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मीडिया में करियर के हैं ये सुनहरे विकल्प, जानें डीटेल में

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प्रफेशन में मीडिया का प्रेफशन काफी लोकप्रिय रहा है। मीडिया एक आकर्षक करियर है। इसमें पत्रकारिता, विज्ञापन, जनसंपर्क और फोटोग्राफी को आप शामिल कर सकते हैं। आइए आज आपको मीडिया में उपलब्ध करियर के विभिन्न विकल्पों के बारे में बताते हैं...

पत्रकारिता
समाज में बदलाव लाने के इच्छुक लोगों के लिए पत्रकारिता सबसे अच्छा विकल्प है। आप न सिर्फ अपने विचार को यहां अच्छे ढंग से रख सकते हैं बल्कि आप देश-दुनिया की समस्या को भी उजागर कर सकते हैं। इस तरह से आप राष्ट्र निर्माण और राष्ट्र विकास में योगदान दे सकते हैं। सूचना जगत में क्रांति के साथ अब पत्रकारिता के कई माध्यम हो गए हैं। प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक और डिजिटल पत्रकारिता के ऑप्शन आपके पास हैं। वैसे पत्रकारिता के लिए आप ग्रैजुएट या पोस्ट ग्रैजुएट लेवल पर कोई कोर्स कर सकते हैं। किसी मान्यता प्राप्त शैक्षिक बोर्ड से 12वीं क्लास पास करने के बाद आप 3 साल के बीजेएमसी (बैचलर ऑफ जर्नलिजम ऐंड मास कम्यूनिकेशन-BJMC) कोर्स में दाखिला ले सकते हैं।

पत्रकारिता में बैचलर डिग्री के बाद आप पत्रकारिता या मास कम्यूनिकेशन में मास्टर डिग्री भी ले सकते हैं।

पत्रकारिता और मास कम्यूनिकेशन के मैदान में आपको भाषा पर पकड़ होनी चाहिए। इसके अलावा आत्मविश्वास, उत्साह, धैर्य और संयम होना जरूरी है। सच और झूठ के बीच फर्क करने की योग्यता, दी गई समयसीमा में काम करना, टीम के साथ मिलकर काम करने में सहज महसूस करना, राजनीति, संस्कृतिक, धर्म, सामाजिक और समसामयिकी मामलों की गहरी जानकारी होनी जरूरी है।

विज्ञापन
मीडिया फील्ड में करियर का एक और आकर्षक विकल्प ऐडवर्टाइजिंग है। सोशल मीडिया को समय के साथ मजबूती से उभरने की वजह से ज्यादातर कंपनियों और ब्रैंड ने ऑनलाइन अपनी रेप्युटेशन बढ़ाने पर काम शुरू कर दिया है। इसके लिए उनको ऐडवर्टाइजमेंट प्रफेशनल दरकार होते हैं। साथ ही ई-कॉमर्स भी बहुत तेजी से बढ़ रहा है। मोबाइल पर शॉपिंग लोगों की पसंद बनता जा रहा है। ऐसे में ऐडवर्टाइजिंग प्रफेशनल के लिए बड़ा मार्केट तैयार हो रहा है।

किसी ब्रैंड की ऐडवर्टाइजिंग के लिए अब ऐसे प्रफेशनल्स की जरूरत होती है जिसके पास नए आइडिया हों और संचार का बेहतर तरीका। इसमें आपको क्लायंट की मांग के मुताबिक काम करना होगा।

पब्लिक रिलेशंस
पीआर एग्जिक्यूटिव प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक और ऑनलाइन मीडिया के माध्यम से किसी बिजनस हाउस, संस्थान, व्यक्ति और सरकार के कैंपेनर के तौर पर काम करते हैं। वे किसी ब्रैंड को तैयार करते हैं और उनके प्रचार-प्रसार में अहम भूमिका निभाते हैं। वे अपने क्लायंट को पब्लिक के साथ अच्छा संबंध बनाने और सकारात्मक संचार स्थापित करने में मदद करते हैं। एक पब्लिक रिलेशंस अफसर के तौर पर आपको पूरी तौर से इस बात पर जोर देना होगा कि लोगों के पास सही समय में अपने क्लायंट से जुड़ी सही जानकारी पहुंचे।

पीआर के तौर पर सेवा देने के लिए आपको क्रिएटिव, भरोसेमंद, टेक सेवी होना जरूरी है और आपके पास मैनेजरों वाला कौशल होना चाहिए। इसके अलावा लिखने और बोलने का कौशल, भाषा के ऊपर मजबूत पकड़ और अच्छे आयोजन कौशल भी सफलता के लिए अहम हैं।

फोटोग्राफी
एक पेशेवर फोटोग्राफर न सिर्फ फोटोग्राफ क्लिक करता बल्कि आर्टिस्ट/प्रॉडक्ट्स को मैनेज भी करता है, लाइटें सेट करता है, टाइम मैनेज करता है और क्वालिटी इमेज तैयार करता है। फोटोग्राफर के तौर पर आप फूड फोटोग्राफी और फोटोजर्नलिजम से लेकर वाइल्डलाइफ, कार, इंटीरियर और फैशन फोटोग्राफी कर सकते हैं।

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पब्लिक रिलेशन में कैसे बनाएं करियर, जानें सबकुछ

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अगर आप सोचते हैं कि अपनी बात लोगों से मनवा सकते हैं, रोचक ढंग से बातें कर सकते हैं और दबाव झेल सकते हैं तो पब्लिक रिलेशन (पीआर) में करियर आपके लिए बेहतर रहेगा। पीआर प्रतिनिधि के तौर पर आपकी सिर्फ एक भूमिका रहेगी। आपको बिजनस हाउसों, संस्थानों, लोगों और सरकारी संस्थानों के लिए अभियान चलाना होगा ताकि उनका लोगों के साथ अच्छा संबंध बन सके और वह संबंध बरकरार भी रहे। पीआर एग्जिक्युटिव की भूमिका में प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक और ऑनलाइन मीडिया का इस्तेमाल करके किसी प्रॉडक्ट, कंपनी या किसी व्यक्ति का प्रमोशन करना होता है और इस तरह से एक ब्रैंड तैयार करना और उसका विकास करना होता है।

जरूरी कौशल
पीआर प्रतिनिधि के तौर पर आपके पास सूचनाओं का भंडार होना चाहिए। इसके अलावा रचनात्मकता, विश्वसनीयता, तकनीक पर पकड़, अच्छा प्रबंधकीय कौशल अन्य गुण हैं जो आपके अंदर होने चाहिए। सिर्फ यही नहीं बल्कि लिखित और मौखिक संचार कौशल, भाषाओं के ऊपर मजबूत कमान, लचीलता और आयोजनों का अच्छा कौशल भी इस फील्ड में काफी जरूरी है।

पात्रता
पब्लिक रिलेशन में करियर बनाने के लिए आपका किसी भी स्ट्रीम में ग्रैजुएट होना जरूरी है। अगर मास मीडिया में ग्रैजुएशन हो तो ज्यादा प्राथमिकता दी जाएगी। आप पब्लिक रिलेशंस में एक साल का पोस्ट ग्रैजुएट डिप्लोमा कर सकते हैं। या फिर कम्यूनिकेशन और जर्नलिजम में दो साल का मास्टर डिग्री कोर्स कर सकते हैं। दूसरे साल में आप मास्टर्स डिग्री में पीआर में स्पेशलाइजेशन कर सकते हैं।

पीआर में कोर्स के दौरान मुख्य रूप से लाइव प्रॉजेक्ट असेसमेंट और इंटर्नशिप पर जोर दिया जाएगा जिससे आपको प्रत्यक्ष अनुभव मिलेगा।

करियर की संभावनाएं
बिजनस के मौके बढ़ने के साथ पीआर एक्सपर्ट्स की मांग बढ़ रही है। फ्रेशर होने पर आप किसी पीआर एजेंसी से एग्जिक्युटिव के तौर पर अपने करियर की शुरुआत कर सकते हैं। एंट्री लेवल पर आपको अपनी शैक्षिक योग्यताओं के भरोसे रहना होगा। अनुभव के साथ आपकी सैलरी बढ़ती जाएगी।

फ्रेशर के तौर पर आपको अकाउंट्स एग्जिक्युटिव, कम्यूनिकेशन एग्जिक्युटिव और इवेंट मैनेजर्स आदि के तौर पर नियुक्त किया जाएगा। फ्रेशर के तौर पर आपको बतौर इंटर्न भी हायर किया जा सकता है और 8,000 से 10,000 का शुरुआती पैकेज मिलेगा। बढ़ते अनुभव के साथ वेतन भी बढ़कर 50 से 80 हजार हर महीने हो जाएगा।

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माइक्रोबायॉलजिस्ट बनें, करियर में खूब मौके

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इस फील्ड में फिजियॉलजी ऑफ माइक्रोब्स, माइक्रोब्स की जैविक संरचना, अग्रीकल्चर माइक्रोबायॉलजी, फूड माइक्रोबायॉलजी, बायोफर्टिलाइजर में माइक्रोब्स, कीटनाशक, पर्यावरण, मानवीय बीमारियों आदि में सूक्ष्म जीवों की स्टडी की जाती है।

मिनिमम क्वॉलिफिकेशन
माइक्रोबायॉलजिस्ट बनने के लिए माइक्रोबायॉलजी या बायॉटेक्नॉलजी में बैचलर डिग्री जरूरी है। माइक्रोबायॉलजी में रिसर्च के क्षेत्र में काफी जॉब्स के अवसर हैं। रिसर्च के लिए पीएचडी जरूरी।

माइक्रोबायॉलजी में बैचलर कोर्स
बैचलर ऑफ साइंस इन माइक्रोबायॉलजी
बैचलर ऑफ साइंस इन ऐप्लाइड माइक्रोबायॉलजी
बैचलर ऑफ साइंस इन इंडस्ट्रियल माइक्रोबायॉलजी
बैचलर ऑफ साइंस इन फूड टेक्नॉलजी
बैचलर ऑफ साइंस इन क्लिनिकल माइक्रोबायॉलजी

माइक्रोबायॉलजी में मास्टर कोर्स
मास्टर ऑफ साइंस इन माइक्रोबायॉलजी
मास्टर ऑफ साइंस इन ऐप्लाइड माइक्रोबायॉलजी
मास्टर ऑफ साइंस इन मेडिकल माइक्रोबायॉलजी
मास्टर ऑफ साइंस इन माइक्रोबियल जेनेटिक्स ऐंड बायॉइन्फर्मेटिक्स

स्पेशलाइजेशन
ऐग्रिकल्चरल माइक्रोबायॉलजी
इंडस्ट्रियल माइक्रोबायॉलजी
इवोल्यूशनरी माइक्रोबायॉलजी
नैनो माइक्रोबायॉलजी
सेलुलर माइक्रोबायॉलजी
सॉइल माइक्रोबायॉलजी
वेटरिनरी माइक्रोबायॉलजी
जेनेरेशन माइक्रोबायॉलजी
माइक्रोबियल
वॉटर माइक्रोबायॉलजी
फार्मासूटिकल माइक्रोबायॉलजी
माइक्रोबियल जेनेटिक्स
इंवायरनमेंटल माइक्रोबायॉलजी

जॉब प्रोफाइल्स
रिसर्च असिस्टेंट
फूड, इंडस्ट्रियल या इंवायरनमेंटल माइक्रोबायॉलजिस्ट
क्वॉलिटी अश्योरेंस टेक्नॉलजिस्ट्स
सेल्स या टेक्निकल रेप्रजेंटेटिव
क्लिनिकल और वेटरिनरी माइक्रोबायॉलजिस्ट
मेडिकल टेक्नॉलजिस्ट्स
बायॉमेडिकल साइंटिस्ट
क्लिनिकल रिसर्च असोसिएट
माइक्रोबायॉलजिस्ट
फार्माकॉलजिस्ट
फूड टेक्नॉलजिस्ट्स
साइंटिफिक लैबरेटरी टेक्निशन
फिजिशन असोसिएट
रिसर्च साइंटिस्ट (लाइफ साइंसेज)

किन क्षेत्रों में मिलेगी जॉब
फार्मासूटिकल इंडस्ट्रीज
यूनिवर्सिटी
लैब
निजी अस्पताल
अनुसंधान संगठन
पर्यावरणीय एजेंसियां
खाद्य उद्योग
पेय उद्योग
रसायन उद्योग
कृषि विभाग

टॉप रिक्रूटर
मैसकट इंटरनैशनल
साइरन टेक्नॉलजी प्राइवेट लिमिटेड
अल्फा फार्मा हेल्थकेयर इंडिया प्राइवेट लिमिटेड
क्रॉटर हेल्थकेयर लिमिटेड
इंडियन होटल्स कंपनी लिमिटेड
लक्ष्मी लाइफ साइंसेज लिमिटेड

सैलरी
20 हजार रुपये प्रतिमाह से शुरुआत

यहां से करें कोर्स
मनीपाल अकैडमी ऑफ हायर एजुकेशन, कर्नाटक - www.manipal.edu
अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी, यूपी- www.amu.ac.in
दिल्ली यूनिवर्सिटी, नई दिल्ली - www.du.ac.in

ऐडमिशन लेने का वक्त: मई में शुरू होती है प्रक्रिय

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NEET नहीं हुआ क्लियर? आपके लिए हैं ये कोर्स

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मेडिकल और डेंटल कोर्सों में भारत और विदेश में पढ़ाई करने के लिए नैशनल एलिजिबिलिटी कम एंट्रेंस टेस्ट (NEET-नीट) को क्लियर करना जरूरी है। नीट 2019 का रिजल्ट भी आ गया है। कुछ छात्रों ने नीट क्लियर किया है तो वहीं बड़ी संख्या में ऐसे भी छात्र हैं जो नीट नहीं क्लियर कर पाए हैं। अगर आप भी उन छात्रों में शामिल हैं जो नीट नहीं क्लियर कर पाए हैं तो घबराएं नहीं। नीट नहीं क्लियर कर पाने का यह मतलब नहीं है कि आपके लिए आगे के सारे रास्ते बंद हो गए हैं। ऐसे कई कोर्स हैं जो आप अब भी कर सकते हैं। आइए आज आपको मेडिकल के उन कोर्सों के बारे में बताते हैं...

बैचलर्स ऑफ वेटरिनरी साइंसेज ऐंड एनिमल हस्बैंड्री
बीवीएससी कोर्सों में पशुचिकित्सा विज्ञान से संबंधित पहलुओं का अध्ययन किया जाता है जिनमें घरेलू और जंगली जानवरों की बीमारियों को समझना और सर्जरी शामिल हैं। इस कोर्स में बताया जाता है कि कैसे जानवरों की बीमारियों का पता लगाना और उपचार करना है। बीमारियों की रोकथाम और सही दवाइयों के बारे में बताया जाता है। यह कोर्स पांच सालों का है। अगर कोई छात्र एनिमल हस्बैंड्री नहीं रखना चाहता है तो उसके लिए बीवीएससी तीन सालों का कोर्स होता है।

बैचलर्स ऑफ फार्मेसी (बी.फार्मा)
इस फील्ड में दो सालों का डिप्लोमा और चार सालों का डिग्री कोर्स उपलब्ध है। बी.फार्मा के छात्रों के लिए बहुत संभावनाएं हैं। वे सरकारी या निजी अस्पतालों में जॉब कर सकते हैं। वे अपना स्टोर भी खोल सकते हैं। वे सरकारी और निजी कंपनियों के लिए रिसर्च कर सकते हैं। ज्यादातर कॉलेज छात्रों को 12वीं क्लास में उनके मार्क्स के आधार पर दाखिला देते हैं।

बॉटनी
पौधे, उनकी संरचना, प्रक्रियाओं, वृद्धि आदि का इसमें अध्ययन किया जाता है। बॉटनी लेने वालों को पौधों पर रिसर्च करना होता है। वे पौधों की नई प्रजातियों की खोज करते हैं। पौधों की संरचना और उनकी विभिन्न प्रक्रियाओं से संबंधित रिसर्च करते हैं। बोटनी में डिग्री हो तो नैचरल रिसोर्सेज सेंटर, इंवायरनमेंटल कंसल्टेंसीज में जॉब कर सकते हैं। वे रिसर्चर, टीचर/प्रफेसर, टैक्सोनोमिस्ट, हॉर्टिकल्चरिस्ट, नर्सरी मैनेजर और इंवायरनमेंटल कंसल्टेंट के तौर पर काम कर सकते हैं।

जूलॉजी
इस कोर्स में जानवरों के बारे में अध्ययन किया जाता है। उनकी बनावट, जीवन प्रक्रियाओं, जेनेटिक्स, शारीरिक संरचना, वर्गीकरण आदि के बारे में अध्ययन किया जाता है। जूलॉजी में डिग्री होने पर रिसर्चर, एनिमल ब्रीडर, वाइल्डलाइफ रिहैबिलिटेटर, वाइल्डलाइफ बायॉलजिस्ट, जू क्युरेटर और कंजर्वेशनिस्ट के तौर पर काम कर सकते हैं। वे स्कूलों और कॉलेजों में टीचर/प्रफेसर की जॉब भी कर सकते हैं।

माइक्रोबायॉलजी
इसमें सूक्ष्मजीवों जैसे जीवाणु, विषाणु, कवक और उनके इंसान, जानवर, पौधे एवं अन्य जीवों से संबंध का अध्ययन किया जाता है। माइक्रोबायॉलजिस्ट अनुसंधान करते हैं और पता लगाते हैं कि अलग-अलग सूक्ष्मजीवों का हमारे जीवन पर क्या असर पड़ता है। इसमें कई सबफील्ड्स हैं जैसे वायरोलॉजी, बैक्टीरियॉलजी, पैरासिटॉलजी, माइकॉलजी आदि। माइक्रोबायॉलजी में डिग्री होने पर आप फार्मासूटिकल्स, हेल्थ सेक्टर, फूड इंडस्ट्रीज, ब्रेवरीज, डिस्टिलरीज, कृषि क्षेत्र में काम कर सकते हैं।

इनके अलावा भी आपके पास ऑप्शन हैं जैसे
इंवायरनमेंटल साइंस
जेनेटिक्स
बायॉइन्फर्मेटिक्स
फिजियॉलजी
मरीन बायॉलजी
बायॉटेक्नॉलजी
बायॉफिजिक्स
बायॉमेडिकल साइंस
फूड ऐंड ऐग्रिकल्चर

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आर्किटेक्चर में भी हैं करियर के खूब मौकें, जानें सारी बातें

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अगर आप अपने 'डॉक्टर-इंजिनियर' दोस्तों की भीड़ से हटकर कोई करियर चुनना चाहते हैं, तो आप आर्किटेक्चर का रुख कर सकते हैं। हालांकि यह एक ऐसा विषय है जिसमें आपको डिजाइनिंग की भी समझ होनी चाहिए और विज्ञान का भी ज्ञान होना चाहिए। बीते कुछ दशकों में भारत में आर्किटेक्चर के क्षेत्र का काफी विकास हुआ है। यही कारण है कि अब लोग इसमें महारत हासिल करने के लिए इसकी पढ़ाई भी कर रहे हैं। लोग अब पारंपरिक विषयों से हटकर प्रफेशनल कोर्स में भी डिग्री ले रहे हैं। कई लोग ग्रैजुएशन और पोस्ट-ग्रैजुएशन में आर्किटेक्चर को अपना विषय चुनते हैं। निर्माण उद्योग में उछाल आने वाले दशकों तक बरकरार रहने की संभावनाओं के मद्देनजर करियर का यह क्षेत्र काफी दिलचस्प भी है। बारहवीं में गणित, भौतिकी और रसायन विषयों की पढ़ाई के बाद आप आर्किटेक्चर में स्नातक की पढ़ाई कर सकते हैं। अगर स्कूली स्तर पर आपने इंजिनियरिंग ड्राइंग की पढ़ाई की हो तो आगे यह कोर्स काफी आसान हो जाता है।

इन बातों का रखना होता है ध्यान
आर्किटेक्ट को प्लानिंग के दौरान यह भी खास ध्यान रखना पड़ता है कि उसकी योजना में अग्निशमन नियमों, भवन निर्माण संबंधी कानूनों और अन्य आवश्यक बातों का उल्लंघन न हो।

आर्किटेक्ट को विशेषताओं, फ्लोरिंग, फिनिशिंग और निर्माण सामग्री की अनुमानित मात्रा तथा परियोजना की अनुमानित लागत का विवरण तैयार करना पड़ता है।

आर्किटेक्ट को इंजिनियरिंग के सिद्धांतों की समझ, निर्माण विधियों, सामग्री तथा पर्यावरण की तकनीकों के नवीनतम विकास संबंधी नियमों की जानकारी का होना भी आवश्यक है।

प्लानिंग का भी विकल्प और ढेर सारे मौके
पढ़ाई के लिए छात्र अपना सब्जेक्ट 'प्लानिंग' भी चुन सकते हैं। इसके बाद वे इंवाइरनमेंटल प्लानिंग, अर्बन ऐंड रीजनल प्लानिंग, हाउसिंग, ट्रांसपोर्टेशन प्लानिंग आदि में करियर बना सकते हैं। कंस्ट्रक्शन मैनेजमेंट और इंडस्ट्रियल डिजाइन में भी लोगों की मांग बढ़ रही है। विशेषज्ञों के अनुसार इसमें पोस्ट-ग्रैजुएशन कर लेना ही सही है। इससे आप न केवल ज्यादा स्पेशलाइज होंगे बल्कि अवसर भी आपको ज्यादा मिलेंगे।

बढ़ रही आर्किटेक्चर इंजिनियर की मांग
आज दुनिया में नए-नए डिजाइन की ऊंची-ऊंची बिल्डिंग बन रही हैं। इन्हें डिजाइन करने में आर्किटेक्ट की भूमिका काफी महत्वपूर्ण होती है। आने वाले समय में और भी ऊंची-ऊंची बिल्डिंग्स बनाई जाएंगी। इन सभी का डिजाइन एक आर्किटेक्चर इंजिनियर ही बना सकता है। इसलिए आर्किटेक्चर इंजिनियर की मांग कभी कम नहीं होने वाली।

प्रमुख संस्थान
स्कूल ऑफ प्लानिंग ऐंड आर्किटेक्चर, नई दिल्ली
आईआईटी खड़गपुर
आईआईटी रूड़की
सर जेजे कॉलेज ऑफ आर्किटेक्चर
एनआईटी, तिरुचिरापल्ली
(इनके अलावा और भी संस्थान हैं।)

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बनें मार्केट रिसर्चर, है जबरदस्त डिमांड

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वर्तमान समय में बिजनस की दुनिया में काफी बदलाव हुए हैं। अब मार्केट नई स्ट्रेटजी पर चलता है। उसे अच्छी प्लानिंग से काम को अंजाम देना होता है। यही कारण है कि बाजार को कस्टमर्स को समझना होता है और इसी क्रम में उन्हें ज्यादा टाइम देना होता है। इन्हीं मकसद को पूरा करने के लिए मार्केट रिसर्चर की जरूरत होती है। एक तरीके से वे मार्केट और कस्टमर्स के बीच की कड़ी होते हैं। उन्हें उपभोक्ताओं के ऑप्शन, टेस्ट और उनकी आवश्यकताओं पर कड़ी नजर रखनी पड़ती है। इस डेटा को कई प्रॉसेस के जरिए कंपनियां कलेक्ट करवाती हैं। इसके बाद वह फैसला करती हैं कि किस तरह के प्रॉडक्ट की लोगों के बीच डिमांड है और इसके लिए उन्हें कैसे पहल करनी होती है। इसलिए एक मार्केट रिसर्चर की जॉब दिलचस्प होती है। वैसे तो इस क्षेत्र में जॉब हासिल करने के लिए बैचलर की डिग्री की दरकार होती है, लेकिन सही मायने में आपकी गहरी पकड़ मार्केटिंग, इकोनॉमिक्स, साइकॉलजी, सोशियोलॉजी और स्टैटिस्टिक्स में होनी चाहिए। इस फील्ड को ऑप्ट करने से पहले आप अपने कम्युनिकेशन स्किल को बेहतर कर लें, क्योंकि इस स्किल की आपको बड़ी मात्रा में जरूरत पड़ने वाली है।

जैसे-जैसे दुनिया बदल रही है, डेटा का महत्व भी बढ़ता ही जा रहा है। बाजार को समझने के लिए डेटा की जरूरत पड़ती है। कंपनी जब किसी प्रॉडक्ट को लॉन्च करती है, तो डेटा के आधार किए गए रिसर्च के आधार पर कंपनी को फैसले लेने होते हैं। ऐसे में मार्केट रिसर्चर की भूमिका अहम हो जाती है। वह रिचर्स के लिए लोगों के बीच में जाता है और उनके पसंद और नापसंद को आधार बनाते हुए यह एक डेटा तैयार करता है, जिसके आधार पर यह निष्कर्ष निकाला जाता है कि प्रॉडक्ट का भविष्य क्या हो सकता है। कंपनी इसके माध्यम से टारगेट भी सेट करती है। इस अधार पर यह तय किया जाता है कि प्रॉडक्ट में मुख्य रूप से किसे टारगेट किया जाए। लोगों को प्रॉडक्ट के लिए लुभाने के लिए किस तरह के ऑफर दिए जाएं।

आप दिलचस्प तरीके से करियर को बिल्ड करना चाहते हैं और इसमें जबरदस्त ग्रोथ चाहते हैं, तो मार्केट रिसर्चर के रूप में करियर बनाने के लिए खुद को तैयार करें। डेटा में आपका मन रमता है, तो यह आपके लिए निश्चित रूप से एक बेहतरीन विकल्प हो सकता है।

यहां कर सकते हैं पढ़ाई

इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ मास कम्युनिकेशन, जेएनयू कैंपस, नई दिल्ली।

नैशनल इंस्टिट्यूट ऑफ सेल्स, नई दिल्ली।

सिंबायोसिस इंस्टीट्यूट ऑफ मीडिया ऐंड कम्युनिकेशन, पुणे।

यूनिवर्सिटी ऑफ लखनऊ, लखनऊ।

मार्केट रिसर्चर उपभोक्ता की पसंद, खरीदारी की आदत, बाजार में रिसर्च के आधार पर एक डेटा तैयार करते हैं। इससे गुजरते हुए उन्हें कई दौर से होकर गुजरना होता है। इसके बाद वे रिपोर्ट, ग्राफिक इलेस्ट्रेशन के माध्यम से अपने रिसर्च को समझाते हैं कि कंपनी का कोई फैसला उन्हें कितना फायदा पहुंचा सकता है।

काम का स्वरूप
कंपनी की संभावित बिक्री और बाजार से संबंधित सभी तरीके मार्केट रिसर्चर के जॉब प्रोफाइल का हिस्सा होते हैं। स्टैटिस्टिक्स डेटा को आधार बनाते हुए उसे भविष्य का अनुमान लगाना होता है। उसे अपनी कंपनी को यह बताना होता है कि आने वाले दिन में मार्केट का रुख कैसा रहेगा। ये डेटा प्रश्नावली, टेलीफोन, इंटरनेट सर्वेक्षण या फिर व्यक्तिगत साक्षात्कार को आधार बनाकर तैयार किए जाते हैं। बहुत सारे रिसर्च ग्रुप डिस्कशन पर आधारित होते हैं। इस डेटा को कलेक्ट करने के बाद उन्हें उपभोक्ताओं की वरीयता को आधार प्रदान करते हुए डिजाइन तैयार करना होता है।

ग्लोबल लेवल पर मार्केट रिसर्चर की ज्यादा डिमांड है। अगर आप इसे अपने करियर के तौर पर ऑप्ट करने जा रहे हैं, तो यह एक सही फैसला साबित हो सकता है। इसमें सफलता हासिल करने के लिए आपको मार्केट के कल्चर को अच्छे से समझना होता है। इसके साथ ही आपको बिना थके अप्रोच करने की विशेषता को भी खुद के अंदर लाना होता है। आज के दौर में मार्केट रिसर्च के क्षेत्र में काफी कुछ हो रहा है और आने वाले कई वर्षों तक इस क्षेत्र में बहुत कुछ होने की उम्मीद भी जताई जा रही है।

इन तीन पर पकड़ है जरूरी

रिसर्च- यह इसका आधार होता है। इसके जरिए काफी चीजें पता चल जाती हैं। यह भी पता लगता है कि कितने लोग प्रॉडक्ट को पसंद कर रहे हैं या नहीं।

लेग वर्क- लेग वर्क भी एक अहम कड़ी होती है। इसमें फील्ड में जाकर काम को अंजाम देना होता है।

डेटा में जादूगरी- एक रिसर्चर की डेटा पर पकड़ होना जरूरी है। इसके बिना वह सटीक विश्लेषण नहीं कर सकता है।

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किसी आर्ट में है दिलचस्पी तो डीयू में निखारें हुनर

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अगर किसी आर्ट के लिए आपका पैशन बोलता है, तो दिल्ली यूनिवर्सिटी में आपके लिए जगह है। डीयू की फैकल्टी ऑफ फाइन आर्ट्स ऐंड म्यूजिक और यूनिवर्सिटी से जुड़े कॉलेज ऑफ आर्ट में ऐसे कुछ अंडरग्रैजुएट प्रोग्राम हैं, जहां आप ऐडमिशन ले सकते हैं। कॉलेज ऑफ आर्ट में रजिस्ट्रेशन प्रक्रिया डीयू से अलग चलती है, इसके बैचलर्स ऑफ फाइन आर्ट्स प्रोग्राम के लिए 20 जून तक ऐप्लिकेशन भरी जा सकती है। दूसरी ओर, यूनिवर्सिटी की फैकल्टी ऑफ आर्ट्स बीए म्यूजिक ऑनर्स चलाती है। दोनों के लिए एंट्रेंस होंगे।

फाइन आर्ट्स के साथ : डीयू का कॉलेज ऑफ आर्ट दिल्ली सरकार के तहत आता है। तिलक मार्ग, आईटीओ स्थित इस कॉलेज से कई नैशनल-इंटरनैशनल फेम के आर्टिस्ट हैं। कॉलेज के अधिकारी बताते हैं, अंडरग्रैजुएट लेवल पर इस कॉलेज में एक ही प्रोग्राम है - बैचलर्स इन फाइन आर्ट्स। हालांकि, इसमें 6 स्ट्रीम हैं - अप्लाइड आर्ट्स, आर्ट हिस्ट्री, पेंटिंग, प्रिंट मेकिंग, स्कल्पचर और विजुअल कम्यूनिकेशन। चार साल का डिग्री कोर्स दो भागों में बंटा है- फाउंडेशन और स्पेशलाइजेशन। फाउंडेशन दो सेमेस्टर का है और स्पेशलाइजेशन चार सेमेस्टर का, यानी दो सेमेस्टर सभी स्टूडेंट्स (आर्ट हिस्ट्री छोड़कर) एक सी पढ़ाई करेंगे।

अधिकारी बताते हैं, स्टूडेंट्स 6 में से एक स्ट्रीम को चुन सकते हैं। अगर कोई कन्फ्यूजन है, तो कॉलेज जाकर बातचीत भी कर सकते हैं। आर्ट हिस्ट्री को छोड़कर बाकी स्ट्रीम में पीजी कोर्स भी हैं। स्टूडेंट्स को फॉर्म कॉलेज की वेबसाइट से डाउनलोड कर भरकर 20 जून तक जमा करना होगा और बाकी डॉक्युमेंट रजिस्टर्ड/स्पीड पोस्ट/कुरियर या हाथोहाथ कॉलेज में जमा करनी होगी। रजिस्ट्रेशन फीस 500 रुपये है। करीब 300 सीटों के लिए ऐडमिशन होंगे। बीएफए के लिए 12वीं क्लास में कम से कम 50% स्कोर होना चाहिए, इसमें 5% की छूट उन्हें दी जाएगी, जिनका 12वीं में ग्राफिक डिजाइन, पेंटिंग, ड्रॉइंग, स्कल्चर या अप्लाइड आर्ट्स सब्जेक्ट रहा हो। कॉलेज 30 जून को ऐप्टिट्यूड टेस्ट लेगा, जिसमें जनरल नॉलेज और ऐप्टिट्यूड देखा जाएगा। 15 जुलाई को रिजल्ट जारी होगा।

म्यूजिक : फैकल्टी ऑफ म्यूजिक ऐंड फाइन आर्ट्स का म्यूजिक डिपार्टमेंट तीन म्यूजिक कोर्स पढ़ाता है - हिंदुस्तानी म्यूजिक, कर्नाटक म्यूजिक और पर्कशन म्यूजिक। बीए ऑनर्स हिंदुस्तानी म्यूजिक में वोकल, इंस्ट्रुमेंटल (सितार/सरोद/गिटार/वॉयलिन/संतूर) का कॉम्बिनेशन है। दूसरा कोर्स है बीए ऑनर्स कर्नाटक म्यूजिक, जिसमें वोकल और इंस्टुमेंटल (वीणा या वॉयलिन) शामिल हैं। तीसरा कोर्स बीए ऑनर्स पर्कशन म्यूजिक है,जिसमें तबला और पखावज चुने जा सकते हैं। डिपार्टमेंट हिंदुस्तानी म्यूजिक, कर्नाटक म्यूजिक और पर्कशन म्यूजिक में मास्टर्स भी करवाता है।

डिपार्टमेंट यूजी के लिए प्रैक्टिकल ऐडमिशन टेस्ट लेगा, जिसकी डेट जल्द ही वेबसाइट पर जारी होगी। अप्लाई करने के लिए 12वीं में कम से कम 45%, बेस्ट फोर में तीन इलेक्टिव, एक लैंग्वेज होनी जरूरी है।

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मैं 12वीं पास हूं, मुझे कौन सा कोर्स करना चाहिए?

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12वीं के बाद कौन से सब्जेक्ट्स लिए जाएं या जॉब चुनने को लेकर हमारे मन में कई सवाल होते हैं। करियर से जुड़े कुछ ऐसे ही सवालों के जवाब दे रहे हैं, दयाल सिंह कॉलेज के आईएस बख्शी।

मैंने 12वीं कॉमर्स स्ट्रीम से की है और मैं नर्स बनना चाहती हूं। मुझे डीयू से कौन सा कोर्स करना चाहिए?

कुछ इंस्टिट्यूट हैं जो डीयू से ऐफिलेटिड हैं आप वहां से कोर्स कर सकते हैं।

स्काउट्स एंड गाइड्स में राष्ट्रपति अवॉर्ड प्राप्त करने के बाद क्या कट ऑफ में कोई छूट मिलेगी?

आप ईसीए की एनसीसी कैटिगरी में अप्लाई करें।

इस साल डीयू एंट्रेंस एग्जाम का क्वेशन पेपर क्या एनटीए सेट करेगा या डीयू सेट करेगा?

एग्जाम नैशनल टेस्टिंग एजेंसी ही कराती है।

ओबीसी सर्टिफिकेट आउट ऑफ दिल्ली का है कोई परेशानी तो नहीं आएगी?

वैसे कोई परेशानी नहीं है लेकिन आपका ओबीसी सर्टिफिकेट सेंट्रल लिस्ट में होना चाहिए।

बीएससी कोर्सेज में टॉप 3 या फिर टॉप 4 सब्जेक्ट के मार्क्स जोड़े जाते हैं?

डिपेंड करता हैं आप कोर्स कौन सा लेना चाहते हैं।

मैंने डीयू का रजिस्ट्रेशन प्रोसेस पूरा कर लिया है और मुझे डीयू जेट का फॉर्म भरना है तो अब क्या करना होगा?

रजिस्ट्रेशन फॉर्म में भी एंट्रेंस का ऑप्शन होता हैं।

डिसेबल स्टूडेंट के लिए डीयू में एडमिशन का क्या प्रोसेस है?

डीयू में ऐसे कोई कोर्स नहीं हैं।

मेरी उम्र 39 साल है। अब बीएड करने की सोच रही हूं, क्या अब बीएड करके गर्वमेंट जॉब कर सकती हूं?

हां आप कर सकती हैं।

क्या मैं ऐडमिशन के दौरान पापा का सर्टिफिकेट इस्तेमाल कर सकता हूं?

नहीं, आपको सर्टिफिकेट के लिए अप्लाई कर देना चाहिए और रजिस्ट्रेशन के दौरान आप अप्लाई फॉर्म अपलोड कर सकते हैं।

कॉमर्स स्ट्रीम से हूं और अब पोल साइंस (ऑनर्स) करना चाहता हूं, क्या मेरी पर्सेंटेज डिडक्ट होगी?

आपने पोल साइस नहीं पढ़ी है तो कुछ पर्सेंटेज डिडक्ट होगी।

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NTA NET 2019: आज से एग्जाम शुरू, जानें काम की 3 बातें

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20 जून यानी आज से नैशनल एलिजिबिलिटी टेस्ट (नेट) शुरू हो रहा है। पहले इसका आयोजन यूनिवर्सिटी ग्रांट्स कमिशन (यूजीसी) द्वारा किया जाता था। अब नैशनल टेस्टिंग एजेंसी (एनटीए) इस परीक्षा का आयोजन करती है। परीक्षा का समापन 26 जून, 2019 को होगा। एनटीए नेट 2019 एग्जाम कंप्यूटर आधारित होगा। परीक्षा दो पेपरों की होगी। सभी कैंडिडेट्स को एग्जाम से जुड़ीं इन 3 बातों पर ध्यान देना चाहिए...

एनटीए नेट ऐडमिट कार्ड 2019
कैंडिडेट्स को एनटीए की वेबसाइट से पहले ऐडमिट कार्ड को डाउनलोड करना होगा और फिर उसका एक प्रिंट आउट ले लेना चाहिए। जो फोटो ऑनलाइन ऐप्लिकेशन में डाउनलोड किया है, वैसी ही एक फोटो कैंडिडेट्स को एग्जाम सेंटर पर लेकर जाना होगा। वहां एग्जाम के दौरान एक अटेंडेंस शीट पर खास स्थान पर पासपोर्ट साइज फोटो पेस्ट करना होगा। ऐडमिट कार्ड के साथ कैंडिडेट को एक फोटो आईडी कार्ड जैसे पैन कार्ड या ड्राइविंग लाइसेंस या वोटर आईडी कार्ड या पासपोर्ट या आधार कार्ड या आधार एनरोलमेंट नंबर या राशन कार्ड लेकर जाना होगा। फोटो आईडी कार्ड पर जो नाम होगा, वही नाम एनटीए नेट ऐडमिट कार्ड में भी होना चाहिए।

एनटीए नेट 2019 टाइमिंग
कैंडिडेट्स को एग्जाम शुरू होने से दो घंटे पहले एग्जाम सेंटर पर पहुंचना चाहिए ताकि समय पर पंजीकरण की औपचारिकताओं को पूरा कर सकें। पंजीकरण डेस्ट एग्जाम से 30 मिनट पहले बंद हो जाएगा। कैंडिडेट्स को पहली शिफ्ट में 8.30 बजे के बाद और दूसरी शिफ्ट में 1.30 बजे दिन के बाद प्रवेश की अनुमति नहीं होगा। कैंडिडेट्स को एग्जाम सेंटर के एग्जाम हॉल में पहली शिफ्ट में 8.45 तक और दूसरी शिफ्ट में 1.45 बजे दिन तक पहुंचना होगा।

ये चीजें साथ लेकर न जाएं
कैंडिडेट्स को एग्जाम सेंटर के अंदर कैरी बैग लेकर जाने की अनुमति नहीं होगी। इसके अलावा लिखित कैंडिडेट्स सामग्री, कैलकुलेटर, स्लाइड रूल्स, लॉग टेबल्स, कैलकुलेटर की सुविधा वाली इलेक्ट्रॉनिक घड़ी, कागज की पर्चियां, मोबाइल फोन, ब्लू टूथ डिवाइसेज, पेजर या कोई अन्य इलेक्ट्रॉनिक गैजेट/डिवाइस आदि लेकर नहीं जा सकेंगे। अगर किसी कैंडिडेट के पास उपरोक्त में से कोई सामग्री पाई जाती है तो उसकी उम्मीदवारी रद्द कर दी जाएगी और भविष्य में भी परीक्षा देने पर रोक लगा दिया जाएगा।

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बेनेट यूनिवर्सिटी से करें स्पेशलाइज्ड डिग्री कोर्स, बनें मीडिया के ऑलराउंडर

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नई दिल्ली
यह डिजिटल युग है। अकेले भारत में 2019 के अंत तक इंटरनेट के उपभोक्ताओं की संख्या करीब 67.2 करोड़ होने का अनुमान है। जो लोग नए युग की फील्ड में करियर बनाना चाहते हैं, उनके लिए इंटरनेट उपभोक्ताओं की इतनी बड़ी संख्या काफी मायने रखती है। हमेशा बढ़ने वाले इस सूचना उपभोक्ता समूह की जरूरतों को पूरा करने के लिए जॉब मार्केट नवाचार और उत्कृष्ट दक्षता की लगातार तलाश में है। वैसे परंपरागत बैचलर डिग्री की बात की जाए तो यह उपयोगी तो है लेकिन अब तक उस फील्ड में कोई ऐसा कोर्स नहीं है जो पढ़ाई के बाद भविष्य के लिए दोहरी गारंटी दे सके।

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परंपरागत प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के अलावा इंटरनेट कंपनी में ऐसे लेखकों और कॉन्टेंट तैयार करने वालों की जरूरत है जिनको मल्टिमीडिया की ठीक-ठाक जानकारी हो। आज के समय में किसी इंटरनेट कंपनी के लिए ऐसे कॉन्टेंट राइटर एक बड़ी संपत्ति की तरह हैं जो हर तरह का कॉन्टेंट तैयार कर सकते हैं। इन खास नौकरियों के लिए इंग्लिश, पॉलिटिकल साइंस, जिऑग्रफी या सोशलॉजी में प्लेन बैचलर डिग्री या ऑनर्स को इंडस्ट्री में प्राथमिकता नहीं दी जाती है।

ऐसे में पत्रकारिता जैसे पेशेवर और स्किल आधारित कोर्स से मीडिया की सभी शाखाओं जैसे प्रिंट, टेलिविजिन, रेडियो, इवेंट मैनेजमेंट कॉर्पोरेट्स, ऐडवर्टाइजिंग एजेंसी और पब्लिक रिलेशन ऑफिस में आपके लिए जॉब के दरवाजे खुल जाते हैं। ध्यान रहे कि आज के समय में तेजी से बढ़ता हुआ सेक्टर गैर मीडिया इंटरनेट कंपनियां हैं। अधिकतर परंपरागत ऑफलाइन कंपनियों ने अपनी ऑनलाइन उपस्थिति भी सुनिश्चित की है और उनको अपनी वेबसाइट की देखरेख के लिए लोगों की जरूरत होती है। लेकिन वे भी ऐसे कुशल लोगों को प्राथमिकता देते हैं जो डिजिटल मीडिया या पत्रकारिता को समझते हैं और इंग्लिश में ग्रैजुएट हों।

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करियर काउंसलर प्रवीण मल्होत्रा बताते हैं, 'परंपरागत डिग्री से अब सीधे नौकरी नहीं मिलती है। ऐसे कोर्स करने वाले कुछ ही छात्र इसके अपवाद होते हैं। वे मार्केट में जॉब की जरूरतों को पूरा नहीं करते हैं।' उन्होंने बताया, 'ऐसे छात्रों को ज्यादा से ज्यादा एंट्री लेवल की जॉब मिल जाती है जिसमें ज्यादा स्किल्स की जरूरत नहीं होती है। इससे असंतुष्टि और सामाजिक असंतोष की स्थिति पैदा होती है। इसलिए बेहतर है कि ऐसा कोर्स किया जाए जो स्किल आधारित हो जैसे मास मीडिया और पत्रकारिता या आईटी।'

अब सवाल उठता है कि क्य मीडिया में ह्यूमैनिटीज विषय जैसे इंग्लिश साहित्य में डिग्री के साथ मीडिया में प्रवेश किया जा सकता है या नहीं? वैसे मीडिया में प्रवेश का यह परंपरागत माध्यम रहा है लेकिन दिल्ली यूनिवर्सिटी के इंग्लिश विभाग के असोसिएट प्रफेसर अनिल अनेजा का कहना है कि इसमें थोड़ा फर्क है। उन्होंने बताया, 'इंग्लिश ऑनर्स से इससे संबंधित अन्य कोर्सों जैसे इंग्लिश में एमए, एमबीए या प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए मौका तो मिलता है लेकिन पत्रकारिता में नहीं। पत्रकारिता एक विशिष्ट कोर्स है जो मुख्य रूप से उनलोगों के लिए हैं जोपत्रकारिता में करियर बनाना चाहते हैं और उन्होंने इसका फैसला कर लिया है। यह कानून की तरह है जिसमें खास स्किल्स की पढ़ाई होती है।'

वास्तव में डिजिटल मीडिया या पत्रकारिता कोर्स में काफी संभावनाएं हैं। मीडिया और इंटरनेट के अलग-अलग सेक्टरों में बड़ी संख्या में जॉब्स उपलब्ध हैं। अब तो नई गैर न्यूज वेबसाइट जैसे जोमैटो, फ्लिपकार्ट और मिंत्रा भी अपनी कॉन्टेंट की जरूरतों को पूरा करने के लिए ऐसे लोगों को प्राथमिकता देती हैं जिनके पास पत्रकारिता के कौशल हों। इसलिए स्पष्ट रूप से कहना यह होगा कि पत्रकारिता से छात्रों को यह अतिरिक्त लाभ मिलता है।

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कमला नेहरू कॉलेज में पत्रकारिता के असिस्टेंट प्रफेसर अग्नित्र घोष ने बताया कि दिल्ली यूनिवर्सिटी का पाठ्यक्रम व्यापक है। लेकिन डीयू के पाठ्यक्रम में सिर्फ थिअरी और स्किल आधारित पहलुओं पर फोकस किया जाता है। यहां मीडिया की अन्य शाखाओं की बारीकियों को नहीं सिखाया जाता है। दूसरी तरफ बेनेट यूनिवर्सिटी है जो न सिर्फ पत्रकारिता के बुनियादी अध्ययन की सुविधा मुहैया कराती है बल्कि मीडिया की 10 शाखाओं जैसे प्रिंट, टीवी, वेब जर्नलिजम, मोबाइल, ऐडवर्टाइजिंग, पब्लिक रिलेशन, इवेंट मैनेजमेंट में भी स्पेशलाइजेशन ऑफर करती है। बेनेट यूनिवर्सिटी यह भी सुनिश्चित करती है कि कैंडिडेट्स को हर तरह के स्किल में पारंगत किया जाए।

कैंडिडेट्स ऐसे में असमंजस की स्थिति में पड़ सकते हैं कि कहां से पढ़ाई की जाए। जहां तक बेनेट यूनिवर्सिटी की बात है तो यूनिवर्सिटी की विश्वसनीयता खुद सबकुछ साफ कर देती है। इसका मजबूत पहलु यह है कि एक मीडिया हाउस द्वारा इसे संचालित किया जाता है जिसे पता है कि भविष्य के पत्रकारों को किन स्किल्स से सुसज्जित होना चाहिए। बेनेट यूनिवर्सिटी के पास एक तो अत्याधुनिक सुविधाओं वाले लैब्स हैं तो दूसरी ओर इसके पास टाइम्स ऑफ इंडिया, टाइम्स नाउ और टाइम्स इंटरनेट के इन हाउस एक्सपर्टाइज की एक बड़ी संख्या है। वे पूरी तरह से मल्टिमीडिया के लिए समर्पित पत्रकारों को तैयार करने में मदद करते हैं।

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सही विकल्प चुनने के लिए सबसे अहम चीज यह है कि कैंडिडेट्स को कोर्स की बारीकियों से अवगत होना चाहिए। उनको पता होना चाहिए कि तीन साल के इन कोर्सों के दौरान किस तरह की शैक्षिक गतिविधियों में शामिल होना पड़ता है और कौन सी स्किल्स पर पकड़ बनानी होती है। टाइम्स स्किल ऑफ मीडिया के प्रमुख सुनील सक्सेना के मुताबिक, बेनेट यूनिवर्सिटी में छात्रों को कोर्स के दौरान अपना 60 फीसदी समय अत्याधुनिक टीवी और रेडियो स्टूडियो में बिताने का मौका मिलता है जिनको टाइम्स नाउ और रेडियो मिर्ची के सहयोग से विकसित किया गया है।



सक्सेना ने बताया, 'टाइम्स स्कूल ऑफ मीडिया में कराए जाने वाले जर्नलिजम और मास कम्यूनिकेशन के तीन साल के अंडरग्रैजुएट प्रोग्राम में काफी मेहनत करनी पड़ती है। छात्रों की क्लास 8.30 बजे शुरू होती है और उनको शाम के 5.30 बजे तक गतिविधियों में शामिल रहना पड़ता है।' उन्होंने बताया, 'दोपहर बाद का पूरा समय या तो लैब में या फिर फील्ड में गुजरता है। इस दौरान छात्रों को इन्फर्मेशन बुलेटिन, न्यूजपेपर की रिपोर्ट और मोबाइल रिपोर्ट तैयार करनी होता है या फिर ऐड कैंपेन तैयार करना होता है। इस कोर्स का लक्ष्य छात्रों को किसी न्यूजरूम, ऐडवर्टाइजिंग एजेंसी, डिजिटल साइट या ई-कॉमर्स प्लैटफॉर्म के साथ-साथ पब्लिक रिलेशन ऑफिसों के लिए भी उपयुक्त स्किल हासिल करने में मदद करना होता है।'

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JEE अडवांस्ड क्लियर नहीं हुआ तो क्या टेंशन, आपके लिए हैं ये ऑप्शन

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अगर आप जेईई अडवांस्ड 2019 क्लियर नहीं कर पाए हैं तो टेंशन मत लें। जेईई अडवांस्ड 2019 क्लियर नहीं कर पाने से करियर के रास्ते बंद नहीं हो जाते। आप अकेले ऐसे छात्र नहीं हैं जो जेईई अडवांस्ड क्लियर नहीं कर पाए हैं। जेईई अडवांस्ड 2019 देने वाले 9 लाख छात्रों में से सिर्फ 2.5 लाख ही इसको क्लियर कर पाए हैं। उनमें से भी कुछ हजारों को ही आईआईटीज में दाखिला मिल पाएगा। ऐसे में बाकी छात्रों को अच्छा कॉलेज नहीं मिलेगा या जीवन में वे कुछ नहीं कर पाएंगे, ऐसी बात नहीं है। अब भी आपके लिए कई ऑप्शन बचे हैं जिनको आप आजमा सकते हैं...

अन्य परीक्षा

राज्य स्तर पर कई इंजिनियरिंग परीक्षाएं होती हैं। उनमें से कुछ यूपीजेईई, डब्ल्यूबीजेईई, एमएचटी-सीईटी, टीएनईए आदि हैं। आप इन परीक्षाओं में बैठ सकते हैं। जेईई अडवांस्ड के मुकाबले ये परीक्षाएं थोड़ी आसान होती हैं। कई प्राइवेट यूनिवर्सिटियां जैसे एसआरएम, वीआईटी, बिट्स आदि भी प्रवेश परीक्षाओं का आयोजन करती हैं। बिड़ला इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नॉलजी, वेल्लोर इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नॉलजी, एसआरएम यूनिवर्सिटी, मणिपाल यूनिवर्सिटी आदि में भी इंजिनियरिंग के कई अच्छे कोर्स ऑफर किए जाते हैं। भले ही वे आईआईटीज और एनआईटीज के मुकाबले की नहीं हैं लेकिन ज्ञान हासिल करने के लिए बहुत अच्छे संस्थान हैं। लेकिन जब बात प्राइवेट यूनिवर्सिटी की हो तो आपको बहुत सावधानी से चयन करना होगा। ऐडमिशन से पहले कॉलेज के रेप्युटेशन, रैंकिंग और प्लेसमेंट के बारे में जानकारी हासिल कर लें।

अन्य कोर्सों का विकल्प

बीटेक कोर्सों में आमतौर पर जेईई के आधार पर दाखिला होता है। इसके अलावा साइंस से संबंधित अन्य कोर्स जैसे बीएससी, बीबीए आदि भी आप कर सकते हैं। ये कोर्स भी साइंस से संबंधित हैं। इनमें 12वीं क्लास के मार्क्स के आधार पर दाखिला होता है। इसके अलावा विज्ञान के छात्रों के लिए कई नए कोर्स भी हैं। आप अपनी स्ट्रीम को बदलकर लॉ, आर्किटेक्चर आदि जैसे प्रफेशनल प्रोग्राम को भी चुन सकते हैं। आप बीसीए (कंप्यूटर ऐप्लिकेशंस), बी.आर्क (आर्किटेक्चर), बीएससी एविएशन (कमर्शल पायलट ट्रेनिंग के साथ), बीएससी नौटिकल साइंस (मर्चैंट नेवी ट्रेनिंग), इंडस्ट्रियल/प्रॉडक्ट डिजाइन में बीडीईएस, बीएफटेक (फैशन टेक्नॉलजी) में भी आप करियर बना सकते हैं। इन कोर्सों को करने से आपको पेशेवराना दक्षता हासिल हो जाती है जिससे आप अपने करियर को बुलंदी पर पहुंचा सकते हैं।

प्योर साइंस में विकल्प

आप केमिस्ट्री, फिजिक्स या मैथमेटिक्स में बीएससी कर सकते हैं। ये भी इंजिनियरिंग की ही तरह आकर्षक विकल्प हैं। इन फील्ड्स में डिग्री हासिल करने से प्योर और अप्लाइड रिसर्च के मैदान में प्रफेशन बनाने के ढेरों मौके मिलते हैं। आप रोबॉटिक्स, कंप्यूटेशनल फिजिक्स, एयरोडाइनैमिक्स, डेटा साइंस, फॉर्माकोलोजिकल रिसर्च, ऑपरेशनल रिसर्च में संभावनाएं तलाश सकते हैं। आईआईएससी, आईआईएसईआर, आईएसआई, दिल्ली यूनिवर्सिटी, लोयोला कॉलेज जैसे स्थान प्योर साइंसेज के कोर्स ऑफर करते हैं।

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CTET 2019: जरूर जानें एग्जाम से जुड़ीं ये 7 बातें

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CTET Exam Points 2019: 7 जुलाई को सीटेट एग्जाम 2019 होगा। सेंट्रल टीचर एलिजिबिलिटी टेस्ट (सीटेट) एक राष्ट्रीय स्तर की प्रवेश परीक्षा है। इसके आधार पर प्राइमरी और एलिमेंट्री टीचर्स की भर्ती होती है। सीटेट एग्जाम 2019 क्लियर करने वाले छात्रों को सीटेट सर्टिफिकेट मिलेगा। सीटेट 2019 एग्जाम के लिए ऐडमिट कार्ड जारी किया जा चुका है। परीक्षा से पहले आपको कुछ बातें जान लेनी चाहिए...

सीटेट 2019 कटऑफ या पासिंग मार्क्स
सीटेट 2019 एग्जाम में 60 फीसदी या उससे ज्यादा नंबर लाने वाले कैंडिडेट् को पास माना जाएगा। उनको मार्क्सशीट और सीटेट की क्वालिफाइंग सर्टिफिकेट दिए जाएंगे। पिछले कुछ सालों का रुझान देखें तो हर साल कटऑफ बढ़ रहा है। इस साल भी सीटेट के कटऑफ को बढ़ने की उम्मीद है। रिजल्ट आने के बाद सीबीएसई की ओर से सीटेट 2019 का कटऑफ जारी किया जाएगा।

सीटेट 2019 सर्टिफिकेट की वैधता अवधि
हाल ही में आए सीटेट 2019 के नोटिफिकेशन के मुताबिक, सीटेट 2019 के सर्टिफिकेट की वैधता अवधि हर श्रेणी के लिए इसके रिजल्ट जारी होने की तारीख से सात साल तक है।

सीटेट में प्रयासों की संख्या
सीटेट एग्जाम देने की कोई सीमा तय नहीं है। एग्जाम क्लियर करने वाले कैंडिडेट्स भी दोबारा परीक्षा में बैठ सकते हैं। जिन कैंडिडेट्स ने सीटेट क्लियर कर लिया है, वे अपने मार्क्स में सुधार के लिए भी दोबारा परीक्षा दे सकते हैं।

शिफ्ट
परीक्षा का आयोजन 2 शिफ्टों में होगा। पहली शिफ्ट सुबह के 9.30 बजे से 12 बजे तक और दूसरी शिफ्ट दिन के 2 बजे से 4.30 बजे तक होगी। कैंडिडेट्स को परीक्षा केंद्र पर परीक्षा शुरू होने से 90 मिनट पहले पहुंचना होगा।

पेपर का मोड
पेपर पेन और पेपर मोड में होगा। ओएमआर शीट पर आंसर मार्क करना होगा। 150-150 मार्क्स के दो पेपर होंगे और दोनों में 150-150 मल्टिपल चॉइस क्वेस्चन पूछे जाएंगे।

एग्जाम के समय जरूरी चीजें
कैंडिडेट्स को ऑरिजनल ऐडमिट कार्ड, दो बॉल पेन (काला/नीला) और साथ में एक फोटो आईडी लेकर परीक्षा केंद्र पर जाना होगा।

प्रतिबंधित चीजें
किसी तरह के गैजेट जैसे मोबाइल, ईयरफोन, कैमरा, ब्लूटूथ, कैलकुलेटर आदि को परीक्षा केंद्र पर लेकर जाने की अनुमति नहीं है। कैंडिडेट्स अपने साथ कैलकुलेटर, पेपर और स्केल भी लेकर नहीं जा पाएंगे।

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जर्नलिजम स्टूडेंट्स न रहें नौकरी के भरोसे, शुरू करें अपनी कंपनी: रिसर्च

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अगर आप पत्रकारिता के स्टूडेंट्स हैं, प्रिंट मीडिया या टीवी की नौकरी के बारे में सोच रहे हैं तो विचार बदल लें। बेहतर होगा, अपना खुद का काम जैसे वेबसाइट्स या पीआर फर्म का काम शुरू करें। यह बात एक स्टडी में सामने आई है। राइस यूनिवर्सिटी और रटगर्स यूनिवर्सिटी की स्टडी से यह बात सामने आई है कि शिक्षक जर्नलिजम के स्टूडेंट्स को न्यूज बिजनस के अलावा काम करने के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं।

राइस यूनिवर्सिटी के असिस्टेंट प्रफेसर मैक्स बेसब्रिस के मुताबिक टीचर्स स्टूडेंट्स को समझा रहे हैं कि उन्हें ट्रडिशनल न्यूज ऑर्गनाइजेशंस में नहीं जाना चाहिए। वे टेम्पररी, कॉन्ट्रैक्ट पर या फ्रीलांस वर्क, नॉन न्यूज ऑर्गनाइजेशंस, सरकारी या गैर सरकारी ऑर्गनाइजेशंस के लिए या किसी और जगह पर भी काम कर सकते हैं।'

आजकल पेपर बंद हो रहे हैं और सूचनाएं इंटरनेट, सोशल मीडिया पर मौजूद हैं। ऑथर्स ने बताया कि जर्नलिजम की शिक्षा देने वाले इंडस्ट्री में होने वाले बदलाव के बारे में अच्छी तरह से वाकिफ हैं। स्टडी के लिए जिन लोगों का इंटरव्यू लिया गया, उन्होंने कहा कि वे बदलाव को स्वीकार करते हैं और पुराने मॉडल में लौटना बेकार समझते हैं।

उन्होंने यह भी माना कि स्टूडेंट्स को जर्नलिजम में जॉब की अनिश्चतता वाले करियर के तौर पर स्वीकारना चाहिए। उन्होंने जितने भी शिक्षकों का इंटरव्यू लिया उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि स्टूडेंट्स को जितना हो सके फाइनैंशल रिस्क लेकर अपना काम शुरू करने वाला होना चाहिए और अपना बिजनस या वेबसाइट शुरू करने की इच्छा रखने वाला होना चाहिए।

उन्होंने स्टूडेंट्स को बढ़िया राइटर या फोटोजर्नलिस्ट बनने पर जोर देने के बजाय लिखने से लेकर एडिट करने या रिकॉर्डिंग और डिजाइनिंग तक हर स्किल डिवेलप करने की शिक्षा दी। कुछ टीचर्स इंडस्ट्री में होने वाले इस बदलाव से दुखी भी थे। इस स्टडी के लिए 113 फैकल्टी, स्टाफ और ऐडिमिनिस्ट्रेटर्स का इंटरव्यू लिया गया था।

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जान लें काम की बातें, ऐडमिशन के नाम पर ठगे नहीं जाएंगे

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इन दिनों सब देश के विभिन्न कॉलेजों में काउंसलिंग और दाखिले की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। जितने बच्चों ने 12वीं पास की है, उनमें से बहुत कम को ही उनके मनपसंद सब्जेक्ट, कॉलेज, इंस्टिट्यूट या यूनिवर्सिटी में दाखिला मिल पाता है। ऐसे स्टूडेंट्स का कुछ लोग फायदा उठाते हैं और ऐडमिशन दिलाने के नाम पर पैसे ऐंठ लेते हैं और गायब हो जाते हैं। कैसे बचें इनके जालसाजों से, एक्सपर्ट्स से जानकारी लेकर बता रहे हैं राजेश भारती...

पहला केस
राहुल ने पिछले साल 12वीं 70% अंकों से पास की थी। उन्होंने एक यूनिवर्सिटी में ऐडमिशन के लिए एंट्रेंस टेस्ट भी दिया। रैंक बहुत पीछे थी। उस यूनिवर्सिटी में ऐडमिशन नहीं हो पाया। दो-तीन दिन बाद राहुल के मोबाइल पर ऐडमिशन से जुड़े मेसेज आने शुरू हो गए। इन मेसेज में सरकारी/प्राइवेट यूनिवर्सिटी में गारंटी के साथ ऐडमिशन देने की बात कही गई थी। इसमें राहुल की मनपसंद यूनिवर्सिटी भी शामिल थी। राहुल ने मेसेज में दिए गए नंबर पर फोन किया। उन्हें भरोसा दिलाया गया कि उनका ऐडमिशन उनकी पसंदीदा यूनिवर्सिटी में करा दिया जाएगा। बात तय हुई 4 लाख रुपये में। उन्होंने घर पर पैरंट्स को इसके बारे में जानकारी दी। वे भी तैयार हो गए। वे बताए गए पते पर पहुंचे, जिसे 'एजुकेशन कंपनी' का ऑफिस बताया गया था। वहां उन्होंने 4 लाख रुपये एजेंट को दे दिए। कुछ फॉर्म भरने के बाद राहुल को एक आईकार्ड दे दिया गया। जब राहुल उस यूनिवर्सिटी में पहुंचा तो पता चला कि उसका वहां ऐडमिशन हुआ ही नहीं है। राहुल के पैरंट्स ने जांच-पड़ताल की तो उन्हें कुछ शक हुआ। एजेंट के नंबर पर फोन लगाया गया तो फोन बंद मिला। उस ऑफिस में पहुंचे तो वहां ताला लगा हुआ था। पता चला कि वह दो दिन से बंद है। वह ऑफिस फिर कभी नहीं खुला। ऐडमिशन के फेर में वे ठगे जा चुके थे।

दूसरा केस
आरती के पिता बेटी को डॉक्टर बनाना चाहते हैं। NEET में रैंकिंग अच्छी नहीं आई। मेडिकल कॉलेज मिलने में परेशानी हो रही थी। इस बीच उन्हें एक विज्ञापन दिखा जिसमें एक प्राइवेट मेडिकल कॉलेज से बीफार्मा कराए जाने की बात कही गई थी। आरती के पिता ने विज्ञापन में दिए गए नंबर पर कॉन्टेक्ट किया। उन्हें एक ऑफिस बुलाया गया, जिसे कॉलेज का ऑफिस बताया गया। वहां उन्हें बताया गया कि कॉलेज यूजीसी से मान्यता प्राप्त यूनिवर्सिटी से एफिलिएटिड है। कोर्स की फीस 80 हजार रुपये सालाना बताई गई। फीस चेक या ऑनलाइन मोड में लेने से मना कर दिया गया। आरती के पैरंट्स ने फी कैश में जमा कर दी। करीब दो महीने तक उस कॉलेज की ओर से कोई फोन नहीं आया। जब आरती के पिता बीफार्मा कॉलेज पहुंचे तो पता चला कि वहां आरती का ऐडमिशन हुआ ही नहीं है। इसके बाद उन्होंने उस यूनिवर्सिटी से कॉन्टेक्ट किया जिससे उस कॉलेज का एफिलिएशन बताया गया था। उस यूनिवर्सिटी ने भी आरती के ऐडमिशन को नकार दिया। जब फीस की रसीद दिखाई गई तो वह नकली निकली।

कौन होते हैं ये एजेंट?
ऐडमिशन प्रक्रिया शुरू होने के दौरान ऐसे एजेंट तमाम बड़ी यूनिवर्सिटी में ऐक्टिव हो जाते हैं। देश के विभिन्न कॉलेजों, इंस्टिट्यूट या यूनिवर्सिटी में ऐडमिशन के लिए अप्लाई या एंट्रेंस एग्जाम देने वाले स्टूडेंट्स और पैरंट्स का फोन नंबर ये एजेंट पता कर लेते हैं। इसके बाद ये उन्हें मेसेज भेजकर पसंदीदा कोर्स और इंस्टिट्यूट में ऐडमिशन दिलवाने का लालच देते हैं। कई बार ये एजेंट ऐसे भी दावे कर जाते हैं जो नामुमकिन किस्म के होते हैं। ऐसे एजेंट ग्रुप में काम करते हैं या फिर सिंगल भी होते हैं।

ऐसे करते हैं काम
ऐडमिशन लेने के लिए बेताब बच्चे या उनके पैरंट्स को ये एजेंट अक्सर फोन पर संपर्क करते हैं और पहले सीधे मिलने से बचते हैं। उन्हें ये फोन पर पूरी जानकारी भी नहीं देते। स्टूडेंट्स या पैरंट्स को काउंसलिंग के लिए ये अपने ऑफिस बुलाते हैं। ऐडमिशन से जुड़ी पूरी जानकारी और फीस के बारे में यहीं बातचीत होती है। पसंदीदा इंस्टिट्यूट में ऐडमिशन कराने के लिए बाकायदा अपनी फीस बताते हैं। एक बार जब आपने पैसे दे दिए तो समझ लीजिए, इनके उड़ने का टाइम आ गया। ऐडमिशन न मिलने पर जब इन एजेंट से संपर्क किया जाता है तो ज्यादातर के मोबाइल नंबर बंद मिलते हैं। इनके ऑफिस जाने पर पता चलता है कि वह भी बंद हो चुका है।

दावे और सचाई
ऐडमिशन को लेकर हमने ऐसे ही कुछ एजेंट्स से बात की। उनकी बताई गई बातों को जब हमने एक्सपर्ट्स से क्रॉस चेक किया तो कई चौंकाने वाली बातें सामने आईं। जानें इन एजेंट्स के दावों और सचाई के बारे में...

1. पसंद की यूनिवर्सिटी
हमने एजेंट से पूछा कि बच्चे ने एंट्रेंस एग्जाम नहीं दिया है। वह आपके विज्ञापन में बताई गई आईपी यूनिवर्सिटी में BBA में ऐडमिशन लेना चाहता है। क्या यह संभव है?

एजेंट का दावा: एजेंट ने बताया कि बिना एंट्रेंस एग्जाम दिए IPU में डायरेक्ट ऐडमिशन तो संभव नहीं, लेकिन एक रास्ता है। बच्चे का BBA में ऐडमिशन अभी नोएडा या ग्रेटर नोएडा की किसी प्राइवेट यूनिवर्सिटी में करा देते हैं। अगले साल माइग्रेशन के जरिए बच्चे का BBA सेकंड ईयर में IPU में ऐडमिशन करवा दिया जाएगा।

यह है सचाई: इस मामले की सचाई जानने के लिए हमने IPU के जॉइंट रजिस्ट्रार नितिन मलिक से बात की। उन्होंने बताया कि माइग्रेशन के जरिए ऐडमिशन संभव ही नहीं है। IPU में ऐडमिशन का सिर्फ एक ही रास्ता है और वह है एंट्रेंस एग्जाम। माइग्रेशन के जरिए जो भी ऐडमिशन दिलाने की बात करता है, वह गलत बोल रहा है। ऐसे झांसे में न आएं।

2. हर कोटा लागू नहीं
हमने एजेंट से पूछा कि बच्चा IPU में BJMC में ऐडमिशन लेना चाहता है। उसने एंट्रेंस एग्जाम भी दिया है, लेकिन रैंक 10 हजार से ज्यादा है। ऐसे में नहीं लगता कि उसका ऐडमिशन हो पाएगा। आप किस तरह ऐडमिशन दिलाएंगे?

एजेंट का दावा: एजेंट ने कहा कि बच्चे की रैंक कितनी भी हो, उसका IPU में BJMC में ऐडमिशन हो जाएगा। यह ऐडमिशन मैनेजमेंट या एनआरआई कोटे से करवाया जाएगा। कोटे से ऐडमिशन फीस करीब 4 लाख रुपये होगी।

यह है सचाई: IPU के जॉइंट रजिस्ट्रार ने बताया कि IPU में एनआरआई कोटा है ही नहीं। ऐसे में जो भी एजेंट एनआरआई कोटा के जरिए IPU में ऐडमिशन दिलाने की बात कह रहा है, वह पूरी तरह फर्जी है। इस झांसे में बिलकुल न आएं। उन्होंने बताया कि मैनेजमेंट कोटा का मामला थोड़ा अलग है। यह IPU के सभी कॉलेजों में नहीं है और जहां है, वहां मैनेजमेंट कोटा कुल सीटों का 10% ही लागू है। मैनेजमेंट कोटा के तहत भी ऐडमिशन लेने की कई शर्तें हैं।

3. गारंटी से ऐडमिशन
हमने एजेंट से पूछा कि एक स्टूडेंट इंजिनियरिंग इंस्टिट्यूट में ऐडमिशन लेना चाहता है। उसने एंट्रेंस एग्जाम भी दिया है, लेकिन रैंक बहुत नीचे है। ऐसे में ऐडमिशन कैसे मिल सकता है और फीस कितनी होगी?

एजेंट का दावा: एजेंट ने हमें नोएडा और ग्रेटर नोएडा के कुछ प्राइवेट इंजिनियरिंग इंस्टिट्यूट के नाम बताए। एजेंट ने कहा कि इन इंस्टिट्यूट में से किसी में भी गारंटी से ऐडमिशन हो जाएगा। फीस के बारे में जानकारी देने के लिए एजेंट ने अपने ऑफिस आने को कहा। एजेंट ने कहा कि पहले काउंसलिंग होगी और उसके बाद फीस और बाकी की जानकारी दी जाएगी।

यह है सचाई: इस बारे में करियर काउंसलर अशोक सिंह कहते हैं कि इस प्रकार के एजेंट्स से बचकर रहें। कुछ एजेंट्स गारंटी से ऐडमिशन देने के नाम पर रकम ऐंठने के लिए ही सक्रिय रहते हैं। अगर आप एजेंट के जरिए ऐडमिशन लेना चाहते हैं तो कैश कभी न दें। हमेशा चेक के जरिए पेमेंट करें और ध्यान रखें कि चेक किसी व्यक्ति के नाम नहीं, बल्कि संस्थान के नाम होना चाहिए। चेक देने समय उसके कोने पर दो तिरछी लाइन जरूर खींच दें, ताकि वह पैसा किसी अकाउंट में ही जमा हो। हालांकि बेहतर होगा कि स्टूडेंट जिस संस्थान में ऐडमिशन लेना चाहता है, आप उस संस्थान में जाएं और ऐडमिशन से जुड़ी पूरी जानकारी लें और पता करें कि एजेंट के माध्यम से ऐडमिशन होता भी है या नहीं।

फर्जी एजेंट ऐसे फंसाते हैं स्टूडेंट को
- विज्ञापन में ऐडमिशन की गारंटी देने की बात की जाती है।
- फोन पर ज्यादा जानकारी नहीं देते। काउंसलिंग के लिए अपने ऑफिस बुलाते हैं।
- वहां मनमुताबिक ऐडमिशन दिलाने की बात करते हैं।
- स्टूडेंट और पैरंट्स की हर हां में हां मिलाते हैं।
- फीस का मोलभाव भी कर लेते हैं।

क्या सभी एजेंट फर्जी होते हैं?
यह भी सच नहीं है कि सभी एजेंट फर्जी होते हैं। काफी एजेंट सिर्फ पैसे के लिए काम करते हैं। इन एजेंट्स का प्राइवेट कॉलेज, इंस्टिट्यूट और यूनिवर्सिटी के साथ टाइअप होता है। कमिशन के आधार पर ये स्टूडेंट्स को ऐडमिशन के लिए उन कॉलेज, इंस्टिट्यूट या यूनिवर्सिटी में भेजते हैं, जिनके साथ इनका टाइअप होता है। हालांकि अगर कोई एजेंट सरकारी कॉलेज, इंस्टिट्यूट और यूनिवर्सिटी में ऐडमिशन दिलाने की बात कर रहा है तो उस पर विश्वास न करें। दरअसल, हर सरकारी संस्थान में ऐडमिशन से पहले एक टेस्ट होता है और उसके बाद कटऑफ या काउंसलिंग की प्रक्रिया होती है। इसमें सफल उम्मीदवार को ही ऐडमिशन मिलता है। अगर कोई एजेंट यह कहता है कि वह ऐडमिशन प्रक्रिया में फेल होने या एंट्रेंस एग्जाम न देने के बावजूद स्टूडेंट का सरकारी संस्थान में ऐडमिशन करवा देगा तो वह झूठ बोल रहा होता है। इस तरह ऐडमिशन संभव ही नहीं है।

इन सेक्टर में होते हैं सबसे ज्यादा धोखे

1. मेडिकल: मांग ज्यादा, धोखा ज्यादा
सबसे ज्यादा मांग सरकारी मेडिकल कॉलेज, इंस्टिट्यूट या यूनिवर्सिटी में ऐडमिशन लेने की रहती है। सीमित सीट होने के कारण अधिकतर स्टूडेंट्स को मनपसंद जगह ऐडमिशन नहीं मिल पाता। ऐसे में काफी स्टूडेंट्स और पैरंट्स इन एजेंट के चंगुल में फंस जाते हैं और ऐडमिशन फीस के रूप में मोटी रकम गंवा देते हैं। प्राइवेट कॉलेज, इंस्टिट्यूट या यूनिवर्सिटी में ऐडमिशन के नाम पर भी धोखाधड़ी खूब होती है। एजेंटों की लिस्ट में जो प्राइवेट कॉलेज, इंस्टिट्यूट या विश्वविद्यालय होते हैं उनके बारे में वे बढ़ा-चढ़ाकर बताते हैं। ऐसे तमाम संस्थानों की जांच-पड़ताल करने पर पता चलता है कि जिस संस्थान से ये मान्यता प्राप्त होने का दावा करते हैं, वह संस्थान मान्यता ही नहीं देता है और अगर मान्यता देता भी है तो एजेंट जिस कॉलेज, इंस्टिट्यूट या यूनिवर्सिटी की बात कर रहा होता है उसे मान्यता मिली ही नहीं होती है।

यहां करें सही मेडिकल संस्थान की पहचान: mciindia.org

2. इंजिनियरिंग: खाली सीट का उठाते हैं फायदा
मेडिकल की तरह इंजिनियरिंग के सरकारी कॉलेज, इंस्टिट्यूट या यूनिवर्सिटी में ऐडमिशन लेने के लिए ऑल इंडिया लेवल की एग्जाम से गुजरना पड़ता है। इनमें सीटें शुरू में ही फुल हो जाती हैं। ऐसे में बचे प्राइवेट कॉलेज, इंस्टिट्यूट या यूनिवर्सिटीज। इनमें हर साल इंजिनियरिंग की दो लाख सीटें खाली रह जाती हैं। इन सीटों को भरने के लिए ये संस्थान सारी तिकड़म लगाते हैं। ये संस्थान एजेंट को मोटी कमिशन देते हैं और स्टूडेंट्स को गारंटीड जॉब के नाम अपने यहां ऐडिमशन के लिए लुभाते हैं। ये एजेंट अपनी ओर से ऐसे-ऐसे वादे कर देते हैं जिन्हें खुद संस्थान नहीं करते। बाद में पता चलता है कि या तो संस्थान फर्जी है या जॉब को लेकर कई झोल हैं।

यहां करें सही इंजिनियरिंग कॉलेज की पहचान: aicte-india.org

3. जनरल कोर्स: काफी स्टूडेंट ऐसे होते हैं जो जरनल कोर्स जैसे बीए, बीएससी, बीकॉम, एमए, एमएससी आदि में ऐडमिशन के लिए भी जुगाड़ लगाते हैं। इन स्टूडेंट को ये एजेंट फंसा लेते हैं। स्टूडेंट्स इन एजेंट्स की भोली-भाली बातों में आ जाते हैं और अपने पैसे गंवा बैठते हैं। डीयू जैसी यूनिवर्सिटी कैंपस में ऐसे एजेंट काफी मिल जाते हैं। कई एजेंट ओपन यूनिवर्सिटी में इन कोर्स को कराने का लालच देते हैं। इसके लिए एजेंट ऐसी-ऐसी यूनिवर्सिटी का नाम बता देते हैं जो कहीं एक-दो कमरे में चल रही होती हैं।

यहां करें सही यूनिवर्सिटी की पहचान: ugc.ac.in

किसी भी झांसे में न आएं
1. एजेंट को करें इग्नोर: किसी भी संस्थान में ऐडमिशन लेने के लिए एजेंट को इग्नोर करें। गारंटी से ऐडमिशन दिलाने का दावा करने वाले विज्ञापन, मेसेज, ई-मेल, कॉल आदि पर भरोसा न करें। बेहतर होगा कि जिस कॉलेज, इंस्टिट्यूट या यूनिवर्सिटी में ऐडमिशन लेना चाहते हों, वहां खुद जाएं और जरूरी जानकारी हासिल करें। साथ ही बेहतर होगा कि किसी प्राइवेट कॉलेज, इंस्टिट्यूट या यूनिवर्सिटी की सही जानकारी वहां पढ़ रहे स्टूडेंट्स से लें।

2. फिर से करें तैयारी: टेक्निकल कोर्स के लिए अगर स्टूडेंट का किसी कॉलेज, इंस्टिट्यूट या यूनिवर्सिटी में नंबर नहीं आया है तो बेहतर होगा कि एक साल फिर से तैयारी करें। इससे नींव और मजबूत होगी और बेहतर रैंक भी आ पाएगी। ऐसे में आपका एक साल का गैप जरूर हो जाएगा, लेकिन किसी एजेंट के झांसे में फंस कर मोटे पैसे गंवाने से तो यह बेहतर है ही। पैरंट्स को भी चाहिए कि दिखावे में न आएं और बच्चे को जानबूझकर किसी गलत चंगुल में न फंसाएं।

3. ओपन से करें पढ़ा ई: कम मार्क्स या कम रैंक के कारण अगर किसी स्टूडेंट को पसंद के कॉलेज, इंस्टिट्यूट या यूनिवर्सिटी में ऐडमिशन नहीं मिल पाता है तो ओपन से पढ़ाई का विकल्प तैयार रखना चाहिए। ओपन से पढ़ाई करियर में किसी भी प्रकार से बाधा नहीं बनती है। बेहतर संस्थान जैसे इग्नू की डिग्री भी वही काम करेगी जो दूसरे संस्थानों की करती है।

4. गूगल से पूछें सवाल: अगर कोई एजेंट किसी कॉलेज, इंस्टिट्यूट या यूनिवर्सिटी में ऐडमिशन दिलाने की बात करता है तो उसकी संस्थान की पूरी जानकारी गूगल से मालूम कर सकते हैं। गूगल पर आए सर्च रिजल्ट में उन वेबसाइट को ओपन ही न करें जिनके आगे बॉक्स में Ad लिखा हो। इन वेबसाइट को पैसे देकर गूगल सर्च में ऊपर दिखाया जाता है ताकि लोग इस पर अधिक से अधिक भरोसा करें। Ad बॉक्स वाले लिंक को छोड़कर अन्य लिंक पर क्लिक करें और संस्थान के बारे में सही जानकारी लें। ध्यान रहे, सही जानकारी के लिए एक से अधिक लिंक पर जाएं।

5. डिजिटल तरीके से दें फीस: किसी भी कॉलेज, इंस्टिट्यूट या यूनिवर्सिटी में ऐडमिशन लेने के दौरान फीस हमेशा डिजिटल तरीके या चेक से ही दें। सभी मान्यता प्राप्त कॉलेज, इंस्टिट्यूट या यूनिवर्सिटी डिजिटल तरीके से भी फीस लेती हैं। अगर कोई कैश के रूप में फीस लेने की जिद कर रहा है तो उसकी मान्यता संदिग्ध हो सकती है।

ऐसे बचें फर्जी एजेंट से
- अव्वल तो यह कि किसी भी एजेंट के जरिए ऐडमिशन लेने से बचें।
- अगर कोई एजेंट फोन पर पूरी जानकारी न दे तो उससे आगे की बातचीत बंद कर दें।
- अगर एजेंट सिर्फ अपनी बात कहे और संस्थान और खुद की तारीफ करे तो समझ लें कि कुछ गड़बड़ है।
- एजेंट अगर सरकारी संस्थान में ऐडमिशन दिलाने की बात कह रहा है तो उससे दूरी बना लें क्योंकि यह एजेंट के जरिए संभव ही नहीं है।


फर्जी संस्थान के चंगुल में फंस जाने पर ये कदम उठाएं
- संस्थान के एडमिन डिपार्टमेंट में बात करें और फीस रिफंड करने को कहें।
- अगर संस्थान फीस देने से मना करे तो पुलिस में शिकायत दर्ज कराएं।
- संस्थान के खिलाफ कंज्यूमर कोर्ट जाएं।
- संबंधित रेग्युलेटरी संस्थान में भी शिकायत दर्ज करें ताकि भविष्य में और स्टूडेंट इसके शिकार न हों।

अगर फर्जी एजेंट के चक्कर में फंस जाएं तो ये तरीका अपनाएं

एफआईआर दर्ज कराएं: सबसे पहले उस एजेंट और उसके साथ मिले हुए अन्य लोगों के खिलाफ पुलिस में एफआईआर दर्ज कराएं। अगर पुलिस केस दर्ज करने से मना करे तो कोर्ट जाएं। कोर्ट पुलिस को एफआईआर दर्ज करने के लिए कहेगी। इस मामले में पुलिस क्रिमिनल केस दर्ज करेगी। एफआईआर दर्ज होने के बाद पुलिस आरोपी को कोर्ट में पेश करेगी और फिर सबूतों के आधार पर आरोपी को 7 साल तक की सजा हो सकती है। अगर आरोपी फरार है तो पुलिस पीड़ित के द्वारा दिए गए सबूतों जैसे मोबाइल नंबर, फोटो या विडियो, ऑफिस का पता आदि के आधार पर आरोपी की तलाश करेगी और कोर्ट लेकर जाएगी। अगर आरोपी ने स्टूडेंट या उसके पैरंट्स से पैसे नहीं भी लिए हैं, लेकिन उन्हें फंसाने की कोशिश की है तब भी आरोपी के खिलाफ क्रिमिनल केस बनता है।

सिविल केस दर्ज कराएं: एफआईआर दर्ज कराने के तुरंत बाद ही आरोपी के खिलाफ सिविल केस भी दर्ज कराना चाहिए। यह केस आरोपी से पैसे वापस कराने में मदद करेगा। सिविल केस मामले में आरोपी के पकड़ में आने के बाद कोर्ट उससे स्टूडेंट या पैरंट्स द्वारा दी गई रकम वापस करने को कहेगी। अगर आरोपी रकम देने में असमर्थ रहता है तो अदालत उसकी संपत्ति कुर्क करके रकम वापस दिला सकती है। हालांकि इस पूरी प्रक्रिया में कितना समय लगेगा, यह बताना मुश्किल है।

प्राइवेट कॉलेज, इंस्टिट्यूट या यूनिवर्सिटी भी कम नहीं
जॉब दिलाने के नाम पर: काफी प्राइवेट कॉलेज, इंस्टिट्यूट या यूनिवर्सिटी भी स्टूडेंट्स को फंसाने के लिए एजेंट का जाल बिछाते हैं। स्टूडेंट्स को अपनी ओर खींचने के लिए ऐसे संस्थान 100% जॉब दिलाने का दावा करते हैं, लेकिन इसमें कुछ शर्तें होती हैं। इन शर्तों के बारे में स्टूडेंट्स को बताया नहीं जाता। इसे ऐसे समझ सकते हैं: कोई प्राइवेट इंस्टिट्यूट स्टूडेंट्स से 100% जॉब दिलाने का वादा कर सकता है। लेकिन वह इसमें शर्त यह लगा सकता है कि जॉब उन्हीं स्टूडेंट को मिलेगी जो कोर्स के दौरान कम से कम 60% मार्क्स लाएंगे। हालांकि यह बात वह खुलकर नहीं बताते हैं। ऐसे में कॉपी चेक करने के दौरान जानबूझकर 60% से कम मार्क्स ही स्टूडेंट को दिए जाते हैं और बहाना बना दिया जाता है कि कम मार्क्स के कारण उन्हें जॉब नहीं दी जा सकती।

पसंद के कोर्स के नाम पर: यहां एजेंट की मिलीभगत भी शामिल होती है। मान लीजिए कि कोई स्टूडेंट किसी इंस्टिट्यूट में बीटेक (सिविल) में ऐडमिशन लेना चाहता है। इस बारे में एजेंट को पता है कि उस इंस्टिट्यूट में बीटेक (सिविल) में सीट खाली नहीं है। ऐसे में स्टूडेंट से कहा जाता है कि बीटेक सिविल में अभी कोई सीट नहीं है। दो-तीन महीने बाद सीटें और बढ़ेंगी या खाली हो जाएंगी। ऐसे में स्टूडेंट अभी दो-तीन महीने के लिए इलेक्ट्रॉनिक्स में ऐडमिशन ले ले और फिर बाद में उसे सिविल में शिफ्ट करा देंगे। बहाना लगाया जाता है कि इलेक्ट्रॉनिक्स में भी बस एक ही सीट बची है और कई स्टूडेंट लाइन में हैं। ऐसे में स्टूडेंट उनकी बातों में आ जाता है और न चाहते हुए भी इलेक्ट्रॉनिक्स में ऐडमिशन ले लेता है। दो-तीन महीने बाद जब वह मैनेजमेंट से सिविल में शिफ्ट होने का कहता है तो उसे मना कर दिया जाता है। ऐसे में स्टूडेंट के पास बीटेक इलेक्ट्रॉनिक्स से करने के अलावा कोई और चारा नहीं होता है।

यूनिवर्सिटी को जानें
सेंट्रल यूनिवर्सिटी: इन यूनिवर्सिटियों की स्थापना केंद्र सरकार का मानव संसाधन मंत्रालय संसद में पारित ऐक्ट के आधार पर करता है। देश में अभी 48 सेंट्रल यूनिवर्सिटी हैं।

डीम्ड यूनिवर्सिटी: डीम्ड यूनिवर्सिटी का स्टेटस हायर एजुकेशन के क्षेत्र में काम कर रहे उन संस्थानों को दिया जाता है, जो किसी खास सब्जेक्ट में बेहतरीन काम कर रहे हैं। देश में डीम्ड यूनिवर्सिटी की संख्या 126 है।

एफिलेटेड संस्थान: ये किसी मान्यताप्राप्त यूनिवर्सिटी से संबंद्ध संस्थान/कॉलेज होते हैं और उस यूनिवर्सिटी के कोर्स चलाने का इन्हें अधिकार होता है। ये खुद न तो एग्जाम करा सकते हैं, न ही कोई डिग्री दे सकते हैं।

रेकग्नाइज्ड यूनिवर्सिटी: देश में किसी भी यूनिवर्सिटी को डिग्री देने की इजाजत यूनिवर्सिटी ग्रांट्स कमिशन (UGC) देता है। इनके लिए फंडिंग भी यूजीसी देता है। ऐसी यूनिवर्सिटी को रेकग्नाइज्ड यूनिवर्सिटी के रूप में काम करने की मान्यता होती है।

रजिस्टर्ड संस्थान: सोसायटी ऐक्ट/एनजीओ ऐक्ट आदि के अंतर्गत रजिस्टर्ड संस्थाओं को रजिस्टर्ड संस्थानों की श्रेणी में रखा जा सकता है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि इनके द्वारा संचालित कोर्स भी मान्यता प्राप्त होते हैं।

प्राइवेट यूनिवर्सिटी: प्राइवेट यूनिवर्सिटी की शुरुआत राज्य विधानसभा द्वारा पारित ऐक्ट और UGC द्वारा गजेट में शामिल करने के आधार पर हो सकती है। इन्हें UGC रेग्युलेट करता है। देश में प्राइवेट संस्थानों की संख्या 334 है।

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मैथ्स पर है पकड़ तो ये हैं करियर के बेस्ट ऑप्शन

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गणित को एक कठिन विषय माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि मेधावी छात्र ही इस विषय को सही से हैंडल कर पाते हैं। अगर आप भी वैसे छात्रों में शामिल हैं जिनकी गणित पर पकड़ मजबूत है तो आपके लिए करियर के कई शानदार विकल्प हैं। आइए आज आपको करियर के उन शानदार विकल्पों के बारे में बताते हैं...

सांख्यिकीविद (Statistician)
मैथ्स पर जिनलोगों की पकड़ है उनके लिए सांख्यिकी में करियर बनाना बहुत अच्छा विकल्प है। डेटा का विश्लेषण करना और नतीजों को पाइ चार्ट्स, बार ग्राफ, टेबल आदि के रूप में प्रस्तुत करना एक सांख्यिकीविद का काम होता है। हेल्थकेयर, शिक्षा समेत कई फील्ड में सांख्यिकीविद की काफी मांग होती है। सांख्यिकीविद बनने के लिए आपके पास मैथमेटिक्स/स्टैटिस्टिक्स में बैचलर की डिग्री या फिर स्टैटिस्टिक्स में मास्टर की डिग्री होनी चाहिए।

अर्थशास्त्री (Economist)
एक अर्थशास्त्री आर्थिक रुझानों का मूल्यांकन करता है और भविष्य को लेकर अनुमान जारी करता है। वह विभिन्न विषयों जैसे महंगाई, कर, ब्याज दर, रोजगार का स्तर आदि का डेटा संग्रह करता है, उस पर रिसर्च करता है और उसका विश्लेषण करता है। अर्थशास्त्री बनने के लिए गणित को जरूरी विषय माना जाता है। अर्थशास्त्री बनने के लिए इकनॉमिक्स में बैचलर की डिग्री होना और मैथ्स पर अच्छी पकड़ होना जरूरी है। इसके बाद इकनॉमिक्स/इकनोमेट्रिक्स/ऐप्लाइड इकनॉमिक्स में मास्टर की डिग्री होनी चाहिए।

मार्केट रिसर्चर (Market researcher)
मार्केट रिसर्चर कंपनियों में अहम भूमिका निभाते हैं। वे मार्केट की स्थिति, प्रतियोगियों और ग्राहकों से संबंधित डेटा का संग्रह करते हैं और उसका विश्लेषण करते हैं। इस आधार पर कंपनियां या तो अपने प्रॉडक्ट लॉन्च करती हैं या प्रॉडक्ट में सुधार करती हैं।

साइकोमेट्रिशन (Psychometrician)
इंसान के मनोचिकित्सीय व्यवहार का पता लगाने के लिए साइकोमेट्रिशन सवालों का सेट तैयार करते हैं। इससे पता चलता है कि कोई अंतर्मुखी है या बहिर्मुखी। किसी की मैथ्स पर पकड़ है या फिर लॉजिकल रीजनिंग में। इस तरह के सवालों का सेट तैयार करने के लिए साइकोमेट्रिशन किसी सैंपल से डेटा संग्रह करता हैं। उसका विश्लेषण करकता है और फाइनल टेस्ट के लिए सवालों का फाइनल सेट तैयार करता है। साइकोमेट्रिशन बनने के लिए गणित पर अच्छी पकड़ होनी चाहिए। इसके लिए साइकॉलजी में बैचलर के अलावा साइकॉलजी/स्टैटिस्टिक्स में मास्टर की डिग्री होनी चाहिए।

स्टॉक मार्केट ऐनालिस्ट (Stock market analyst)
स्टॉक मार्केट ऐनालिस्ट को इक्विटी ऐनालिस्ट भी कहा जाता है। उनको स्टॉक और कंपनियों के बारे में रिसर्च रिपोर्ट तैयार और प्रस्तुत करनी होती है। जो लोग मैथ्स में अच्छे होते हैं वे आसानी से बड़ी संख्या में डेटा का विश्लेषण कर सकते हैं और समस्याओं को हल कर सकते हैं।

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सीटेट 2019: लास्ट मोमेंट पर जरूर नजर डालें इन खास बातों पर

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CTET 2019 के लिए दो दिन से कम का समय बचा है। परीक्षा 7 जुलाई को होनी है। ऐसे में कुछ जरूरी बातों को समझना बेहद जरूरी है। सेंट्रल टीचर एलिजिबिलिटी टेस्ट (सीटेट) एक नैशनल लेवल की प्रवेश परीक्षा है। इसके आधार पर प्राइमरी और एलिमेंट्री टीचर्स की भर्ती होती है। सीटेट 2019 में पास होने वाले छात्रों को सीटेट सर्टिफिकेट मिलेगा।

परीक्षा में अगर आपकी तैयारी बहुत ज्यादा नहीं है तो भी स्ट्रैटजी के साथ आप इसमें अच्छा प्रदर्शन कर सकते हैं। इसके लिए कुछ बातों का ध्यान रखें जैसे...
सबसे पहले आपको सिलेबस का पता होना बहुत जरूरी है, इसके साथ ही पिछले सालों के पेपर आपकी काफी मदद कर सकते हैं। हालांकि अगर आपने पहले से यह तैयारी नहीं कर रखी है तो लास्ट मोमेंट पर परेशान न हों। याद रखें कि सब कुछ पढ़ा नहीं जा सकता इसलिए रिलैक्स रहें। इस वक्त पर कुछ भी नया पढ़ने की कोशिश न करें। जो पढ़ा है उसका ही रिवीजन करें।

ध्यान रखें कि CTET 2019 में नेगेटिव मार्किंग नहीं है इसलिए कोई सवाल छोड़कर न आएं। पहले वे सवाल हल करें जिनके जवाब पर आपको कॉन्फिडेंस है।

समय का भी ध्यान रखें। किसी भी सवाल पर अगर आपको 1 मिनट से ज्यादा का वक्त लग रहा है तो उसे छोड़ दें। आने वाले सवाल हल करने के बाद उन पर ध्यान दें जिन पर ज्यादा समय लग रहा है।

ध्यान दें
परीक्षा दो शिफ्ट में होगी। पहली शिफ्ट सुबह के 9.30 बजे से 12 बजे तक और दूसरी शिफ्ट दिन के 2 बजे से 4.30 बजे तक होगी। परीक्षा केंद्र पर परीक्षा शुरू होने से 90 मिनट पहले पहुंच जाएं।

पेपर का मोड पेपर पेन और पेपर मोड में होगा। ओएमआर शीट पर आंसर मार्क करना होगा। 150-150 मार्क्स के दो पेपर होंगे और दोनों में 150-150 मल्टिपल चॉइस क्वेस्चन पूछे जाएंगे।

कैंडिडेट्स अपना ऑरिजनल ऐडमिट कार्ड, दो बॉल पेन (काला/नीला) और साथ में एक फोटो आईडी लेकर परीक्षा केंद्र पहुंचे। अगर अब तक ऐडमिट कार्ड डाउनलोड नहीं किया है तो ऑफिशल वेबसाइट ctet.nic.in पर जाकर डाउनलोड कर सकते हैं।

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NMAT Exam Pattern 2019: जानें एग्जाम तैयारी के टिप्स, पैटर्न की पूरी डीटेल

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NMAT परीक्षा के लिए रजिस्ट्रेशन हर साल जुलाई में शुरू हो जाते हैं। यह एक तरह से एमबीए कोर्सेस में दाखिले का एंट्रेंस टेस्ट है जिसे कई बड़े मैनेजमेंट संस्थान मान्यता देते हैं। इस परीक्षा के लिए रजिस्ट्रेशन NMAT की ऑफिशल वेबसाइट पर जाकर कर सकते हैं।

इस परीक्षा को पास करने के लिए आपकी अच्छी तैयारी होनी जरूरी है। बिना तैयारी के इस परीक्षा को पास करना कठिन है साथ ही आपको एग्जम पैटर्न की भी पूरी जानकारी होनी चाहिए ताकि आप अपने रास्ते से भटके बिना इस परीक्षा की तैयारी कर सकें। यहां हम आपको इस एग्जाम की तैयारी के टिप्स और एग्जाम पैटर्न की पूरी जानकारी दे रहे हैं।

NMAT एग्जाम पैटर्न
सेक्शन

सवालों की संख्या

समय

लैंगवेज स्किल

32

22 मिनट

क्वांटेटिव स्किल

48

60 मिनट

लॉजिकल रीजनिंग

40

38 मिनट

कुल

120

120 मिनट



NMAT परीक्षा के कुल तीन भाग होते हैं। इन सभी के लिए समय भी अलग-अलग दिया जाता है। अभ्यर्थियों को दूसरे सेक्शन की ओर बढ़ने से पहले अपने सभी सवाल चेक कर लेने चाहिए क्योंकि अगले सेक्शन में जाने के बाद वापस लौटने का मौका नहीं मिलता और उन सवालों को फाइनल मान लिया जाता है।

ऐसे करें तैयारी

समय पर ध्यान दें- तैयारी के दौरान समय सबसे महत्वपूर्ण फैक्टर होता है। एक सब्जेक्ट का टाइम टेबल बनाएं और उसी समय में उस सब्जेक्ट की तैयारी करें इसके अलावा उस सब्जेक्ट के रिवीजन का समय भी तय करें।

मॉक टेस्ट की प्रैक्टिस करें- मॉक टेस्ट तैयार करने का सबसे अच्छा साधन होता है। मॉक टेस्ट के दौरान आप एग्जाम को दोबारा दे सकते हैं इससे आपके अंदर कॉन्फिडेंस भी बढ़ेगा।

अपनी कमजोरियों पर ध्यान दें- तैयारी करते समय अपनी कमजोरियों को पकड़े हैं और इनपर ध्यान दें। कमजोर फील्ड पर ध्यान देकर आप इसमें भी महारथ हासिल कर सकते हैं।

पुराने पेपर्स को सॉल्व करें- आप पिछले 5-6 साल पुराने क्वेश्चन पेपर को हल कर सकते हैं। इससे आपको पेपर की प्रकृति का भी पता चल जाएगा और आपके अंदर पेपर देने का आत्मविश्वास भी बढ़ेगा। कई बार पुराने क्वेश्चन पेपर्स में से ही सवाल पूछ लिए जाते हैं। अगर ऐसा होता है तो यह आपके लिए और भी अच्छा होगा।

महत्वपूर्ण किताबें का इस्तेमाल करें- तैयारी के लिए केवल कुछ जूरूरी किताबों का ही इस्तेमाल करें। जितनी ज्यादा बुक्स का इस्तेमाल आप तैयारी के लिए करेंगे उतना ज्यादा आप कन्फ्यूज होंगे।

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कैसे करें GRE एग्जाम की तैयारी, जानें पूरा एग्जाम पैटर्न

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GRE Exam Pattern And Prepration Tips: जीआरई टेस्ट को दुनिया भर के प्रमुख बिजनेस स्कूल में ऐडमिशन के लिए आयोजित किया जाता है। इस टेस्ट की मान्यता 230 देशों में है। हर साल 6 लाख से ज्यादा छात्र यह टेस्ट देते हैं। इस टेस्ट का आयोजन ईटीएस (एजुकेशनल टेस्टिंग सर्विस) कराती है। यहां हम आपको इस टेस्ट की तैयारी के तरीके के साथ एग्जाम पैटर्न की जानकारी भी दे रहे हैं।

2 तरह के होते हैं टेस्ट

ईटीएस 2 तरह के जीआरई टेस्ट का आयोजन करता है पहला जीआरई जनरल टेस्ट होता है और दूसरा जीआरई सब्जेक्ट टेस्ट होता है।

जीआरई जनरल टेस्ट: इसे टेस्ट को किसी भी विषय में स्नातक छात्र दे सकता है। इसमें छात्र की वर्बल रीजनिंग, एनालिटिकल और क्रिटिकल राइटिंग, क्वांटिटेटिव रीजनिंग स्किल्स की जांच की जाती है।

जीआरई सब्जेक्ट टेस्ट: इस टेस्ट में छात्र की किसी खास विषय पर पकड़ को जांचा जाता है। यह टेस्ट साल में तीन बार आयोजित किया जाता है और सिर्फ पेपर आधारित फॉर्मैट में ही लिया जाता है। यह टेस्ट कुल आठ सब्जेक्ट्स के लिए लिया जाता है।

जीआरई टेस्ट फॉर्मेट
जीआरई टेस्ट कंप्यूटर और पेपर दोनो तरह से लिया जाता है। कंप्यूटर टेस्ट के लिए जहां 3.45 घंटे का समय दिया जाता है वहीं पेपर टेस्ट के लिए 3.5 घंटे का समय दिया जाता है। कंप्यूटर टेस्ट का स्कोर 10-15 दिन और पेपर टेस्ट का स्कोर 4-6 हफ्तों में मेल पर भेज दिया जाता है।

कंप्यूटर आधारित जीआरई एग्जाम पैटर्न
जीआरई कंप्यूटर आधारित टेस्ट छह भागों में विभाजित होता है जिसमें तीसरे सेक्शन के बाद दस मिनट का ब्रेक दिया जाता है। कुल मिलाकर पूरे टेस्ट के लिए 3.45 घंटे का समय दिया जाता है।


विषय

सवालों की संख्या

समय


विश्लेषणात्मक लेखन (दो अलग-अलग समय के कार्यों के साथ एक भाग)


एक “एक समस्या का विश्लेषण करें” कार्य और एक “एक तर्क का विश्लेषण करें” कार्य

प्रत्येक कार्य के लिए 30 मिनट

मौखिक तर्क (दो भाग)

20 प्रश्न प्रति भाग

प्रत्येक भाग के लिए 30 मिनट

मात्रात्मक तर्क (दो खंड)

20 प्रश्न प्रति भाग

प्रत्येक कार्य के लिए 35 मिनट

अनआइडेंटिफाइड अनस्कोर्ड सेक्शन


बदलता रहता है

बदलता रहता है

निर्धारित रिसर्च सेक्शन

बदलता रहता है

बदलता रहता है



अनआइडेंटिफाइड अनस्कोर्ड सेक्शन- इस सेक्शन की गणना जीआरई के फाइनल स्कोर में नहीं होती है। इस सेक्शन के जरिए भविष्य के जीआरई टेस्ट के सवालों को तैयार किया जाता है इसलिए से सेक्शन को पहचानना मुश्किल है हालांकि आवेदक इस सेक्शन को छोड़ भी नहीं सकते हैं।


निर्धारित रिसर्च सेक्शन- इस सेक्शन की गणना भी जीआरई के फाइनल स्कोर में नहीं होती है रिसर्च सेक्शन टेस्ट के अंत में होता है। इस सेक्शन के सवाल ईटीएस रिसर्च के लिए होते हैं।

पेपर आधारित जीआरई एग्जाम पैटर्न
यह पेपर छह हिस्सों में बंटा होता है दो सेक्शन एनालिटिकल राइटिंग, दो सेक्शन वर्बल रिजनिंग और दो सेक्शन क्वांटिटेटिव रिजनिंग के होते हैं। इस टेस्ट के लिए 3.30 घंटे का समय दिया जाता है। दूसरे सेक्शन के बाद दस मिनट का ब्रेक मिलता है। इस पेपर्स में क्यूआर सवालों के हल में ईटीएस कैलकुलेटर छात्रों को उपलब्ध कराता है। छात्रों को अपने कैलुकेलटर लाने की अनुमति नहीं होती है।


विषय

सवालों की संख्या

समय

विश्लेषणात्मक लेखन (दो भाग)

खंड 1- किसी समस्या का विश्लेषण करें


खंड 2- किसी तर्क का विश्लेषण करें

प्रत्येक खंड के लिए 30 मिनट

मौखिक तर्क (दो भाग)

प्रत्येक भाग में 25 सवाल

प्रत्येक भाग के लिए 35 मिनट

मात्रात्मक तर्क

प्रत्येक भाग में 25 सवाल

प्रत्येक भाग के लिए 40 मिनट



जीआरई सब्जेक्ट टेस्ट
जीआरई सब्जेक्ट टेस्ट का आयोजन केवल पेपर आधारित ही होता है। इसमें छात्र की किसी एक विषय पर पकड़ को परखा जाता है। प्रत्येक विषय में यह परीक्षा साल में तीन बार आयोजित होती है जो अप्रैल, सितंबर और अक्टूबर में होती है। प्रत्येक सब्जेक्ट टेस्ट के लिए 2.50 घंटे का समय मिलता है। नीचे हम आपको प्रत्येक सब्जेक्ट में पूछे जाने वाले प्रश्नों की संख्या बता रहे हैं।

विषय

सवालों की संख्या

बायॉलजी

190- 5 विकल्पीय प्रश्न

केमिस्ट्री

130 बहुविकल्पीय प्रश्न

इंगलिश में साहित्य

230 सवाल

गणित

66 बहुविकल्पीय सवाल

फिजिक्स

100- 5 विकल्पीय प्रश्न

साइकॉलजी

205 बहुविकल्पीय प्रश्न



जीआरई क्रैक करने के लिए ऐसे करें तैयारी

सही स्टडी मैटेरियल को चुनें
- किसी भी विषय की तैयारी के लिए सही स्टडी मैटेरियल को चुनना सबसे बड़ी बात होती है। अगर आप पहली बार इस टेस्ट को दे रहे हैं तो आसान किताबों से शुरुआत करें। जब आपकी विषय पर पकड़ बनने लगे तो एडवांस किताबों का रूख करें। बाजार में की एक्सपर्ट्स की बेहतरीन किताबें उपलब्ध हैं। ऑनलाइन भी बहुत सारा स्टडी मैटेरियल उपलब्ध है।

अपनी तैयारी के मुताबिक अपनी टेस्ट डेट चुनें- जीआरई टेस्ट को देने की हड़बड़ी में आप जल्दबाजी न करें। पहले आप यह तय करें कि आप कब तक तैयारी कर सकते हैं। इसके मुताबिक ही टेस्ट की डेट तय करें। जल्दबाजी के चक्कर में आप तैयारी ठीक से नहीं कर पाएंगे और फिर से पेपर देना पड़ेगा।

मॉक टेस्ट या प्रैक्टिस टेस्ट- जीआरई टेस्ट के लिए आपको मॉक टेस्ट कई निजी वेबासाइट्स पर आसनी से मिल जाएंगे। इसके अलावा लगभग प्रत्येक विषय के प्रैक्टिस टेस्ट की पीडीएफ फाइल ऑफिशल वेबसाइट पर उपलब्ध है जिसे आप फ्री में डाउनलोड कर सकते हैं। प्रैक्टिस टेस्ट या मॉक टेस्ट से आपको पता चल जाएगा कि आप कितने पानी में हो। इससे आपको टाइम मैनेजमेंट में भी आसानी होगी और साथ ही जीआरई टेस्ट के लिए आपका कॉन्फिडेंस भी बढ़ेगा।

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सांख्यिकी में ये हैं करियर के बेस्ट ऑप्शन, जानें डीटेल में

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अकसर सांख्यिकी को लेकर कन्फ्यूजन हो जाती है कि यह गणित है लेकिन ऐसा नहीं है। सांख्यिकी की अपनी एक अलग दुनिया है और इस फील्ड में करियर के कई आकर्षक विकल्प हैं। सांख्यिकी का इस्तेमाल दिहाड़ी, मूल्य, समय, विश्लेषण, मांग विश्लेषण आदि में होता है। सांख्यिकी की उन्नत विधियों की मांग बढ़ती जा रही है और नतीजे के तौर पर कोर्स छात्रों के बीच लोकप्रिय हो रहा है। प्राइवेट और पब्लिक सेक्टर में इसकी मांग बहुत ज्यादा है। ऐसे में सांख्यिकी में करियर बनाना आपके लिए बहुत अच्छा साबित हो सकता है। लेकिन करियर बनाने को लेकर कोई फैसला लेने से पहले आपको इस फील्ड में उपलब्ध विकल्पों के बारे में जान लेना चाहिए। आइए आज आपको सांख्यिकी की फील्ड में उपलब्ध बेहतरीन विकल्पों के बारे में बताते हैं...

सांख्यिकीविद
यह सांख्यिकी का परंपरागत करियर है। सांख्यिकी का इस्तेमाल पॉलिसी बनाने, जनगणना के आंकड़े जुटाने और उनका विश्लेषण करने, आर्थिक सर्वे और अन्य सरकारी परियोजनाओं में होता है। कोई भी सर्वे सांख्यिकी डेटा के बगैर संभव नहीं हो सकता है। किसी बजट को तैयार करने में या आर्थिक सर्वेक्षण करने में हमेशा तीन से चार सांख्यिकीविद की भूमिका होती है। सांख्यिकीविद का मुख्य काम पिछले साल के डेटा का गणनात्मक विश्लेषण करना होता है। इससे नीति निर्माताओं को पॉलिसी बनाने में मदद मिलती है और किसी तरह की कमी होने पर उसका सुधार हो जाता है। बेहतर रिसर्च के लिए डेटा तैयार करके भी सांख्यिकीविद अहम भूमिका निभाते हैं।

सांख्यिकी की फील्ड में दूसरा परंपरागत विकल्प प्रफेसर बनने का है। यूजीसी नेट क्रैक करके, राज्य या केंद्र सरकार की भर्ती परीक्षाओं को उत्तीर्ण करके कोई भी आसानी से शिक्षक या प्रफेसर बन सकता है। उनका वेतन 50,000 से लेकर 1 लाख रुपये तक होता है।

सांख्यिकी के अन्य वैकल्पिक कोर्स इस तरह से हैं...

जैव सांख्यिकी
जैव सांख्यिकी में चिकित्सा अनुसंधान के दौरान संग्रहित चीजों से संबंधित आंकड़ों का विश्लेषण करना होता है। उसके आधार पर कोई अनुमान या नतीजा तय किया जाता है। इसके लिए जीव विज्ञान और सांख्यिकी दोनों की जानकारी जरूरी होती है। आज के समय में चिकित्सा क्षेत्र के प्रसार के बाद जैव सांख्यिकीविद की भी मांग बढ़ गई है।

सांख्यिकी और डेटा साइंस
डेटा साइंस करियर का नया विकल्प है। यह सांख्यिकी पढ़ रहे छात्रों के लिए बेहतर ऑप्शन साबित हो सकता है। ज्यादातर यूनिवर्सिटियों और कॉलेजों में इसमें डिप्लोमा कराया जाता है। डेटा साइंटिस्ट की कंपनियों में काफी मांग है। इस पेशे में शुरुआती वेतन 3 से 4 लाख रुपये सालाना है। प्रफेसर या शिक्षक को 6 लाख रुपये सालाना से ज्यादा का पैकेज मिलता है।

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रोबॉटिक्स में बनाएं करियर, मौके की भरमार

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उद्योग जगत के बीच तेजी से रोबॉट इंसान का स्थान लेता जा रहा है। रोबॉट की सेवा लेने में कंपनियों को कई फायदे हैं। एक तो उनको कम खर्च करने पड़ते हैं। दूसरा उत्पादकता पर भी असर पड़ता है। रोबॉट एक इंसान के मुकाबले ज्यादा समय तक काम कर सकता है। 2018 में वर्ल्ड रोबॉटिक्स की रिपोर्ट के मुताबिक, 2016 के मुकाबले 2017 में रोबॉट के इस्तेमाल में 30 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई है। 2017 में 3,412 नए औद्योगिक रोबॉट बेचे गए।

वैसे पहले ऑटोमोटिव इंडस्ट्री में रोबॉट का इस्तेमाल किया गया लेकिन एयरोस्पेस, कृषि, रीटेल, हेल्थकेयर और डिफेंस सेक्टर में इसकी मांग बढ़ी है। भारत का डिफेंस सेक्टर तेजी से रोबॉट्स की ओर बढ़ रहा है। फिलहाल तो सेना में बम को निष्क्रिय बनाने वाले दस्ते में रोबॉट्स शामिल हैं। अगले दशक में भारतीय सशस्त्र बलों में एक तिहाई रोबॉट को शामिल करने की जरूरत है। सिर्फ यह नहीं सर्जिकल रोबॉट्स की भी मांग तेजी से बढ़ रही है।

जॉब के अवसर
रोबॉट की बढ़ती मांगों के साथ इससे संबंधित इंजिनियर, ऑपरेटर और तकनीशियनों की भी मांग बढ़ेगी। रोबॉटिक्स कोर्स करने वाले छात्रों के पास कई फील्ड में अवसर होंगे जैसे रोबॉट्स का रिसर्च और डिवेलपमेंट, रखरखाव और क्वॉलिटी कंट्रोल।

कोर्स
मौजूदा समय में भारत में 15 यूनिवर्सिटियों में रोबॉटिक्स कोर्स कराए जाते हैं। ज्यादातर संस्थान रोबॉटिक्स में स्पेशलाइजेशन के साथ मास्टर कोर्स ऑफर कर रहे हैं। कुछ यूनिवर्सिटी इंजिनियरिंग के ऐसे कोर्स भी ऑफर कर रही हैं जिनमें रोबॉटिक्स और ऑटोमेशन की बेसिक शामिल होती है। पोस्ट ग्रैजुएट स्तर पर कई यूनिवर्सिटियां रोबॉटिक्स और ऑटोमेशन में स्पेशलाइजेशन ऑफर कर रही हैं।

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