजनिंग की तैयारी के लिए आपको कई चैप्टर पढ़ने होते हैं। इनमें सिमिलैरिटी एनेलॉजी, क्लासिफिकेशन, कोडिंग-डिकोडिंग, सीरीज टेस्ट, क्लॉक, कैलेंडर व क्यूब, मैट्रिक्स, स्कोरिंग, नंबर मैट्रिक्स, अल्फाबेट मैट्रिक्स, वर्ल्ड फ्रेमिंग, वर्ल्ड अरेंजमेंट, रैकिंग, सिटिंग अरेजमेंट, मैथेमैटिकल रीजनिंग, नंबर पजल, साइकॉलजिकल रीजनिंग, एनेलैटिकल रीजनिंग आदि हैं।

नंबर सीरीज: यह अल्फाबेट नंबर व लेटर्स की एक सीरीज होती है। इन सीरीज का पैटर्न ज्यादातर इंक्रीमेंट और डिक्रीमेंट पर आधारित होता है। इसके लिए मैथमैटिकल पैटर्न को अपनाएं। इसे बेहतर तरह से हल करने के लिए पहले सीरीज के पैटर्न को समझ लें, इसके बाद ही सवाल को सही तरीके से हल करें। इससे गलती कम होती है।

सिमिलैरिटी एनोलॉजी: इसमें रिलेशन बेस्ड सवाल पूछे जाते हैं। इसमें एलिमेंट फैक्टर और नंबर व लेटर पर आधारित एक केस होता है। इसे हल करने के लिए तार्किक नियमों को ध्यान में रखें।

कोडिंग-डी कोडिंग: इसमें अल्फाबेट के योग से बना हुआ एक कोड होता है। जो कुछ नियमों पर आधारित होते हैं। उसी आधार पर सवाल पूछा जाता है। इसे आसानी से हल करने के लिए अल्फाबेट के बीच अंतर को समझें। इससे सवाल को आसानी से डिकोड किया जा सकेगा। इसे अच्छे से समझने के लिए बाजार में उपलब्ध किताबों को पढ़ें। इससे सवाल करने में आसानी होगी।

साइकॉलजिकल रीजनिंग: इसमें स्टूडेंट्स के मानसिक परीक्षण की जांच होती है। इसमें सवाल के कॉन्सेप्ट को देखा जाता है। इसे हल करने में मैथ्स के नियम को कतई न लगाएं बल्कि इसे तार्किक नियम से हल करें। इसके सवाल इस तरह के होंगे, जैसे एक आंख से एक किलोमीटर दिखता है तो दो आंख से कितना दिखेगा।

काम की हैं ये वेबसाइट्स
1. एसएससीऑनलाइनएग्जाम: यह वेबसाइट खासतौर पर SSC एग्जाम के अभ्यर्थियों के लिए ही हैं। इसमें SSC CGL टायर 1 और 2, SSC JE, SSC CHSL और SSC MTS आदि के प्रैक्टिस क्वेस्चंस हैं।
वेबसाइट: ssconlineexam.com

2. वाई-फाई स्टडी: यहां IBPS, SSC, AIS, JEE, CTET, UPSC, IAS/IES और MBA-CAT परीक्षा सभी से जुड़ी अध्ययन सामग्री मिल जाएगी। यहां क्विज को अलग-अलग अंदाज और लेआऊट में दिया गया है। हर प्रैक्टिस सेट्स में कई विडियो, कॉन्सेप्ट और टेस्ट्स हैं। हर टेस्ट्स में 10 सवाल होते हैं।
वेबसाइट: wifistudy.com

3. एजुडोज: इस वेबसाइट ने कई नए आइडियाज पर अमल किया है। यहां पूरा स्टडी मटीरियल हिंदी और इंग्लिश भाषाओं में उपलब्ध है। टॉपिक वाइज शॉर्टकट ट्रिक्स, उदाहरण और अभ्यास मिल जाएंगे।
वेबसाइट: edudose.com

4. फ्री ऑनलाइन टेस्ट: यह वेबसाइट समय-समय पर सवालों को अपडेट करती रहती है। यहां ऐप्टिट्यूड, रीजनिंग, इंग्लिश, जनरल नॉलेज, कंप्यूटर नॉलेज और प्रफेशनल नॉलेज से जुड़े सवालों के प्रैक्टिस सेट्स मिल जाएंगे। इसकी खासियत यह है कि हर सवाल पर आपको कितना समय लग रहा है, पूरी रिपोर्ट आपको मिल जाएगी। यहां पिछले साल के क्वेस्चन पेपर हल समेत मिल जाएंगे।
वेबसाइट: freeonlinetest.in

5. इंडियाबिक्स डॉट कॉम: यहां आपको टॉपिक वाइज सवाल और जवाब मिलेगा। जवाब को विस्तार से समझाया गया है। यहां न सिर्फ रीजनिंग बल्कि अन्य विषयों के प्रैक्टिस सेट भी मिल जाएंगे।
वेबसाइट: indiabix.com

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इकनॉमिक्स में सवारें भविष्य, मिलता है तगड़ा सैलरी पैकेज

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एक ऐसा सब्जेक्ट जो आर्ट्स का होते हुए भी, साइंस के किसी भी सब्जेक्ट को टक्कर देता है, एक ऐसा सब्जेक्ट जिससे ग्रैजुएशन करने पर जॉब मार्केट अमूमन सीधे कुर्सी ऑफर करती है, एक ऐसा सब्जेक्ट जिसके लिए डीयू में कटऑफ 95 फीसदी से भी ज्यादा पहुंचता है। हम बात कर रहे हैं 'इकनॉमिक्स' की। विस्तार से बता रहे हैं इकनॉमिस्ट चिराग मेहता...

क्या है इकनॉमिक्स
इकनॉमिक्स एक बड़ा सब्जेक्ट है, लेकिन इसे मोटे तौर पर विभिन्न बाजारों के अध्ययन के रूप में समझा जा सकता है। इस विषय में अर्थव्यवस्था शामिल होती है और कैसे बाजारों में खरीददार और विक्रेता अपने संसाधनों का उपयोग करके आगे बढ़ते हैं। पूरे विश्व की अर्थव्यवस्था कैसे चलती है? लोगों के पॉकेट और मार्केट का क्या रिलेशन है? जीडीपी, मुद्रास्फीति और बेरोजगारी जैसे विषयों पर सरकारी नीति कैसे काम करती है?

किसे नहीं पढ़नी चाहिए?
इसके लिए 4 बातों का ध्यान रखना जरूरी है
•अगर कोई शख्स मैथ्स को देखकर परेशान होता है तो उसे सीनियर लेवल पर इकनॉमिक्स पढ़ने से पहले एक बार जरूर सोचना चाहिए। यह जरूरी नहीं कि ग्रैजुएशन में इकनॉमिक्स रखने के लिए उसे 12वीं स्तर का पूरा मैथ्स आता हो, लेकिन मैथ्स के सवालों को देखकर सिर दुखता नहीं हो, यह जरूर होना चाहिए।
•राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर के आर्थिक मुद्दों में दिलचस्पी हो।
•उसकी सोच और उसका व्यवहार समस्याओं के निदान यानी प्रॉब्लम-सॉल्विंग पर ज्यादा हो क्योंकि कंपनी या सरकार में उसे नई-नई समस्या से दो-चार होना पड़ेगा।
•आंकड़ों (डेटा) से खेलने में मजा आता हो।

इंडस्ट्री और डिग्री में गैप?
वैसे तो कोर्स में इंडस्ट्री की कई तरह के जरूरतों की पूर्ति हो जाती है, लेकिन सिलेबस में वक्त के हिसाब से बदलाव नहीं हो पाते। डेटा और ई-व्यूज (स्टैटिस्टिकल फोरकास्टिंग: स्टैट के आधार पर भविष्य की गणना करना) ऐसे पॉइंट हैं, जिन पर हमें काम करने की जरूरत है। सच तो यह है कि जैसे ही डेटा और ई-व्यूज जैसी चीजें किसी इकनॉमिक्स ग्रैजुएट के सामने आती हैं, अमूमन वह समस्या से जूझने लगता है।

यहां इस बात को भी ध्यान में रखना जरूरी है कि हर किसी को डेटा साइंटिस्ट, रिसर्चर या पॉलिसीमेकर नहीं बनना है, इसलिए इससे संबंधित स्किल भी उन्हीं को डिवेलप करनी चाहिए, जिन्हें ऐसे क्षेत्रों में जाना है।

जिन लोगों को विश्लेषक नहीं बनना बल्कि कॉरपोरेट जॉब करना है, उनके लिए इंटरपर्सनल ट्रेनिंग ज्यादा फायदेमंद है। इसे ग्रुप स्टडी, ग्रुप डिस्कशन आदि की तैयारी से हासिल किया जा सकता है।

ऑन्ट्रप्रनरशिप में कामयाबी के मौके?
वैसे स्टार्टअप तो कोई भी शुरू कर सकता है, लेकिन एक इकनॉमिस्ट इसे अच्छी तरह संभाल सकता है। दरअसल, वह किसी भी संसाधन का बेहतर और पूर्ण उपयोग जानता है क्योंकि ये बातें इकनॉमिक्स में पढ़ाई भी जाती हैं। वह मार्केट शेयर, इनवेस्टर वैल्यू आदि को अच्छी तरह समझता है।

इंग्लिश की भूमिका कितनी?
सच तो यह है कि इकनॉमिक्स में करियर बनाने के लिए बहुत शानदार इंग्लिश की जरूरत नहीं है। इसमें भी उतनी ही इंग्लिश चाहिए, जितनी फिजिक्स को समझने के लिए। अगर इस फील्ड में विशेषज्ञ बनना है और राष्ट्रीय या अंतरराष्ट्रीय स्तर पर काम करना है तो शानदार अंग्रेजी की जरूरत है।

ये हैं इकनॉमिक्स के आधार
इसकी अहमियत इसी बात से समझी जा सकती है कि इस विषय के लिए अलग-से 'नॉबेल पुरस्कार' दिया जाता है। देश और विदेश में ऐसे अनेकों नाम हैं, जिन्होंने अर्थनीति को बार-बार परिभाषित किया है। भारत में अमर्त्य सेन LSE (लंदन स्कूल ऑफ इकनॉमिक्स) में पढ़ाया है तो उर्जित पटेल और कौशिक बसु, एलएसई में पढ़ाई की है। रघुराम राजन, जगदीश भगवती, पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और कई ऐसे ही नाम हैं, जिन्होंने इकनॉमिक्स के क्षेत्र में खासा नाम कमाया है।

पोस्ट-ग्रैजुएशन है जरूरी?
अगर इकनॉमिक्स की पढ़ाई किसी अच्छे कॉलेज से हुई है तो जॉब मिल जाती है, लेकिन अच्छी जॉब और पैकेज के लिए पीजी करना भी जरूरी है। दरअसल, अंडर-ग्रैुजएट कोर्स को स्पेशलाइजेशन नहीं माना जाता। जब कोई पीजी करके जॉब ढूंढता है तो पब्लिक पॉलिसीज से जुड़े फील्ड में भी आसानी से जॉब मिल जाती है। जैसे, सरकार के लिए नीति बनाना, कंपनी के लिए पॉलिसी मेकिंग आदि।

पोस्ट-ग्रैजुएशन के लिए देश के बेहतरीन कॉलेज
• दिल्ली स्कूल ऑफ इकनॉमिक्स (DSE)
• इंडियन स्टैटिस्टिकल इंस्टिट्यूट (ISI)
• इंदिरा गांधी इंस्टिट्यूट ऑफ डिवेलपमेंट एंड रिसर्च (IGIDR)
• जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी (JNU)

पीजी के बाद कहां पर जॉब?
गवर्नमेंट और प्राइवेट सेक्टर में पॉलिसी मेकिंग में इकनॉमिक्स के जानकारों की डिमांड है। नैशनल काउंसिल ऑफ अप्लाइड इकनॉमिक रिसर्च (NCAER), इंडियन काउंसिल ऑफ सोशल साइंस रिसर्च (ICSSR) और इंस्टिट्यूट ऑफ इकनॉमिक ग्रोथ (IEG) जैसे विभिन्न संस्थानों में इनकी अच्छी डिमांड है। इकनॉमिस्ट इन संस्थानों में आर्थिक रुझानों का एनालिसिस, डिवेलपमेंट और इकनॉमिक ग्रोथ की भविष्यवाणी करते हैं। इसके अलावा रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) अपनी अलग-अलग भर्ती परीक्षाओं के जरिए से इकनॉमिस्ट को बैंकिंग क्षेत्र में नियुक्त करता है। सरकार या केंद्रीय बैंक के साथ-साथ स्टूडेंट्स चाहें तो इंडियन इकनॉमिक सर्विस (IES) से भी जुड़ सकते हैं। इनके अलावा अंतरराष्ट्रीय स्तर की संस्थाएं, मसलन, वर्ल्ड बैंक, आईएमएफ जैसे ऑप्शन भी हैं, जहां अच्छे इकनॉमिस्ट की जरूरत होती है। हालांकि, इनमें पीएचडी वालों की डिमांड भी ज्यादा होती है।

पीजी के बाद कितनी कमाई?
अगर किसी स्टूडेंट ने देश या विदेश के बेहतरीन संस्थान से पोस्ट ग्रैजुएशन की डिग्री ली है तो उसे कम से कम 10 से 20 लाख रुपये का सलाना पैकेज ऑफर हो ही जाता है। कई बार 20 लाख से भी ज्यादा का पैकेज मिल जाता है।
ग्रैजुएशन लेवल पर क्या होती है पढ़ाई?

वैसे तो इकनॉमिक्स का सिलेबस हर यूनिवर्सिटी की अलग-अलग हो सकता है, लेकिन इकनॉमिक्स का परिचय, माइक्रोइकनॉमिक्स, मैक्रोइकनॉमिक्स, मैथ्स, स्टैट ऐसे विषय हैं जो ज्यादातर यूनिवर्सिटीज में पढ़ाए ही जाते हैं। इनके अलावा डेटा साइंस भी इसमें हो सकती है।

अंडरग्रैजुएशन के लिए देश के बेहतरीन कॉलेज
इस ग्रुप में ज्यादातर दिल्ली यूनिवर्सिटी के कॉलेज हैं
• सेंट स्टीफंस कॉलेज
• हिंदू कॉलेज
• लेडी श्रीराम कॉलेज (LSR)
• श्रीराम कॉलेज ऑफ कॉमर्स (SRCC)

इनके अलावा कोलकाता यूनिवर्सिटी का प्रेजिडेंसी कॉलेज और पुणे का फग्यूर्सन कॉलेज भी बेहतर हैं।

ग्रैजुएशन के बाद कहां पर जॉब?
इकनॉमिक्स से ग्रैजुएशन के बाद एक्चूरिअल (Actuarial) साइंस या रिस्क मैनेजमेंट फील्ड में एक प्रफेशनल के रूप में जुड़ सकते हैं। इस सेक्टर में पैकेज भी अच्छा मिलता है। इसके अलावा डेटा एनालिसिस है, जिसे बिजनेस एनालिटिक्स या डेटा साइंस या बिग डेटा एनालिटिक्स के रूप में भी जाना जाता है, इसमें भी शानदार करियर है। दरअसल, डेटा का पूरा खेल स्टैट से जुड़ा है, इसलिए इकनॉमिक्स वालों की मांग इसमें भी है।

ग्रैजुएशन के बाद कितनी कमाई?
अगर किसी स्टूडेंट ने अच्छे कॉलेज से इकनॉमिक्स से ग्रैजुएशन किया है तो 6 से 8 लाख रुपये सलाना तक के पैकेज ऑफर हो रहे हैं।

ग्रैजुएशन में पढ़ने के लिए 12वीं में क्या सब्जेक्ट हों?
किसी मान्यताप्राप्त बोर्ड से 12वीं कर चुका स्टूडेंट, चाहे वह किसी भी स्ट्रीम (आर्ट्स/साइंस/कॉमर्स) का हो, ग्रैजुएशन में इकनॉमिक्स रख सकता है। हालांकि, 12वीं तक मैथ्स एक विषय के रूप में अगर शामिल रहता है तो उन्हें ज्यादा तरजीह देते हैं, भारत के साथ-साथ विदेशों के टॉप कॉलेज वाले।

BA (ऑनर्स) या BSc (ऑनर्स)?
इकनॉमिक्स के लिए बीए और बीएससी ऑनर्स में से बेहतर कौन है, इस पर अक्सर चर्चा होती है। लोग इसे अब भी साइंस या आर्ट्स में बांटने की कोशिश करते हैं। सच तो यह है कि इकनॉमिक्स एक ऐसा सब्जेक्ट है जिसे आर्ट्स, साइंस और कॉमर्स तीनों स्ट्रीम वाले पढ़कर अपना करियर बना सकते हैं। आज भी कुछ यूनिवर्सिटी इकनॉमिक्स से ग्रैजुएशन के बाद बैचलर ऑफ आर्ट्स (BA) की डिग्री प्रदान करती है जबकि दूसरी बैचलर ऑफ साइंस (BSc) की डिग्री देती है। मसलन कैंब्रिज यूनिवर्सिटी और दिल्ली यूनिवर्सिटी, जहां बीए (ऑनर्स) की डिग्री प्रदान करती है। वहीं लंदन स्कूल ऑफ इकनॉमिक्स (LSE) और कलकत्ता यूनिवर्सिटी बीएससी (ऑनर्स) की डिग्री जारी करती है। बीए और बीएससी के अलावा BBE (बैचलर इन बिजनेस इकनॉमिक्स) में भी इकनॉमिक्स की पढ़ाई होती है, लेकिन इसमें इकनॉमिक्स की पूरी पढ़ाई नहीं होती। इसमें एक बड़ा हिस्सा बिजनेस स्टडी का होता है।

विदेशों की टॉप यूनिवर्सिटीज
QS यूनिवर्सिटी रैंकिंग 2019 के आधार पर, इकनॉमिक्स के लिए टॉप 20 यूनिवर्सिटी में से 18 अमेरिका या ब्रिटेन में स्थित हैं।
ब्रिटेन
• LSE (लंदन स्कूल ऑफ इकनॉमिक्स)
• ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी
• कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी

अमेरिका
• हार्वर्ड यूनिवर्सिटी
• MIT (मैसाचुसेट्स इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नॉलजी)
• स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी

इनके अलावा टॉप 50 में दूसरे देशों में सिंगापुर, कनाडा, यूरोप और ऑस्ट्रेलिया की यूनिवर्सिटीज शामिल हैं। इन यूनिवर्सिटी से डिग्री हासिल करने पर उसे नैशनल और इंटरनैशनल, दोनों स्तर पर काम करने का मौका मिल जाता है।

इकनॉमिक्स को समझने के लिए यू-ट्यूब विडियो
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स्टैटिस्टिक्स को समझने के लिए

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बहुत है स्कोप, जानें कैसे बनें स्पोर्ट्स मैनेजर

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खेलकूद की बढ़ती लोकप्रियता के मद्देनजर स्पोर्ट्स मैनेजर की मांग में भी इजाफा हुआ है। स्पोर्ट्स मैनेजर एक उभरता हुआ करियर है। इस फील्ड में प्रतियोगिता कम होने के कारण करियर का स्कोप भी काफी है। आइए आज जानते हैं कि इसके लिए क्या योग्यता चाहिए, कौन-कौन से कोर्स कर सकते हैं...

योग्यता
स्पोर्ट्स मैनेजमेंट कोर्स पोस्ट ग्रैजुएट डिप्लोमा लेवल पर कराए जाते हैं। स्पोर्ट्स मैनेजमेंट में कोर्स ऑफर करने वाले संस्थानों की भारत में अभी संख्या बहुत कम है। भारत के बाहर बहुत से संस्थान हैं और वहां स्कोप भी बहुत है। पोस्ट ग्रैजुएट कोर्स करने के लिए ग्रैजुएशन होना अनिवार्य है। वैसे तो किसी भी स्ट्रीम के कैंडिडेट्स स्पोर्ट्स मैनेजमेंट में कोर्स कर सकते हैं लेकिन फिजिकल एजुकेशन (पीई) में ग्रैजुएशन हों तो ज्यादा प्राथमिकता दी जाती है। आप अपनी पसंद के किसी खास स्पोर्ट्स में बैचलर्स इन फिजिकल एजुकेशन (बी पीईडी) कर सकते हैं या अन्य संबंधित कोर्स कर सकते हैं। स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया फिजिकल एजुकेशन में कोर्स कराती है। आप वहां से अपनी पसंद के कोर्स कर सकते हैं।

स्पोर्ट्स मैनेजमेंट में क्या काम?
स्पोर्ट मैनेजमेंट में स्पोर्ट मार्केटिंग, फंड जुटाना, प्रमोशन, जनसम्पर्क, स्पोर्ट मैनेजमेंट में एथिक्स, खेल के कानूनी पहलु, योजना बनाना और प्रबंधन करना, स्पोर्ट मैनेजमेंट की समस्याओं का पता लगाना और उनको हल करना होता है। ग्राहकों और खेल के व्यवहार को देखकर किसी खेल के प्रसारण को कैसे डिवेलप किया जाए, यह सब चीजें सिखाई जाती हैं। लॉ, फाइनैंस और इकनॉमिक्स के साथ स्पोर्ट्स मैनेजमेंट अच्छा ऑप्शन साबित हो सकता है।

कौन-कौन से कोर्स
भारत के कई संस्थानों ने स्पोर्ट्स मैनेजमेंट में कोर्स शुरू किया है। इसका मकसद फील्ड से जुड़े विभिन्न पहलुओं में खिलाड़ियों को प्रशिक्षित करना है। निम्नलिखित तीन कोर्स इस फील्ड में मुहैया कराए जाते हैं...
स्पोर्ट्स मैनेजमेंट में सर्टिफिकेट कोर्स
स्पोर्ट्स मैनेजमेंट में पोस्ट ग्रैजुएट डिप्लोमा (पत्राचार/डिस्टेंस एजुकेशन)
स्पोर्ट्स मैनेजमेंट में पोस्ट ग्रैजुएट डिप्लोमा

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एग्जाम: तैयारी पर दें ध्यान, सफलता कदम चूमेगी

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बोर्ड के रिजल्ट आउट होने का सिलसिला जारी है और इसके साथ भविष्य में आपका सामना नई चुनौतियों से भी होने वाला है। इसके लिए आपको कमर कस लेनी चाहिए। इसमें कोई दो राय नहीं है कि सफलता का स्वाद मीठा होता है, लेकिन इस स्वाद का सिलसिला यूं ही चलता रहे, तो इसके लिए जरूरी है कि आप अभी से ही विकल्पों की पड़ताल करें।

बोर्ड का रिजल्ट हाई टेंशन देने वाला पल होता है। इसलिए जरूरी है कि आप रिजल्ट के पहले और बाद कूल रहें। मनोविश्लेषकों की सलाह है कि स्टूडेंट्स जितने कूल रहेंगे,आगे की रणनीति उतनी ही बेहतर बना सकेंगे। यह याद रखने की जरूरत है कि यहां से सफर की शुरुआत होनी है। आप ऐसे मोड़ पर हैं, जब आप अपने फैसले से भविष्य को सही दिशा दे सकते हैं।

परीक्षा की यादें अनमोल होती है,बिल्कुल सफलता की तरह। स्कूल और कॉलेज का सफर,कोचिंग क्लासेस की भागदौड़ और भी काफी कुछ इससे जुड़ी होती हैं। इस बीच आपको अपने शौक भी पूरे करने होते हैं। एग्जाम के बाद अपनी याद को साझा करते हुए विवेक रस्तोगी कहते हैं कि देर रात तक पढ़ाई करना और फिर अगली सुबह उसी उत्साह के साथ सीखने को तैयार रहना ही उनकी जीत की कुंजी है। वह कहते हैं कि आगे भी वे इस सफर को जारी रखते हुए मनचाहे लक्ष्य को हासिल करना चाहते हैं। वह बताते हैं कि एग्जाम के बाद से अब तक उन्होंने स्टडी की आदत नहीं छोड़ी है। वह कहते हैं कि एक बार सिलसिला छूटने पर गाड़ी को ट्रैक पर लाना एक मुश्किल भरा काम होता है और जब चीजें आदत में शामिल होती है, तो लक्ष्य ज्यादा दूर नहीं रह जाता है।

इसमें कोई दो राय नहीं है कि संतुलन बनाए रखना एक बड़ी बात है। एक और स्टूडेंट दीक्षा भट्ट अपने अनुभव को शेयर करते हुए कहती हैं कि बोर्ड की परीक्षा अपने आपमें एक चुनौती है और इस दौरान उन्होंने अपने पैरंट्स के अनुभवों का लाभ उठाया है। वह कहती हैं कि उन्होंने घर पर रेगुलर स्टडी की, साथ में कोचिंग क्लास का भी लाभ उठाया। थोड़ी देर मनचाहा गेम भी जारी रहा। इसके अलावा स्टोरी बुक और आईपैड के संग तीन किलोमीटर की जॉगिंग ने हेल्थ को सही रखने में मदद की।

एग्जाम की तैयारी के क्रम में कई फंडे अपनाए जाते हैं। आपने भी अपनाया है । इसमें संतुलन और टाइम मैनेजमेंट की अहम भूमिका होती है। आगे के सफर में भी इसका सामना होना है। अगर आप किसी एग्जाम का हिस्सा बनने जा रहे हैं, तो आपको इसका पूरा ध्यान रखना होता है। तब जाकर सफलता हासिल होती है। एक स्कूल की प्रिंसिपल मोनिका विश्वास कहती हैं कि रिजल्ट पर खुश होना अच्छी बात है, लेकिन आगे लक्ष्य पर हर स्टूडेंट्स की नजर होनी चाहिए। वह कहती हैं कि जब बच्चे हमारे पास भविष्य को लेकर सवाल लेकर आते हैं, तो मैं उन्हें अपने दिल की बात सुनने और सही फैसला लेने की सलाह देती हैं। चीजें हर बार आपके अनुसार नहीं होती हैं, इसलिए हम उन्हें बेस्ट करने और हर स्थिति का सामना करने की सीख देते हैं।

आईसीएसई बोर्ड के एग्जाम के बाद अपने अनुभव शेयर करती हुईं स्टूडेंट प्रियदर्शनी मित्र कहती हैं कि एग्जाम में स्ट्रेस तो सभी को होता है, किसी को ज्यादा तो किसी को कम। इसलिए यह उनके लिए एक चुनौती रही और उन्होंने इसपर जीत हासिल की और काफी कुछ सीखा भी। वह कहती हैं कि बोर्ड एग्जाम के तनाव से उबरने के लिए उन्होंने संगीत का सहारा लिया। संगीत में उनकी रुचि है और इसमें अपना करियर बनाना चाहती हैं। इसलिए आगे विकल्प के तौर पर संगीत की शिक्षा हासिल करने पर ज्यादा ध्यान देने वाली है। वह कहती हैं कि प्रारंभ में हर चीज की नॉलेज जरूरी है, इसलिए उन्होंने साइंस स्ट्रीम को चुना। वह कहती हैं कि अगर लगन है, तो हर एक सब्जेक्ट में बेहतर करके दिखाया जा सकता है। संगीत मेरे लिए अंतहीन ऊर्जा है और मैं इस ऊर्जा को और भी विस्तार देना चाहती हूं।

आपके भीतर ऊर्जा है और कुछ कर गुजरने की तमन्ना है, तो आपको सही का चुनाव करना आना चाहिए। जब आप शुसरू से ही अपने लक्ष्य के प्रति ईमानदारी दिखाते हैं, तो सफलता के चरम पर पहुंच पाते हैं। वहीं, 12 वीं का एग्जाम दे चुके और रिजल्ट का इंतजार कर रहे श्लोक सिंह कहते हैं कि उनकी रुचि फोटोग्राफी में है और वह इस दिशा में करियर डिवेलप करना चाहते हैं। उन्होंने अभी से ही पता कर लिया है कि इसकी स्टडी कहां होती है और एड्मिशन के क्या प्रॉसेस हैं। आप जिस फील्ड में जाना चाहते हैं, जाएं, लेकिन यह बाद याद रखें कि वहां भी बेस्ट देने से ही बात बनेगी। तैयारी आपकी पक्की होगी, तो सफलता का ग्राफ भी बड़ा होगा।

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घटिया अप्रेजल से हैं परेशान? आपके लिए हैं ये समाधान

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अप्रेजल का सीजन चल रहा है। हर एंप्लॉयी अपने लिए अच्छी उम्मीद करता है। लेकिन हर किसी को बढ़िया अप्रेजल नहीं मिलता है। कुछ ऐसे एंप्लॉयी भी होते हैं जिनको बहुत घटिया इन्क्रिमेंट मिलता है। अगर आप भी वैसे एंप्लॉयी में शामिल हैं तो जानिए इस स्थिति से आप कैसे निपट सकते हैं...

नौकरी छोड़ना विकल्प नहीं
सही इन्क्रिमेंट नहीं मिलने पर जॉब छोड़ने का फैसला सही नहीं होता है। आपके बारे में संदेश गलत जाता है। बेहतर यह होगा कि अपनी कमजोरी को दूर करें और नई स्किल सीखें। इससे मार्केट में भी आपकी वैल्यू बढ़ेगी और अपने ऑर्गनाइजेशन में भी।

बॉस से बात करें
अपने मन में अफसोस करने या बुरा-भला सोचने से बेहतर है कि अपने रिपोर्टिंग मैनेजर से बात करें। उनसे बुरे अप्रेजल का कारण पूछें। उनसे अपनी कमजोरी और उसको सुधारने का तरीका पूछें। पिछले साल के टारगेट को देखें और पता लगाएं कि आप क्या चूक कर गएं।

अपने परफॉर्मेंस की बार-बार समीक्षा करें
सप्ताह या पंद्रह दिन में अपना असेसमेंट करें। हर महीने अपने बॉस से इस असेस्मेंट की समीक्षा करें। इससे आपको पता चल जाएगा कि कमी कहां रह रही है। रिपोर्टिंग मैनेजर के साथ पहले असेस्मेंट हो जाने से आपको तेजी से डैमेज कंट्रोल में मदद मिल जाएगी। यह आपके लिए भी सही रहेगा और आपकी कंपनी के लिए भी।

दलीलें न दें
गलत काम के लिए बहाना न बनाएं और उसका बचाव न करें। अगर आपने गलती की है तो उसे स्वीकारें। किसी से अपनी कमजोरी सुनना मुश्किल है लेकिन इससे आपको मदद ही मिलती है। इससे आपको अपनी कमियां पता चल जाती हैं। दूसरे पर इल्जाम लगाने से दीर्घावधि में आपका खुद का नुकसान होता है।

साल के आखिरी समय में पर ही फोकस न करें
कुछ एंप्लॉयी ऐसे होते हैं जो साल भर अपने काम पर ध्यान नहीं देते हैं। वे अंत के 4-6 हफ्ते में ज्यादा फोकस करते हैं। लेकिन इससे कोई मदद नहीं मिलती है। यह जरूरी है कि साल भर की स्ट्रैटिजी बनाएं और उस पर अमल करें।

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State Bank Of India: प्रिलिमनरी परीक्षा की तैयारी में काम आएंगे ये टिप्स

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State Bank Of India में 8904 क्लर्क पदों के लिए प्रिलिमनरी परीक्षा का आयोजन जून 2019 और मुख्य परीक्षा का आयोजन 10 अगस्त 2019 को किया जाएगा। अगर आपने इसके लिए आवेदन किया है तो प्रिलिमनरी परीक्षा की तैयारी को बेहतर कैसे बना सकते हैं। इसके बारे में आपके लिए कुछ टिप्स हैं।

इन टिप्स को ध्यान में रखकर करें तैयारी

निरंतर अभ्यास- अगर आप किसी काम को लेकर खुद में कमजोरी में महसूस करते हैं तो इसको सही करने का सबसे आसान तरीका है कि आप उस काम का निरंतर अभ्यास करें। इस बात को आप अपनी परीक्षा के लिए भी अप्लाई कर सकते हैं। इससे आपकी स्पीड भी बढ़ेगी।

समय का ध्यान- किसी भी काम में समय का बहुत महत्व होता है। अगर आप परीक्षा के लिए तैयारी कर रहे हैं तो समय प्रबंधन बहुत जरूरी है। आपको देखना होगा कि परीक्षा में किस प्रश्न को कितना समय देना है। इससे आपका समय बर्बाद नहीं होता है।

स्पीड- किसी भी परीक्षा में स्पीड का होना बहुत जरूरी होता है, इसके साथ ही सटीकता का ध्यान देना होता है। ऐसे में हमेशा में उन प्रश्नों को पहले करना चाहिए, जिसके उत्तरों के बारे में आप बिल्कुल सही हों। इससे निगेटिव मार्किंग से भी बच सकोगे।

ऑनलाइन प्रैक्टिस- अब तो अधिकतर परीक्षाओं का आयोजन ऑनलाइन होता है। इससे लिए जरूरी हो जाता है कि आप अपने तैयारी को जांचने के लिए ऑनलाइन प्रैक्टिस करते रहना चाहिए। ऐसा करने से आपकी ऑनलाइन प्रैक्टिस तो होगी ही, साथ में परीक्षा की अच्छे से तैयारी हो जाएगी।

खुद को जाचें- परीक्षा की तैयारी कैसी चल रही है, इसलिए समय-समय पर खुद का विश्लेषण करते रहें। इससे इस बात का पता चलता रहेगा कि आपकी तैयारी अभी कितनी बाकी है और कहां पर आपको सुधार की जरूरत है।

संदेह को दूर करें- परीक्षा की तैयारी के दौरान किसी भी प्रकार का संदेह होने पर उसे तुंरत क्लियर करें। इसके लिए आप अपने किसी टीचर या किसी दोस्त की मदद ले सकते हैं। इससे आपका संदेह दूर हो जाएगा और परीक्षा की तैयारी बेहतर ढंग से कर सकते हैं।

खुद पर विश्वास करना- किसी काम को करने के लिए खुद पर विश्वास करना आपके काम को सफल बनाने में बहुत योगदान देता है। इसलिए परीक्षा में बैठने से पहले खुद पर विश्वास को खूब मजबूत करें। इसके अलावा परीक्षा से संबंधित सभी जानकारियों को स्पष्ट कर लें।

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CLAT 2019: कुछ ही दिन रह गए हैं, तैयारी में इन बातों पर दें ध्यान

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देश में कानून के 21 राष्ट्रीय विद्यालयों में पोस्टग्रैजुएट डिग्री प्रोग्रामों के लिए 26 मई को कॉमन लॉ ऐडमिशन टेस्ट (CLAT) का आयोजन होगा। पेपर पैटर्न में कोई बदलाव नहीं हुआ है। पेपर को मात्र 13 दिन रह गए हैं। आइए आपको आखिरी समय में तैयारी के कुछ टिप्स बताते हैं ताकि आप अच्छे नंबर हासिल कर सकें...

इंग्लिश
कॉम्प्रिहेंशन और ग्रैमर से संबंधित 40 सवाल इस सेक्शन में होते हैं। पिछले दो सालों के पेपरों के ट्रेंड को ध्यान में रखते हुए ग्रैमर, कहावतें, पर्यायवाची, शब्दार्थ आदि पर ध्यान दें।

गणित
यही वह सेक्शन है जिससे क्लैट के ज्यादातर अभ्यर्थी डरते हैं। यह गेम चेंजर भी है क्योंकि यह 20 मार्क्स कैरी करता है। आपको कोशिश करनी चाहिए कि 10 से 12 नवंबर इस सेक्शन से मिल जाएं। सारे सवाल बुनियादी गणित पर आधारित होते हैं। उदाहरण के लिए साल 2017 में ज्यादातर सवाल अंकगणित से पूछे गए थे जबकि साल 2018 का पेपर संतुलित था जिसमें प्रतिशतता, अनुपात, टीडीएस, बीजगणित, संख्या पद्धति आदि से बराबर सवाल पूछे गए थे।

लॉजिकल रीजनिंग
इस सेक्शन में 40 सवाल होते हैं। पिछले सालों के ट्रेंड को देखें तो ज्यादातर जोर ऐनालिटिकल रीजनिंग पर होता है। कुछ ही सवाल वर्बल रीजनिंग से होते हैं।

जनरल नॉलेज
वैसे इस सेक्शन में ज्यादातर सवाल अब तक करंट अफेयर्स से पूछे गए हैं। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि आप और चीजों को छोड़ दें। राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय महत्व की खबरों, पुरस्कार, खेल कार्यक्रमों, किताब और उनके लेखकों के बारे में जानकारी जुटाएं।

लीगल ऐप्टिट्यूड
इस सेक्शन में कानूनी तार्किकता और ज्ञान से संबंधित सवाल होते हैं। लीगल रीजनिंग के सवालों का जवाब आपको प्रिंसिपल और दिए गए फैक्ट्स के आधार पर देना होगा। आपको सुप्रीम कोर्ट द्वारा हाल के दिनों में दिए गए कुछ ऐतिहासिक फैसलों पर भी कमान होनी चाहिए। इससे भी सवाल पूछे जा सकते हैं।

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गर्मी की छुट्टी में इंटर्नशिप करके संवारे भविष्य

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शिप्रा सिंह, नई दिल्ली
2016 की गर्मी की छुट्टियों के दौरान बेंगलुरु में लॉ की पढ़ाई कर रही फलिता अशोक ने अपनी पब्लिक स्पीकिंग स्किल के जरिए पैसे कमाने का फैसला किया था। इसके लिए उन्होंने एक इवेंट मैनेजमेंट कंपनी के साथ पेड इंटर्नशिप की थी। आज यह स्किल उनके लिए पार्ट टाइम जॉब में बदल गई है।

फलिता ने बताया, 'साइड जॉब से मेरे रोजाना के खर्चे पूरे हो पाते हैं। एक स्टूडेंट होते हुए ऐसा कर पाने से मुझे खुशी होती है।' उनकी तरह आज कई स्टूडेंट्स पॉकेट मनी के लिए पेड इंटर्नशिप और पार्ट टाइम जॉब का सहारा ले रहे हैं। इंटर्नशाला के फाउंडर और सीईओ सर्वेश अग्रवाल ने बताया, 'ज्यादा स्टाइपेंड वाली इंटर्नशिप के लिए अधिक ऐप्लिकेशंस आती हैं। इससे यह पता चलता है कि इंटर्नशिप ढूंढते वक्त स्टूडेंट्स के लिए स्टाइपेंड महत्व रखता है।'

स्टाइपेंड और गोल का महत्व
बिना वेतन के इंटर्नशिप का चलन लगभग खत्म हो चुका है। कंपनियां इंटर्न्स के नए नजरिये को बिजनेस के लिए महत्वपूर्ण समझती हैं और इसके लिए उन्हें ठीक-ठाक पैसे देती हैं। बॉस्टन कंसल्टिंग ग्रुप की रिक्रूटमेंट चेयर के पार्टनर और डायरेक्टर सुमित गुप्ता ने बताया, 'एक बाहरी शख्स के अलग नजरिये और उससे प्रॉब्लम सॉल्व करने में हमें काफी मदद मिलती है।'

एक्सपर्ट्स का कहना है कि स्टूडेंट्स को अनपेड इंटर्नशिप से बचना चाहिए, जब तक कि वह किसी नॉन-प्रॉफिट ऑर्गेनाइजेशन के साथ न हो। हालांकि सिर्फ अच्छे स्टाइपेंड को ही देखकर इंटर्नशिप करने का फैसला नहीं करना चाहिए। अग्रवाल ने बताया, 'कई बार स्टूडेंट्स कम स्टाइपेंड वाली इंटर्नशिप को भी चुनते हैं, अगर वह उनके करियर गोल से मैच करती हो।'

एमए कर रही अनसुइया बोरा अंडमान में एक प्रफेसर के साथ बिना किसी स्टाइपेंड के बतौर रिसर्च असोसिएट का काम करने वाली हैं। अनसुइया का कहना है, 'इससे मैं डेटा कलेक्शन के बारे में सीख पाऊंगी। मुझे बिना सैलरी के काम करने में कोई दिक्कत नहीं है क्योंकि मेरे रहने और आने-जाने की व्यवस्था कर दी जाएगी।'

बेंगलुरु की दीप्ता पाई ने एक बड़ी ऐनालिटिक्स कंपनी की कम वेतन वाली इंटर्नशिप के लिए हामी भरी क्योंकि उन्हें पसंद का काम करने का मौका मिल रहा था। इसका फायदा यह हुआ की उन्हें बाद में उस कंपनी से प्री-प्लेसमेंट ऑफर मिल गया।

पसंद-नापसंद का लगाएं अंदाजा
कई बार स्टूडेंट्स अपने कोर्स से जुड़ी चीज में इंटर्नशिप करना चाहते हैं। हालांकि यह पैटर्न बदल रहा है। स्टूडेंट्स आज इंटर्निशिप को अलग-अलग करियर फील्ड आजमाने के मौके के तौर पर देख रहे हैं।

क्वेजएक्स डॉट कॉम के संस्थापक और सीईओ देवाशीष चक्रवर्ती का कहना है, 'इंटर्नशिप से स्टूडेंट्स को यह समझने में मदद मिलती है कि इंडस्ट्री और वह काम उन्हें अपील कर रहा है या नहीं।'

करियर को दें दिशा
पैसे के अलावा इंडस्ट्री का एक्सपोजर और स्किल्स का विस्तार करना भी प्रोफेशनल ग्रोथ के लिए जरूरी है। दीप्ता ने बताया, 'कॉलेज के डमी प्रोजेक्ट्स के बजाय मुझे चैलेंजिंग प्रोजेक्ट पर काम करने का मौका मिला और मैंने कोडिंग की अच्छी प्रैक्टिस की। यह शानदार अनुभव था।' इन वजहों से स्टूडेंट्स अब इंटर्नशिप को गर्मी की छुट्टी काटने के नजरिये से नहीं देखते। कई मास्टर प्रोग्राम्स में इंटर्नशिप को करिकुलम का हिस्सा बना दिया गया है। इंटर्नशिप करने वाले स्टूडेंट्स को अच्छी नौकरी मिलने या अच्छे कॉलेज में आगे की पढ़ाई के लिए दाखिला लेने में मदद मिलती है।

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SBI PO: जून में है प्रीलिम्स, जानें एग्जाम पैटर्न

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नई दिल्ली
भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) 8, 9, 15 और 16 जून को प्रोबेशनरी ऑफिसर (पीओ) के चयन के लिए प्रीलिमिनरी परीक्षा का आयोजन करेगा। भर्ती का अभियान तीन चरणों पर आधारित है। दो चरण में ऑनलाइन परीक्षा होगी और आखिरी चरण इंटरव्यू का होगा। इसके माध्यम से पीओ के 2000 पदों को भरा जाएगा। एसबीआई पीओ प्रीलिम्स के लिए ऐडमिट कार्ड ऑनलाइन जारी कर दिया गया है। कैंडिडेट्स बैंक की ऑफिशल वेबसाइट से इसे डाउनलोड कर सकते हैं।

पैटर्न
प्रीलिमिनरी परीक्षा में तीन सेक्शन होंगे। वे तीन सेक्शन इंग्लिश लैंग्वेज, क्वन्टिटेटिव ऐप्टिट्यूड और रीजनिंग अबिलिटी हैं। सवाल कुल 100 अंकों के होंगे। मुख्य परीक्षा में बैठने के लिए इसे पास करना जरूरी है। कुल वेकंसी का 10 गुना कैंडिडेट्स को मुख्य परीक्षा के लिए शॉर्टलिस्ट किया जाएगा। क्वन्टिटेटिव ऐप्टिट्यूड और रीजनिंग अबिलिटी से 35-35 सवाल पूछे जाएंगे जबकि इंग्लिश लैंग्वेज से 30 सवाल। छात्रों को कुल 1 घंटा मिलेगा जिनमें से 20-20 मिनट प्रत्येक सेक्शन के लिए होगा। मुख्य परीक्षा की मेरिट लिस्ट तैयार करने में प्रीलिम्स के अलग-अलग सेक्शनों के लिए कोई कटऑफ नहीं होगा।

पीओ प्रीलिम्स के लिए एसबीआई ने परीक्षा पूर्व प्रशिक्षण शुरू कर दिया है। आवेदन प्रक्रिया के दौरान एससी, एसटी और धार्मिक अल्पसंख्यक समुदाय के जिन छात्रों ने प्रशिक्षण को चुना था वे प्रशिक्षण के पात्र हैं। बैंक के पोर्टल पर ऐडमिट कार्ड ऑनलाइन उपलब्ध हैं। बैंक की ओर से जारी आधिकारिक नोटिफिकेशन में कहा गया है, 'परीक्षा पूर्व प्रशिक्षण चुनने वाले उम्मीदवार बैंक की वेबसाइट से प्रशिक्षण के लिए अपना कॉल लेटर डाउनलोड कर सकते हैं। इसके लिए उनको अपनी पंजीकरण संख्या और पासवर्ड/जन्मतिथि डालनी होगी। कॉल लेटर की हार्ड कॉपी नहीं भेजी जाएगी।'

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